लोकसभा से :
अध्यक्ष महोदय, आपका धन्यवाद कि आपने मुझे बोलने का अवसर दिया। माननीय राष्ट्रपति जी ने अपने अभिभाषण में सरकार की कई सारी उपलब्धियों का उल्लेख किया। मैं उन उपलब्धियों के लिए सरकार का अभिनंदन करना चाहूंगा जिनका लाभ अंतिम पंक्ति में खड़े अंतिम व्यक्ति तक पहुचा हो।
राष्ट्रपति जी ने अपने अभिभाषण में नये संसद भवन के निर्माण की बात की यह गर्व की बात है, लेकिन सवाल यह उठता है कि जिस देश को सार्वजनिक स्वास्थ्य व्यवस्था कोरोना की महामारी में बुरी तरह से एक्सपोज हुई हो, उस देश की प्राथमिकता क्या होनी चाहिए?
नया संसद भवन या हर जिले में हर संसदीय चुनाव क्षेत्र में एक सुसज्ज अत्याधुनिक सार्वजनिक अस्पताल? सिर्फ 22 इंच से कुछ नहीं होगा देश की प्राथमिकता को नजर रखते हुए पहले अस्पताल और फिर संसद भवन, इस पर आत्मचिंतन हो, यह मेरी गुजारिश है।
वैसे भी इस संसद भवन की मांग किसी ने नहीं की है, पर हर सांसद मेरी इस बात से सहमत होगा कि हर संसदीय चुनाव क्षेत्र में एमपीलंड फण्ड के तहत होने वाले विकास कामों की मांग जरूर हो रही है। इसलिए मेरी दरख्वास्त है कि इस एमपीलैंड फण्ड को अविलम्ब पूर्ववत किया जाए।
इस अभिभाषण में केंद्र और राज्य की सरकारों के बीच समन्वय की भी बात की गई। माननीय वित्त राज्य मंत्री जी अनुराग जी यहां उपस्थित है। मैं उनका ध्यान इस ओर आकर्षित करना चाहूंगा कि महाराष्ट्र की सरकार को जी.एस.टी. की 25,000 करोड़ रुपये की राशि प्रदान होनी बाकी है, उस पर अविलम्ब विचार किया जाए।
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युवा के भविष्य में अंधेरा
राष्ट्रपति जी ने अपने अभिभाषण में युवाओं के रोजगार की बात की। इस सरकार ने सपना दिखाया था कि सालाना दो करोड़ युवाओं को रोजगार मिलेगा। अजी, यह मिलना तो छोड़िए, जो हाथ में था, वह भी चला गया। आज हजार नौकरियों के लिए लाख-लाख युवा एप्लाई करते हैं और फोर्थ क्लास की नौकरी के लिए ग्रेजुएट्स और पोस्ट-ग्रैजुएट्स कतार में खड़े होते हैं।
पहले ‘नीम’ और अब ‘नेशनल अप्रेंटिस’ जैसे प्रोग्राम और जो नीतियां हैं, वे देश के युवा वर्ग के लिए शोषण व्यवस्था साबित हो रही हैं क्योंकि पहले नौकरी लग जाती हैं और फिर माँ-बाप शादी कर लेते हैं और फिर दो साल में कंपनी ब्रेक दे देती है, ताकि उसको परमनेंट न करना पड़े।
इससे युवा के भविष्य में अंधेरा छा जाता है। इसलिए इन युवाओं के आक्रोश को समझें और इन नीतियों पर पुनर्विचार करें।
इस अभिभाषण में और एक बहुत अच्छी बात कही गई, वह है आत्मनिर्भर भारत की। जब हम सब ने सुना था कि देश को बिकने नहीं देंगे तो हर किसी को गर्व महसूस हुआ था, लेकिन शायद उसके बाद ओएलएक्स का विज्ञापन कुछ ज्यादा प्रभावशाली साबित हुआ और वह नीतियों में भी दिखने लगा।
बेच डाल.. बीपीसीएल बेच डाल, बीएसएनएल बेच डाल, एयरपोर्ट्स बेच डाल, सी पोर्ट्स बेच डाल और अब यह डर लगने लगा है कि क्या यह आत्मनिर्भर भारत की बात हो रही है या कोई चुनिंदा पूजीपति निर्भर भारत की?
