सामान्य सामाजिक सोच जब बनती हैं, तो उसमे मीडिया का बडा हाथ होता हैं। आज ऐसे हालात हो गये हैं, खास तौर पर मुस्लीम कम्युनिटी एक टारगेट बन गई हैं, वह निशाने पर बनी हुई हैं, उसे हाशिये पर, मार्जिन पर ढकलने कि कोशिश हो रही हैं। उसके तीन-चार कारण हैं।
हमारा जो मुख्य मीडिया हैं, जिसमें छोटे-मोटे पत्रकार और अच्छे अखबार हैं, उन्हें छोडकर ज्यादातर मीडिया पर कॉर्पोरेट सेक्टर ने कंट्रोल कर रखा हैं, उसे वे अपनी पॉलिसी के हिसाब से चलाते हैं। इसके तीन-चार उदाहरण मैं देता हूँ, जिससे विषयवस्तु समझने में मदद मिलेंगी।
पहले तो कोरोना संकट हैं, जिससे मैं, हम और आप सभी परेशान हैं। ये महामारी चीन में दिसंबर में आई, उसके बाद पूरे दुनिया को गिरफ्त में ले लिया। 12 फरवरी को राहुल गांधी ने ट्वीट कर कहा की, ‘सरकार को कोरोना संकट पर ध्यान देना चाहिए।’
तब उनका मजाक उड़ाया गया और जो कोरोना उस समय विदेशों से आ रहा था उसके बारे में ध्यान नहीं रखा गया। उसके बाद अहमदाबाद में ‘नमस्ते ट्रंप’ नाम का एक इव्हेंट हुआ जिसमें करीब 2 लाख लोग संपर्क में आये। उसी के साथ कनिका कपूर विदेश से आई हजारों लोगों से मिली। एक सिख प्रचारक आये हजारों लोगों से मिले। पर मीडिया ने पकड़ा तबलीगी जमात को।
जिन्होंने 13 से 15 मार्च के बीच में दिल्ली में सेमिनार किया था। बता दूं कि यह सेमिनार उन्होंने पूरे परमिशन के साथ किया था। आखिर में इस गोदी मीडिया ने मुसलमानों को पकड़ लिया और कहा कि ये कोरोनावायरस ने फैलाने के लिए छुपकर बैठे थे। कोरोना बॉम्ब, जिहाद न जाने कितने शब्द उन्होंने इस्तेमाल किये।
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नफरत का माहौल
मैं और कुछ उदाहरण दे रहा हूं कि कैसे यह लोग मुसलमानों के खिलाफ नफरत का मौका देखते रहते हैं। मीडिया और पत्रकार का काम होता है सच्चाई के गहराई तक जाकर सत्ता से सवाल करना।
मगर मीडिया को जो चटपटेदार लगता है, जिस से नफरत फैलाई जा सकती है उसीको वे पकड लेते हैं। मीडिया के इस काम से जिससे आम लोगों में यह धारणा आ गई कि कोरोना तबलीग जमात और मुसलमानो की वजह से भारत में फैला है। मीडिया सीरियस इन्वेस्टीगेशन कर सकता है मगर ये काम आम लोग नहीं कर सकते। जिससे मीडिया कि जिम्मेदारी बढ़ जाती हैं।
कोरोना दिसंबर में चीन में आया पर भारत की सरकार 20 मार्च तक सोई रही। 24 मार्च को 4 घंटे के नोटिस के भीतर उन्होंने लॉकडाउन कर दिया उससे जो प्रॉब्लेम हुये वह अलग है।
मगर टारगेट सिर्फ मुसलमानों को किया गया। उनसे कहा गया कि कोरोना फैलाने में वे सक्रीय हैं। कोरोनावायरस को जानबूझकर वे फैला रहे हैं। ये मनगढ़त झूठ था जो बाद में साबित हुआ। इसमें बहुत सारी बातें हैं जिसमें मैं जाना नहीं चाहता।
2006 से 2009 के बीच भारत में चरमपंथ की बहुत सारी घटनाएं हुई। दुनिया में तो अमरीका ने इसे ‘इस्लामिक टेररिज्म’ के नाम पर फैला रखा हैं। इसी टेररिज्म के नाम पर भारत में बहुत सारी एक्टिविटीज हुई, जिसमें मालेगांव, मक्का मस्जिद, अजमेर, समझौता एक्सप्रेस जैसी ब्लास्ट की घटनाए थी।
जो लोग हिन्दू संगठनों से जुड़े थे उन्होंने कबूल (कन्फेस) भी किया है हम लोगों ने यह किया हैं। उसमें एक अभियुक्त थी साध्वी प्रज्ञा सिंह; अभी वह तो सांसद भी बन चुकी है। मेरा उद्देश्य यहां टेररिज्म को डिस्कस करना नहीं है। मैं बताना चाह रहा हूँ मीडिया ने इसे कैसे हैंडल किया।
मक्का मस्जिद में ब्लास्ट हुआ जिसमें कई मुसलमान मारे गये और उसके बाद मुसलमानों पर ही उसका दोष मढ़ दिया गया। जब मुसलमान नौजवानों को अरेस्ट किया गया तो फ्रंट पेज न्यूज़ थी।
