भारत में मुस्लिम लड़कियों और महिलाओं को अपने पहनावे और बदल रहे भारत में अपने धार्मिक अधिकार को पाने के लिए खुद आगे आना होगा। अपनी लड़ाई खुद लड़नी होगी।
ऐसा देखा गया है कि वह सोशल मीडिया समेत हर जगह मुस्लिम आईडी और ख्वातीन चकल्लस और हंसी मज़ाक में तो लगी रहती हैं पर अपने अधिकार पर चुप रहती हैं।
उनको उड्डपी कालेज की आलिया असदी समेत 6 मुस्लिम छात्राओं से सीखना चाहिए। कर्नाटक के उडुपी में गवर्नमेंट पीयू कॉलेज फॉर गर्ल्स की छह मुस्लिम छात्राएँ यही लड़ाई लड़ रही हैं।
उनकी लड़ाई हिजाब पहनने की है और पीयू कालेज का प्रिंसिपल उन्हें कक्षाओं में हिजाब पहनने की अनुमति नहीं दे रहा है। यही नहीं छात्राओं ने यह भी शिकायत की है कि उन्हें उर्दू, अरबी और बेरी भाषाओं में बात करने की अनुमति नहीं दी जा रही है।
ध्यान दीजिए कि कॉलेज ने कथित तौर पर हाल ही में हिजाब, उर्दू भाषा और अरबी अभिवादन (अस्सलामो व अलैकुम) के उपयोग पर प्रतिबंध लगा दिया था।
हिजाब पहने 6 मुस्लिम छात्राओं को उनकी कक्षा में घुसने नहीं दिया जा रहा है और उनकी अनुपस्थीति दर्ज की जा रही है।
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स्वतंत्रता पर हमला
कहा जाता है कि भारत के दक्षिण के राज्य देश के गोबरपट्टी राज्यों की तुलना में अधिक वृहद सोच रखते हैं, रखते भी थे, मगर भाजपा की सरकारें बनते ही गोबरपट्टी वाले प्रदेशों की बिमारी वहाँ भी पहुँचनी शुरू हो चुकी है।
एक लोकतांत्रिक देश जिसका संविधान जिसका अनुच्छेद 21 जीने के अधिकार और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का हर नागरिक को अधिकार देता है। भारतीय संविधान का अनुच्छेद 25, 26, 27, 28 प्रत्येक नागरिकों की धार्मिक स्वतंत्रता की गारंटी देता है, और ये मौलिक अधिकारों की सूची में दर्ज है जिसका हर हाल में पालन होना चाहिए।
संविधान के तीसरे भाग में सम्मिलित ये सब मौलिक अधिकार, नागरिकों की धार्मिक/सांस्कृतिक स्वतंत्रता की गारंटी देता है, उनको अपने रीतिरिवाज मानने की आज़ादी देता है।
इसी अधिकार को अप्रूव किया 24 अगस्त 2017 में सुप्रीम कोर्ट की 9 जजों की बेंच ने जब निजता के अधिकार को मौलिक अधिकार करार दिया है पर वह उडपी के पीयू कालेज में लागू नहीं होता।
अपने हिजाब पहनने के अधिकार को पाने के लिए यह 6 मुस्लिम छात्राएँ तीन दिन तक कक्षा के बाहर खड़ी रहीं।
यही नहीं छात्राओं ने दावा किया कि उनके माता-पिता ने बातचीत के लिए प्रिंसिपल रुद्र गौड़ा से संपर्क किया, लेकिन उन्होंने इस मुद्दे पर बात करने से इनकार कर दिया। प्राचार्य का कहना है कि छात्राएं कॉलेज के अंदर उन्हें बिना हिजाब के ही आना होगा।
हास्यास्पद ही है कि जिस धर्मनिरपेक्ष लोकतांत्रिक देश में हर सरकारी उद्घाटन शिलान्यास, हर सरकारी स्कूल और दफ्तर, सरकारी बस और ट्रेनें एक धर्म विशेष के पूजा पाठ से शुरू होते हैं उसी देश के एक कॉलेज में प्रशासन ने सभी छह लड़कियों के प्रवेश पर रोक यह कारण बताते हुए लगाया कि “कैंपस में किसी भी धार्मिक गतिविधि की अनुमति नहीं दी जाएगी”
तुर्रा तो यह कि पीयू कालेज में खुद एक धर्म विशेष का मंदिर है और प्रिंसिपल रुद्र गौड़ा खुद पूजा पाठ करके ही अपने आफिस में प्रवेश करते हैं।
ध्यान दीजिए कि हिजाब कोई धार्मिक गतिविधि नहीं बल्कि एक सांस्कृतिक पहनावा है, जैसे घूँघट है, जैसे माथे की बिंदी है जिसे दक्षिण की हर महिला लगाती है।