मैं सचेत करना चाहूंगा कि इस प्रकार से मुक्त अर्थव्यवस्था की आड़ में अगर हम क्रोनी कैपिटलिज्म को बढ़ावा देकर देश के संसाधनों को चुनिंदा पूजीपतियों के हाथों में सौप देंगे तो देश की आने वाली पीढ़ियां हमें कभी माफ नहीं करेंगी।
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किसान आंदोलन कि बदनामी
राष्ट्रपति जी के अभिभाषण में किसानों की योजनाओं की बात की गई लेकिन, आज जो हमारे अन्नदाता, हमारे किसान भाई दिल्ली की सरहदों पर आंदोलन कर रहे हैं, जिनमें 200 से अधिक भारतीय, मैं उन्हें भारतीय कहूंगा जिनमें 200 से अधिक भारतीय शहीद हुए हैं, उनके प्रति कोई संवेदना इस अभिभाषण में नहीं दिखाई दी, यह आश्चर्यजनक है।
गणतंत्र दिवस पर जो घटना घटी, उसकी आलोचना अभिभाषण में हुई। हिंसा का कोई समर्थन नहीं हो सकता और न ही होना चाहिए, लेकिन उसके उपलक्ष्य में किसान आंदोलन को बदनाम करने की जो साजिश रची गई, वह निंदनीय है।
पहले बताया गया कि सिर्फ पंजाब के किसान है, फिर बताया गया कि ये तो आढ़तिया है, फिर बताया गया कि ये खालिस्तानी है। सर, गणतंत्र दिवस पर जो घटना घटी, उसकी आलोचना अभिभाषण में हुई हिंसा का कोई समर्थन नहीं हो सकता और न ही करना चाहिए, लेकिन उसके उपलक्ष्य में इस किसान आंदोलन को बदनाम करने की जिस तरह से साजिश रची गई, वह निंदनीय है।
पहले बताया गया कि ये सिर्फ पंजाब के किसान है, फिर बोला गया कि ये आढ़तिया है, खालिस्तानी है। उसके बाद तथाकथित आई.टी. सेल और मीडिया के कुछ नुमाइंदों ने उन्हें देशद्रोही करार दे दिया।
मैं पूछना चाहूगा कि जो बाप अपने 18 साल के नौजवान बेटे को बोलता है कि उठ तुझे फौज में भर्ती होना है, तुम्हें बेल्ट की नौकरी करनी है। जो माँ अपने बेटे को बॉर्डर भेजते हुए कहती है कि अगर दुश्मन ने देश पर गोली चलाई, तो तुम्हें अपना सीना आगे कर देना है, तो वे देशद्रोही क्यों कहे जाते हैं?
आज बेटा सियाचिन में माइनस डिग्री सेल्सियस में देश की रक्षा कर रहा है और उसका 70 साल का बूढ़ा बाप दिल्ली की सरहदों पर अपने हक के लिए कड़ाके की सर्दी में आंदोलन कर रहा है, तो किस मुंह से बोलेंगे जय जवान, जय किसान?
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महाराष्ट्र बीजेपी आंदोलनजीवी
आज तो देश को दो नए शब्द मिले हैं। उनमें से एक है- ‘आंदोलनजीवी।’ मैं इस शब्द के लिए शुक्रगुजार हूं। जो भाजपा के नेता कभी भी आंदोलन करते दोलन करते रहते थे, उनको क्या कहना चाहिए, यह हमें इस शब्द समझ में आया। मजदूरों के लिए हमारे बाबा आढाव जसे कार्यकर्ता जो उम्र के 90 साल में भी आदोलन में सक्रिय है। यह हमारे महाराष्ट्र के लिए अभिमान और गौरव की बात है।
लेकिन, मैं आपके माध्यम से पूछना चाहूंगा कि जिस देश की स्वतंत्रता की बुनियाद ही आंदोलन हो, उस देश में इस बात का प्रयोग कैसे किया जा सकता है।
यहां पर कई माननीय सदस्य बोलते हुए, परराष्ट्र में, जिन्होंने अच्छी बात को उसकी सराहना की, लेकिन यह कैसी विडंबना हैं कि जब ब्राजील के राष्ट्राध्यक्ष संजीवनी की उपाधि दगे, तो हम खुश होंगे।
जब अमेरिकी पूर्व राष्ट्राध्यक्ष ‘हाउडी मोदी’ बोलेंगे, तो हम तालियां बजाएंगे और जब कोई विदेशी मानवता के दृष्टिकोण किसान आदोलन पर टिप्पणी करेगा तो फिर ‘फॉरेन रेस्पेक्टिव आइडियोलॉजी’ हो जाती है।
बैरिकेड्स लगाना, फेसिंग करना, यह किस प्रजातंत्र का लक्षण है! महामहिम राष्ट्रपति जी ने अपने अभिभाषण में आर्य चाणक्य की पंक्तियों का उल्लेख किया।
लेकिन मैं इस सदन को बताना चाहूंगा कि उन्हीं आर्य चाणक्य ने यह भी बताया कि जब राजा का अंहकार प्रजा हित से ऊपर उठ जाए, तो समझ लेना कि उसके शासनकाल का अंत निश्चित है।
इसीलिए, मैं दरख्वास्त करूंगा कि संवेदनशीलता से इस समस्या का किसानों के हित में हल निकालें, ताकि फिर हर देशवासी गर्व से कह सके- ‘जय जवान, जय किसान।’
सभार : LSTV
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डॉ. अमोल कोल्हे राष्ट्रवादी काँग्रेस पार्टी के लोकसभा सांसद हैं।