पिछले तीन दिनो दिल्ली में साम्प्रदायिक ताकतों द्वारा दंगा फैलाया जा रहा हैं। माना जा रहा हैं कि CAA और प्रस्तावित NRC तथा NPR के खिलाफ चल रहे शांतीपूर्ण सत्याग्रह के विरोध में यह दंगा कराया गया हैं। जिसमे दिल्ली के मुसलमान बुरी तरह प्रभावित हुए हैं।
कुछ जगह से प्रतिक्रिया में मुसलमानों द्वारा हमले कि खबरें आ रही हैं। इस दंगे में अब तक कुल 34 लोग मारे जा चुके हैं। जिसमें मुसलमानों कि संख्या अधिक हैं।
दंगे में हुए माली नुकसान की भरपाई तो की जा सकती हैं, पर मानसिक तौर पर जो खोया हैं उसकी भरपाई शायद ही हों। जलगाँव के मुफ्ती मौलाना हारुन नदवी द्वारा शांति की अपील की गई हैं। जिसें हम आपके लिए दे रहे हैं।
पवित्र कुरआन में अल्लाह ये आदेश देता है कि ज़मीन पर फसाद मत फैलाओ, खुदा फसादियों को पसन्द नहीं करता।
मेरे भाईयों – खुदा का ये हुक्म आम है, और ज़मीन पर बसने वाले तमाम इन्सानों से ये अपील करता है कि वो पैदा करने वाले के इस हुक्म पर अमल करें और ये हुक्म तमाम इन्सानों, तमाम कौमों और तमाम धर्म के मानने वालों के लिये बराबर है।
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फसाद की बुराई उस समय ज्यादा हो जाती है, जब पूरी कौम फसाद पर तुल जाए। इन्सानी जानों का नुकसान उस वक्त और बढ जाता है जब कोई ताकतवर कौम, या ताकतवर मुल्क या ताकतवर समाज किसी कमजोर कौम, कमजोर मुल्क या कमजोर समाज पर टूट पडे।
इसीलिए अल्लाह यह भी हुक्म देता है कि ऐ इन्सानों, अपनी ताकत अपनी सलाहियत और काबिलियत का गलत इस्तेमाल ना करो।
पवित्र कुरआन ने बडे-बडे ताकतवर लोगों, बादशाहों और इन्सानों के बारे में बताया जो अपनी ताकत की घमंड में कमजोरों पर जुल्म करते थे वह तबाह व बर्बाद हो गए।
अल्लाह ज़मीन पर रहनेवाले तमाम इन्सानों को यह हुक्म दे रहा है कि तुम फसाद ना फैलाओ, अल्लाह को यह पसंद नही और ज़ालिमों का अंजाम बताकर हर आम इन्सान को खुदा खबरदार भी कर रहा है कि देखो, लडने से पहले, हाथों में बम और बारुद, तलवार और खंजर, पेट्रोल की बोतलें, ईंट और पत्थर लेने और फेंकने से पहले सोचो कि तुम क्या कर रहे हो? इससे क्या फायदा होगा? किसको हुआ? और किसको होगा?
सोचो, समझो कौन है जो आग का खेल-खेल रहा है? कौन है जिसको आग लगाने के कारोबार से फायदा हो रहा है, कौन है जिसकी कुर्सी, खून की होली और कत्लों-फसाद की सियासत से मजबूत हो रही है ऐसे ज़ालिम शख्स, ऐसे कातिल ग्रुप और ऐसे फसादी मुवमेंट को अल्लाह देख रहा है।
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खुदा की अदालत से तो उन्हें जरुर ऐसी सजा सुनाई जायेंगी कि उनका अन्जाम देखकर इन्सान कांप जाएंगे। मगर इस आग फसाद को रोकने और ना फैलने देने की जिम्मेदारी हमारी भी हैं।
हज़रत मुहंमद (स) फर्माया कि ज़ालिम को जुल्म से रोको, यह उस ज़ालिम पर भी अहसास होगा कि तुम उसे जुल्म से रोक कर नर्क की आग और अल्लाह के गुस्से से बचा रहे हो। जालिम से रोक देना यह भी इबादत और सवाब का काम है। मगर अफसोस कि हमको अल्लाह ने बहुत सारी सलायतें और ताकत दी है। हम फसाद को रोक सकते है मगर ऐसा हम नहीं कर रहे हैं।
भाईयों, फसाद से चंद लोगों को फायदा पहुंचता है। आम आदमी जो 95 फीसदी है। उसे शिवाय नुकसान के कुछ हाथ नहीं आता। अफसोस यह भी है कि फसाद कराने वाले इतने बडे। होते है कि हुकूमत और पुलिस की ताकत भी उन तक नहीं पहुंच पाती है। वह बडे मजबूत और संगठित होते है। अमन पसंद लोग ज्यादा हैं मगर बिखरे हुए है।
फसादी इतने ताकतवर है कि अगर उन तक कानून वाले पहुंच गए तो यह उन्हें उपर पहुंचा देता है। या फिर जगह और पोस्ट तबदील कर दी जाती हैं। इसीलिए हमारा आम आदमी बेदार हो जाए और वह फसादियों और उनकी नीयत को समझ ले तो हिंदुस्थान ही नही पूरी दुनिया के हालात सुधर सकते है।
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याद रखो, फसाद हमेशा आम आदमी को ही नुकसान पहुंचाता है। आम आदमी ही मार खाता है। पकडा जाता है, जेल जाता है आम आदमी ही जलता है, कत्ल होता है, और मरता भी है। कुछ ही पर्सेंट ऐसा होता है कि फसाद करने वाले पकडे गए।
मेरे भाईयों, खुदा के इस पैगाम को समझो कि जमीन पर फसाद ना फैलाओ जिसको अल्लाह में जो सलाहियत दी है उसे वह फसाद रोकने के लिए इस्तेमाल करें।
अल्लाह ने कलम की ताकत दी है तो यह बहुत बडी ताकत हैं। तलवारें वह काम नहीं कर सकती जो कलम कर सकता है। प्रिंट और टीवी मीडिया अपनी इस ताकत को तास्सुब, मजहब और पार्टी के लिए इस्तेमाल ना करते हुए फसाद को रोकने और इन्सानियत को बचाने के लिए इस्तेमाल करो तो खुदा बहुत खुश होगा। अफसोस यह होता है कि कलम भी बिक चुकी है और चंद लोगों या पार्टियों के लिए ही उठती है।
मेरे भाईयों, यह बहुत बडी अल्लाह की नेमत और दी हुई ताकत है। इसका गलत इस्तेमाल ना करो। इस वक्त जबकि पूरे मुल्क में हालात खराब चल रहे है या कुछ फसादियों की तरफ से बनाए जा रहे है।
इसको रोकने में बहुत बडा रोक और किरदार हर मजहब के धर्मगुरु, पंडित (पुजारी, फादर, इमाम) अदा कर सकते हैं आम जनता इनकी बात इतना सुनती है और मानती है जितना वह मिनिस्टर की भी नहीं सुनती।
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लेखक जलगांव स्थित इस्लामिक विद्वान हैं।