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स्कूल के बाहर करने की धमकी
छह छात्राओं में से एक आलिया असदी के अनुसार एक प्रोफेसर ने उन्हें हिजाब पहनकर प्रवेश करने पर बाहर करने की धमकी दी है और एक दिन हम कक्षा के अंदर गए तब प्रोफेसर ने कहा, ‘यदि आप कक्षा से बाहर नहीं जाते हैं, तो मैं आपको बाहर धकेल दूंगा’ ये प्रोफेसर के शब्द हैं। इन सभी छह छात्राओं की 31 दिसंबर से कक्षा में ‘अनुपस्थिति’ दर्ज की जा रही है।
अपने अधिकार की लड़ाई लड़ रहीं आलिया असदी के अनुसार “हालांकि यह हमारा मौलिक अधिकार है, यह हमारा संवैधानिक अधिकार है, फिर भी वे हमें क्लास में जाने की अनुमति नहीं दे रहे हैं क्योंकि हमने हिजाब पहन रखा है। उस कॉलेज में बहुत भेदभाव किया जाता है और हम उर्दू में बात नहीं कर सकते हैं। हम एक दूसरे को सलाम नहीं कर सकते। उस कॉलेज में इस तरह का भेदभाव किया जा रहा है।”
सरकारें जब मुस्लिम विरोध के आधार पर बनती और चुनी जाती हैं तब ऐसी घटनाएँ खुद होने लगती हैं और भाजपा की हर सरकारों में ऐसा ही हो रहा है।
केवल कर्नाटक की बात हो तो उडुपी का यह कोई अकेला कॉलेज नहीं है जिसने मुस्लिम छात्राओं के हिजाब पहनने पर प्रतिबंध लगाया है। इसके पहले चिक्कमगलुरु में एक अन्य सरकारी कॉलेज में कुछ मुस्लिम लड़कियों के हिजाब पहनने पर प्रतिबंध लगा दिया।
मंगलुरू जिला के सरकारी कॉलेज में तो भगवा गिरोह के कुछ छात्र भगवा रंग का स्कार्फ पहनकर क्लास में आए और कहने लगे कि अगर मुस्लिम छात्राएं हिजाब पहनकर आएंगी तो वह भी क्लास में भगवा रंग के स्काफ में ही आएंगे।
इसके बाद इन दोनों कालेज में भी हिजाब पर प्रतिबंध लगा दिया गया। तो समझिए कि कम ज़ालिम सरकारें मुसलमानों के लिए क्युँ ज़रूरी है।
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आगे किस की बारी
सवाल यह है कि भारत जैसे धर्मनिरपेक्ष लोकतांत्रिक देश के कॉलेजों से लेकर संसद तक में सिखों को पगड़ी और कृपाण रखने और पहनने की इजाजत भी संविधान की धारा 25 के अनुसार जब दी गई है तो मुस्लिम लड़कियों को भी हिजाब पहनने की इजाजत क्यूं नहीं दी जानी चाहिए?
सिख भाईयों की पगड़ी केश और कृपाण पर किसी को कोई आपत्ती नहीं पर जैसे ही कोई मुस्लिम दाढ़ी रखकर निकलता है, कोई महिला हिज़ाब पहनकर बाहर निकलती है तो लोग उसको दक़ियानूस/पिछड़ी/कट्टरपंथी कहकर उसका विरोध करते हैं।
अभी हाल ही में जब अमेरिका में हिज़ाब पहनने वाली महिला जब पार्लियामेंट पहुँचती हैं तो पूरी दुनिया उनको एक नए दौर के आग़ाज़ के तौर से देखती है पर वहीं भारत में कोई महिला हिज़ाब पहनकर मार्केट में निकलती है तो उसे तुरंत पिछड़ी और दक़ियानूस कह दिया जाता है।
सिख भाई फिलहाल इस आक्रमण से बचे हुए हैं क्युँकि अभी फिलहाल भगवा गिरोह के एजेन्डे में सिख भाईयों की पगड़ी केश और कृपाण नहीं है, वह भी आएगी, बस समय का इंतज़ार करें।
दरअसल इनका पूरा चरित्र मनुस्मृति पर ही आधारित है, वह स्टेप बाई स्टेप उसी पथ पर आगे बढ़ेंगे, आज मुस्लिम उनके विरोध के अनुकूल हैं, फिर ईसाई इनके आक्रमण पर होंगे, हो भी रहे हैं, फिर बौद्ध होंगे, सम्राट अशोक पर आक्रमण चालू भी हो गया है, फिर महिलाएँ, फिर दलित, पिछड़े।
बचेगा बस मुख और छाती से जना और वही देश में राज करेगा, यही है मूल एजेन्डा और इनका एजेन्डा सत्ता के सहारे ही चलता है, सत्ता गयी यह बिल में घुस जाते हैं।
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लेखक स्वतंत्र राजनीतिक टिपण्णीकार हैं।