उसमें लिखा गया था कि यह चरमपंथी पकड़े गये हैं। आगे उन पर केस हुआ, मुकदमे चले और सब लोग छूट गये। जब ये लोग छूटे तो यह खबर पिछले पेज पर छोटी सी रूप में आई। आप ख्याल करे जब पकड़ा गया तो फ्रंट पेज हेडलाइन थी और वे बेगुनाह छुटे, उन पर केस साबित नहीं हुआ उनको छोड़ा गया तो ये बडी घटना छोटी सी खबर के रूप में आई।
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मीडिया बायस्ड हुआ हैं
तीसरा उदाहरण, आज का मीडिया पूरी तरह से बायस्ड हो गया है। उसका एक बड़ा तबका सांप्रदायिक हो गया है। यहां मैं एक पर्सनल उदाहरण देता हूँ। मेरी एक किताब – जिसका नाम ‘इंडियन नेशनलिज्म फेसेस थ्रेट ऑफ कम्युनलिज्म’ हैं। इसमें 5–6 पेज में मैंने बीजेपी के राजनेताओं की जो बातें हैं जिसमें मुसलमानों द्वारा मंदिरे तोड़ने और धर्मांतर की – उसके पीछे की सच्चाई को सामने रखा।
टाइम नाउ जो देश का बड़ा चैनल है, उसके रिपोर्टर मेरे पास आये। उन्होंने व्हाट्सएप के माध्यम से मेरा इंटरव्यू लिया। इस 150 पन्नों के किताब के इन्होंने केवल 3 पेज को पढ़ा। उसमें लिखा था औरंगजेब एक जगह मंदिर तोड़ा तो कई जगह मंदिरों को दान दिये। हिन्दू मुस्लिम राजाओं में जो दोस्ती थी, जो बाकी चीजें थी वह भी मैंने बताने की कोशिश की थी।
टाइम्स नाउ ने दो एडिटर नें 8 मिनट के दो प्रोग्राम किये, उन्होंने बताया की किताब में मैंने मुस्लिम राजाओं को माफ कर दिया है। मैं उनको सकारात्मक दृष्टिकोण से पेश कर रहा हूं और कांग्रेस पार्टी इसको अपना मुद्दा बनाकर चुनाव में लाकर उसका उपयोग करेंगी।
सच बताऊं तो ऐसा कुछ मामला था ही नहीं। मामला तो सीधा–साधा था जो बातों को मैं आम तौर पर अपनी तरफ से रखता हूं उसीको एक बड़े मीडिया चैनल ने निगेटिव रूप में सामने रखा।
मीडिया के दो प्रमुख प्रकार हैं। जिसमें एक तो टेलीविजन मीडिया और दूसरा प्रिंट मीडिया। खासतौर पर जिसको अंग्रेजी मे कहते हैं ‘लैंग्वेज प्रेस’ और दूसरे को आम जुबान में ‘गोदी मीडिया।’ इसके कुछ चैनल; जिसको आप जानते होंगे।
ये लगातार अपने प्राइमटाइम में 10 लोगों को बुलाकर छोटी-छोटी खिड़कियों में बिठाकर उनसे चर्चा करवाते हैं और एंकर लोग चिल्ला चिल्ला कर मुस्लिम विरोधी बातें, पाकिस्तान विरोधी बातें करते हैं। यह कौन का तरीका है? आमतौर पर इनकी बातों मे सच्चाई ज्यादा नही होती है, इसमें तो सांप्रदायिकता और नफरत की बातें होती है।
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मीडिया का काम क्या है?
समाज में जो बुराई है, जो बुरी चीजें चल रही है, उसके खिलाफ अच्छी चीजों का प्रचार करें, यह मीडिया का काम है। दूसरा, सेंसेशनल याने सनसनीखेज खबरों से बचना और तीसरा किसी भी खबर के गहराई पर जाकर उस आधार पर लोगों को प्रबुद्ध करना। अभी इसके उल्टा हो रहा है।
आज मीडिया जो रोल प्ले कर रहा है उसमें वो खासतौर पर अल्पसंख्यकों को टारगेट कर रहा है। साथ ही साथ वह मुसलमान और किसानों के साथ साथ मजदूरों के समस्याओं इग्नोर करता है।
आपको याद होगा कि किसानों की आत्महत्या हमारे सामने सबसे बड़ी समस्या है। बढ़ती आत्महत्या को लेकर 2019 में चुनाव से पहले एक बड़ा मोर्चा महाराष्ट्र में मुंबई तक आया दिल्ली गया। इस मोर्चे को मीडिया ने कहा इसके कारण ट्रैफिक जाम हो गया है।
मीडिया ने ये नहीं कहा कि किसानों की समस्या क्या है? उन्होंने ये नहीं कहा कि किसानों ने किस बात के लिए मोर्चा निकाला हैं? उन्होंने ये नहीं कहा कि किसानों को आत्महत्या से रोकने के लिए क्या कदम उठाने चाहिए? उन्होंने ये कहा कि देखों किसान आये और हमारे दिल्ली का ट्रैफिक जाम किया।
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हमे क्या करना हैं?
