लोकसभा में 11 मार्च को दिल्ली दंगों पर चर्चा हुई। जिसमें कई मान्यवरों ने सरकार से अपनी शंका-कुशंका पर जवाब मांगा। बहुजन समाज पार्टी उत्तर प्रदेश के अम्बेडकर नगर सांसद श्री. रितेश पाण्डेय नें दिल्ली पुलिस के संदिग्धता पर सवाल खडे किए।
उन्होंने कहा कि, दंगों मे पुलिस आम लोगों को मारती, उनपर पत्थरबाजी करती दिखी। सरकार ने उनपर अबतक कारवाई क्यों नही की? श्री. पाण्डेय की चर्चा हम LSTV के सौजन्य आपके लिए दे रहे हैं..
आपने मुझे नियम 193 के अधीन चर्चा में दिल्ली दंगों के बारे में बहुजन समाज पार्टी और बहन कुमारी मायावती जी का पक्ष रखने की अनुमति दी है, मैं इसके लिए आपको धन्यवाद देना चाहता हूँ!
मैं दिल्ली दंगों की गंभीरता को सदन के पटल पर रखना चाहता हूँ आज सुबह तक 53 लोगों की मृत्यु हो गई, जिसमें एक कांस्टेबल रतन लाल और एक आईबी अफसर अंकित शर्मा भी थे। मैं इन सबको श्रद्धांजलि देना चाहता हूँ।
200 से ज्यादा लोग गंभीर रूप से घायल हैं, 38 से अधिक लापता है, जिसमें सात माइनर हैं। 92 घर, 57 दुकानें, 500 गाड़ियां, 6 गोदाम, 2 स्कूल, 4 फैक्ट्रियां और 4 प्रार्थनाघरों को खाक के सुपुर्द कर दिया गया।
इसी सदन से 10 किलोमीटर की दूरी पर इन दंगों को तीन दिन तक अंजाम दिया गया, ठीक उसी समय जब अमरिका के राष्ट्रपति हमारे देश का दौरा कर रहे थें।
राजनैतिक रूप से इस घटना को लेकर हम भड़काऊ भाषणों पर चर्चा जरूर कर सकते हैं, लेकिन दिल्ली की सुरक्षा को चुस्त-दुरुस्त रखना किसकी जिम्मेदारी है। प्रश्न उठता है कि दिल्ली को, हमारे बच्चों को और हम लोगों को कौन सुरक्षित रखेगा?
मैं उत्तर-पूर्वी दिल्ली में हिंसा से प्रभावित इलाके के निवासी संजीव की बहादुरी को सलाम करता हूं, जिन्होंने न केवल अपने मुस्लिम पड़ोसी और लंबे समय के दोस्त मुजीबुर रहमान को शरण दी, बल्कि रहमान के गर्भवती भांजी के स्वास्थ्य का ध्यान रखने के लिये सभी बाधाओं के खिलाफ चले गए। 1/2
— Ritesh Pandey (@mpriteshpandey) February 28, 2020
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मान्यवर, तीन दिन तक गृह मंत्रालय दिल्ली पुलिस के साथ मीटिंग करता रहा और दंगे चलते रहे। यह स्थिति सीधे-सीधे केंद्र सरकार द्वारा संचालित दिल्ली पुलिस को कटघरे में खड़ा करने का काम करती है।
विभूति नारायण राय, जो उत्तर प्रदेश पुलिस में डायरेक्टर जनरल थे, उन्होंनें वर्ष 2008 में एक बात कही थी, मैं इसे आज याद करना चाहता हूँँ उन्होंने कहा था कि कोई भी दंगा 24 घंटे से ज्यादा बिना सत्ता की सहमति के नहीं चल सकता है।
मान्यवर, अब देखना है कि इस घटना में केंद्रीय सरकार द्वारा संचालित दिल्ली पुलिस की क्या भूमिका रही है। 24 से 27 फरवरी तक 13,000 डिस्ट्रैस्ड कॉल्स दिल्ली पुलिस के पास आई लेकिन तब भी दिल्ली पुलिस समय पर सक्रिय नहीं हो पाई।
तमाम राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय मीडिया चैनलों ने दिल्ली पुलिस की बर्बरता का खुलासा किया है। सात पुलिसकर्मियों ने रॉयट गियर पहन कर पांच युवाओं को बेरहमी से लाठी पीट-पीटकर राष्ट्रगान गवाने का काम किया।
तमाम वीडियो निकली हैं, इन पांच लोगों में से एक फैजान की मौत भी हो गई है। इसके अलावा और भी वीडियो आए हैं, जिसमें सीसीटीवी कैमरा तोड़ते हुए पुलिस देखी गई है।
तमाम वीडियो आए हैं, जिसमें पत्थरबाजों के साथ मिलकर पुलिस ने पत्थरबाजी की है। क्या पुलिसकर्मी के इस दुस्साहस पर कोई कार्रवाई हुई है? प्रश्न यह उठता है कि इन लोगों के साथ अब तक क्या कार्रवाई हुई है?
