लोकसभा में सवाल, हज सब्सिडी बंद हुई तो कितने स्कूल्स खुले?

लोकसभा से :

ध्यक्ष महोदय, 8 नवम्बर, 2016 को वजीरे आजम, नरेन्द्र मोदी साहब टीवी पर आते हैं और यह ऐलान करते हैं कि चार घंटे में 500 रुपए और 100 रुपए के नोट खत्म हो जाएंगे। यह इसलिए फैसला नहीं

यहाँ क्लिक करें

‘सेंट्रल विस्टा’ संसदीय इतिहास को मिटाने का प्रयास

लोकसभा से :

माननीय सभापति महोदय, आपने हमेशा मातृभाषा को प्रोत्साहित किया है और ज़ोर देकर कहा है कि इस सदन के सदस्य अपनी मातृ भाषा में अपने विचार व्यक्त करें। इस भावना को ध्यान में रखते हुए, मैं आज मराठी में

यहाँ क्लिक करें

चीन मामले में नेहरू फर्जी राष्ट्रवादी नहीं थे!

भी हाल ही में आई मेरी किताब ‘Our Hindu Rashtra: What It Is. How We Got Here’ के सिलसिले में मेरा इंटरव्यू लेते हुए सवाल पूछा गया कि हिन्दुत्व आखिर नेहरू से इतनी नफरत क्यों करता है? यह एक रोचक सवाल था और

यहाँ क्लिक करें

कैफ़ी ने शायरी को इश्कियां गिरफ्त से छुड़ाकर जिन्दगी से जोड़ा

रीब 80 फिल्मों में गीत लिखने वाले क़ैफी आज़मी के गीतों में जिन्दगी के सभी रंग दिखते हैं। फिल्मों में आने के बाद भी उन्होंने अपने गीतों, शायरी का मैयार नहीं गिरने दिया।

सिने इतिहास की क्लासिक कागज़ के फूल के

यहाँ क्लिक करें

दकनी सुलतानों को ‘गरीबों का दोस्त’ क्यों बुलाते थे?

ध्यकाल में दकन सांस्कृतिक केंद्र बन कर उभरा। जिसमें मुग़लों के साथ कई दकनी सल्तनतों ने इसके विकास में अपना महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है।

गोलकुंडा कि कुतुबशाही और बीजापुर कि आदिलशाही तथा अहमदनगर की निजामशाही ने दकन में कई सांस्कृतिक मापदंड खडे किये। जिनमें

यहाँ क्लिक करें

जब तक रफी के गीत नही होते, हिरो फिल्में साईन नही करते!

ता भारत रत्न, मुहंमद रफी क्यों नहीं?अक्सर यह सवाल शहंशाह-ए-तरन्नुम मुहंमद रफी के चाहने वाले पूछते हैं, लेकिन इस सवाल का जवाब किसी के पास नहीं हैं। क्यों हमने अपने इस शानदार गायक की उपेक्षा की है? ‘भारत रत्न’, तो छोड़िए

यहाँ क्लिक करें

मीडिया जो परोस रहा है, क्या उस दायरे में सच भी है?

राजनीति लोकतंत्र को हांकती है। लोकतंत्र राजनीतिक सत्ता की मंशा मुताबिक परिभाषित होती है। लोकतंत्र के चारो स्तंभ लोकतंत्र को नहीं राजनीतिक सत्ता को थामते हैं या फिर विरोध की राजनीति धीरे-धीरे सत्ता के विकल्प के तौर पर खड़ा होना शुरु होती है तो

यहाँ क्लिक करें

मुग़ल सत्ता को काबू करने वाले सैय्यद हुसैन का खौफनाक अंत

दुहाई सरकार, दुहाई…!!”

दिल दहलाने वाली आवाजों के साथ मीर हैदर बेग अमीर-उल-उमरा सैय्यद हुसैन अली (Syyed Brothers) की पालकी की ओर रोता-बिलखता चला आ रहा था।

यह वह समय था, जब अमीर-उल-उमरा फतेहपुर सीकरी के पास पड़ाव में रुके

यहाँ क्लिक करें

फकरुद्दीन बेन्नूर : मुसलमानों के समाजी भाष्यकार

देश में हिन्दुत्वप्रणित संघठनों का आतंक जब अपनी चरम पर था, ठिक उसी समय सामाजिक सौहार्द और सद्भावना के बानी प्रो. फकरुद्दीन बेन्नूर इस दुनिया से चल बसें। आज उनके निधन को दो साल पूरे हुए हैं। इस बिच मुसलमानों के दुख और दर्द

यहाँ क्लिक करें

क्या, कम्युनिस्ट होना था अन्नाभाऊ के उपेक्षा की वजह?

ग बदल घालूनी घाव, (दुनिया बदल दे..) सांगून गेले मला भीमराव, (कह चले भीमराव) गीत में अन्नाभाऊ कहते हैं, ‘पूंजीपतीयोंने हमेशा लुटा हैं, धर्मांधों ने छला हैं’, गीत में, जाति और वर्ग के शोषण के

यहाँ क्लिक करें