वरीष्ठ पत्रकार रवीश कुमार ने कहा है की गोदी मीडिया का बहिष्कार करना जरूरी है आज हमारे पास अच्छे न्यूज पोर्टल और वेबसाईट हैं, जिसे आप फॉलो कीजिये। जिसमें स्क्रोल, दि वायर, न्यूज़ लॉन्ड्री और न्यूज़ क्लिक हैं। इनके अंग्रेजी के साथ साथ हिन्दी संस्करण भी हैं। सत्य हिन्दी भी एक हैं। आप सच्ची खबरों के लिए इनपर डिपेंड रहीये और इसको ही समाज में फैलाईये और लोगों तक पहुँचाईये।
तीस्ता सीतलवाड़ का एक बहुत अच्छा न्यूज़ बुलेटिन निकलता है जिसका नाम ‘सबरंग डॉट कॉम’ हैं। इस न्यूज़लेटर को सब्सक्राईब किजीये। इसको हम सबने पढ़ना चाहिए इसको कोई पैसा लगता नहीं है।
इससे आपको-हमको जो एक सही खबर चाहीए वह मिलती है। उससे लोगों का प्रबोधन होता हैं। मेरा भी एक यूट्यूब चैनल हैं, उसपर मैं हर हफ्ते एक वीडियो डालने की कोशिश करता हूं। उन वीडियो से आज के सामाईक मुद्दों कि सच्चाई पर बात रखने की कोशिश करता हूं।
आप में से जो नौजवान और नवयुवतीयो इस नियमों को ज्यादा फॉलो करना चाहती हैं, मेरी विनती हैं की इन मुद्दो को हमे गांधीवादी तरीके से समझना होगा। पूरे समाज में जो नफरत का माहौल मीडिया फैला रहा है, इसके जवाब में हमे मोहब्बत का माहौल खड़ा करना है।
मैं मानता हूं कि मजहब जो है यह मोहब्बत का दूसरा नाम है। यह अपने समाज में मोहब्बत फैलाना, अपने आसपास के लोगों को प्रेम से देखना, लोगों को जोड़ना और सही जानकारी पहचान के लोगों तक पहुंचाना।
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गोदी मीडिया को छोड़ीये
बताये गये वबपोर्टल और वेबसाईट को फॉलो करे और गोदी मीडिया को छोड़ दीजिए। उसे देख कर अपना मूड खराब करने की कोई जरूरत नहीं है अब अच्छे पोर्टल आ चुके हैं।
जिसके माध्यम से आपको सही जानकारी मिलेगी और जहां तक सांप्रदायिकता का सवाल है उसे समझने के लिए निश्चित रूप से मेरा खुद का एक चैनल है। मेरे एक मेरे दोस्त है आनंद पटवर्धन उन्होंने इस विषय पर अच्छी फिल्में बनाई है।
राम के नाम, फादर्स इन द होली वॉर, अभी अभी एक और सिजन उनका आया है, जिसका नाम ‘विवेक’ हैं। ये 16 एपिसोड की सीरीज है। इसको अगर देखोगे तो आप सांप्रदायिकता को अच्छी तरह समझ पाओंगे।
अंत में ये कहूंगा कि इन स्त्रोतो से आपको जो अच्छा लगता है उसे लोगो तक फैलाईये। आप अपना भी अच्छा मीडिया खड़ा कर सकते हैं। आप एक अच्छा व्हाट्सएप ग्रुप बनाये, जिसमे सिर्फ अच्छी खबरे भेजते रहीये।
लोग व्हाट्सएप ग्रुप के माध्यम से नफरत फैला रहे आप उसी माध्यम से मोहब्बत फैलाईये। यह मोहब्बत हमारी समाज की प्रगति का रास्ता होगा, हमको जोड़ने का रास्ता होगा और पूरे समाज को साथ में लेकर चलने का एक तरीका होगा।
जाते जाते :
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लेखक आईआईटी मुंबई के पूर्व प्रोफेसर हैं। वे मानवी अधिकारों के विषयो पर लगातार लिखते आ रहे हैं। इतिहास, राजनीति तथा समसामाईक घटनाओंं पर वे अंग्रेजी, हिंदी, मराठी तथा अन्य क्षेत्रीय भाषा में लिखते हैं। सन् 2007 के उन्हे नेशनल कम्यूनल हार्मोनी एवार्ड से सम्मानित किया जा चुका हैं।