video of Last week of Feb.#DelhiRiots2020 #DelhiCAAClashes #delhivoilence #DelhiPolice #DelhiFightHate #Shame pic.twitter.com/zV7nNes1xx
— who (@suhail03_) March 10, 2020
इसी कड़ी में राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार, आदरणीय अजीत डोभाल जी ने हरियाणा में एक कांफ्रेंस में कहा था कि पुलिस कानून का क्रियान्वयन करती है और जब पुलिस इस दायित्व से विफल होती है तो लोकतंत्र मरता है।
उन्होंने आगे यह भी कहा था कि पुलिस को न केवल निष्पक्ष और विश्वसनीय होना चाहिए बल्कि निष्पक्ष और विश्वसनीय दिखना भी चाहिए। एक फ्लैग मार्च उन्होंने किया, लेकिन क्या आदरणीय अजीत डोभाल जी को यह बात याद आई कि वही दिल्ली पुलिस आज न तो निष्पक्ष दिखी और न विश्वसनीय दिखी, यह गंभीरता का मुद्दा है।
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मैं सदन से कहना चाहता हूं कि इस पूरी घटना से दो बातें उभरकर आती है। एक – यदि दिल्ली पुलिस केंद्र सरकार द्वारा संचालित है तो सीधी सी बात है कि यह घटना एक नरसंहार है।
यदि यह दिल्ली पुलिस और केंद्र सरकार द्वारा संचालित नहीं है तो यह पूरी तरह से अराजकता और अनारकी है। दोनों ही रूपों में सरकार की पोल खुल गई है। सरकार इस देश को विभाजनकारी राजनीति में धकेलती चली जा रही है और इस विभाजनकारी राजनीति की वजह से हमारी अर्थव्यवस्था पूरी तरह से ध्वस्त हो रही है।
दिल्ली चेम्बर ऑफ कामर्स ने इन दंगों की वजह से 25 हजार करोड़ रुपये का नुकसान बताया है, जो लेबर और एम्पलॉयमेंट मंत्रालय के बजट से दो गुना ज्यादा है।
मैं यहां पर यह कहना चाहता हूं कि यह नुकसान सिर्फ नालों में बहती हुई लाशों की संख्या से नहीं तोला जा सकता, यह नुकसान जी. टी. बी. अस्पताल में तड़पते हुए घायलों की तादाद से नहीं आंका जा सकता, यह नुकसान उन जलती हुई सुई-धागों की मशीनों पर है, जिन पर एक मेहनतकश बैठकर अपनी रोजी-रोटी कमाता था।
यह नुकसान उन जलती हुई किताबों का है, जिसकी उम्मीद पर बेटी को बचाया था, बेटी को पढ़ाने का काम किया था। यह नुकसान उन रिश्तों का है, जो सन् 1947 के विभाजन के बाद और सन् 1984 के दंगों के बाद बनाए गए थें।
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मैं बहुत लंबी बात न करते हुए यह जरूर कहूंगा कि आज बेरोजगारी अपनी चरम सीमा पर है और वही हक की लड़ाई लड़ने वाले इन लोगों को सरकार गोली मारने के नारे बताने का काम करती है।
ये भड़काऊ भाषण देने वाले लोग, इन कार्यकर्ताओं और इन नेताओं के ऊपर जब तक भारतीय जनता पार्टी कोई कार्रवाई नहीं करती है, तब तक यह माना जाएगा कि भारत के संविधान और मूल्यों का अपमान हो रहा है।
अंत में, मैं अपनी बात खत्म करने से पहले बहन कुमारी मायावती जी का पक्ष यहां पर जरूर रखना चाहूंगा। हमारी मांग यह है कि सरकार इन दंगों की न्यायिक जांच कराए और इन दंगों से जुड़े द्वेषपूर्ण भाषणों की भी निष्पक्ष न्यायिक जांच कराए यह जांच एक माननीय सुप्रीम कोर्ट के जज द्वारा होनी चाहिए। आपने मुझे इस विषय पर बोलने का मौका दिया। बहुत-बहुत धन्यवाद।
*श्री. रितेश पाण्डेय का यह भाषण आप यहां देख सकते हैं
जाते जाते :
- ‘क्या नरेंद्र मोदी दिल्ली दंगा पीडितो को इन्साफ दिलायेंगे?’
- ‘नरेंद्र मोदी, क्या आपको दिल्ली दंगों के बाद नींद आती हैं?’