मीडिया में कैसे पनपती हैं हिन्दू राष्ट्रवाद की जड़े ?

सोशल मीडिया तो अभी आया पर मुसलमानों के खिलाफ टारगेटिंग थोड़ी पुरानी है। आपको पता होगा आज़ादी के आंदोलन के दौरान शुरू हुआ। उसमें दो प्रकार के राष्ट्रवाद सामने आए। एक तो वह है, जो इंडस्ट्रिलियस्ट मजदूर और आधुनिक शिक्षित वर्ग से आया। दूसरा, वह यहां के राजा, नवाब, जमीदार, जागीरदार जो समाज के बदलाव से जिन्हें डर लग रहा था।

ये डर क्या था? उनके पास जो राजेशाही थी उसे बरकरार रखने का था। सब लोग राजेशाही गुणगान करने की कोशिश करते है। पर याद रखें राजाशाही में शोषण की व्यवस्था बहुत मजबूत होती है।

आज का मीडिया भारत के संविधान में दिए हुए जो राष्ट्रवाद के खिलाफ काम कर रहा हैं। संविधानिक मूल्य, जो धर्मनिरपेक्षता को मानते हैं। जो लोग लोकतंत्र को मानते हैं। मीडिया इससे अलग धर्म के नाम पर राष्ट्रवाद को स्वीकार कर रहा हैं।

मीडिया इसी थ्योरी को स्वीकार करता हैं। इन्होंने ही इसे पॉपुलर किया है। वह मानते हैं कि यह देश हिन्दुओं का है। मुसलमानों को यहां हिन्दुओं के दया पर रहना चाहिए, सेकंड क्लास सिटीजन के रूप में रहना चाहिए। यहीं वजह है कि मेनस्ट्रीम मीडिया और सोशल मीडिया का एक बड़ा सेक्शन एक्टिवली काम करता है। 

इनके साथ हाथ से हाथ मिलाकर भाजपा का आईटी सेल काम करता हैं। ये सब मिलकर इस प्रकार के राष्ट्रवाद के चलते मुसलमानों के खिलाफ ज्यादा और थोड़ा-बहुत ख्रिश्चनों के खिलाफ नफरत का माहौल खड़ा करते हैं। इस राष्ट्रवाद को समझे बगैर हम मीडिया कि अल्पसंख्यक समुदाय के खिलाफ नफरत को नहीं समझ सकते।

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हिन्दू राष्ट्रवाद कि नींव

इस्ट इंडिया कंपनी के नाम पर ब्रिटिश व्यापार के नाम पर यहां आए। व्यापार के बाद उन्होंने यहां के जमींदारों के मदत से अपनी सत्ता स्थापित की और हमारी संपत्ति का शोषण करके उसे अपने देश ले गए। उन्होंने राजाशाही को डिस्टर्ब नहीं किया। उन्होंने जमीदार शाही को डिस्टर्ब नहीं किया। 

सत्ता कि पकड बनाने के लिए उन्होंने यहां कुछ ढांचागत परिवर्तन किए। एक तो ट्रांसपोर्ट यानी रेल, कम्युनिकेशन टेलिफोन, टेलीग्राफ सिस्टम यानी मेल और तीसरा आधुनिक शिक्षा, आधुनिक न्याय व्यवस्था और आधुनिक पनिशमेंट सिस्टम इन सबको मिलाकर मैं एक शब्द इस्तेमाल करता हूं। रेल आई, मेल आई जेल आई; यानी समाज बदला।

इसके बदलने के साथ-साथ यह जो नए वर्ग अस्तित्व में आए,जिनमें व्यापारी पूंजीपति टाटा, बिरला, सिंघानिया, डालमिया एवं मजदूर वर्ग और आधुनिक शिक्षित वर्ग है। जो आगे चलकर भारतीय राष्ट्रवाद की आधारशिला बने। दूसरी तरफ दो और महत्त्वपूर्ण चीजें हो रही थी। इस राष्ट्रवाद में धर्म का कोई भेदभाव नहीं था, उसमें तीन प्रकार के प्रतीक थे।

आज मीडिया ऐसे राष्ट्रवाद को मानते चल रहा है, जिसने कभी भी आज़ादी के आंदोलन भाग नहीं लिया। इस राष्ट्रवाद को भारत के ज्यादातर लोग अभी भी नहीं मानते। इसी के साथ साथ दो महत्त्वपूर्ण प्रक्रिया होती रही। 

एक, अंग्रेजों ने शिक्षा लाई पर यहां का दलित डरा हुआ था, क्योंकि सदियों से उसको शिक्षा से वंचित रखा गया। इन्हीं दलितों को प्रेरणा देने के लिए जोतिराव फुले आए। उन्होंने दलितों से कहा, आप शिक्षा के लिए जाईये। यह शिक्षा आपके मुक्ति का मार्ग हैं। उसी के साथ उनकी पत्नी सावित्रीबाई फुले और उनकी सहेली फातिमा शेख उन्होंने एक साथ मिलकर लड़कियों के लिए स्कूल खोला। 

यह जो प्रक्रिया चल रही थी इनका प्रतिबिंब तीन व्यक्तियों में, संगठनों में मिलता है। आप समझ जाएंगे मैं इस बात को किस मुद्दे से जोड़ना चाहता हूं। आज का मीडिया जो कर रहा है वह एक  प्रकार के (हिन्दू) राष्ट्रवाद को मानता है। उसके चलते ऐसी बात कही जाती है कि देश हिन्दुओं का है और मुसलमान तथा ख्रिश्चियन यह विदेशी धर्म है।

धर्म देशी और विदेशी नहीं होते। मेरी मान्यता है कि धर्म पूरे मानवता के होते हैं। आज का जो राष्ट्रवाद चलता है यह हिन्दू राष्ट्रवाद के आधार पर चलकर इस्लाम और ख्रिश्चिनिटी को विदेशी धर्म मान के मुस्लिम और ख्रिश्चियन के खिलाफ एक प्रकार की छुपी हुई बातें, अस्पष्ट बातें, स्पष्ट बातों के लाता है। जिससे उनका जो एक सामाजिक चित्रण है वह नकारात्मक नेगेटिव और खराब होता है।

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हुआ बदलाव  का विरोध

आज़ादी के आंदोलन के दौरान समाज में बदलाव आ रहा था। इस समानता के स्वाधीनता के राष्ट्रवाद ने तीन प्रतीकों को उभारा। जिसमें एक तो शहीद भगत सिंह। उनके संगठन का नाम था नौजवान भारत सभा।

दूसरे भीमराव अंबेडकर जिन्होंने एक पार्टी की रूपरेखा बनाई, जिसका नाम था रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इंडिया और तीसरी पार्टी ने पूरे देश के देश के आज़ादी के आंदोलन का नेतृत्व किया, उसके चार व्यक्तियों के नाम मैं आपको बता रहा हूं। मौलाना अबुल कलाम आज़ाद, एनी बेसेंट, सरदार बलदेव सिंह, मोहनदास करमचंद गांधी। पार्टी का नाम आप जानते हैं।

इस पार्टी का पैटर्न और इनके नामों के राष्ट्रवाद का पैटर्न देखिए। भगत सिंह – नौजवान भारत सभा, अंबेडकर – रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इंडिया, गांधी – भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस। इसमें धर्म का नाम कहां है? 

इन्हीं के आंदोलन से, इन्हीं के कार्यों से,आधुनिक भारत बना। इसी आधुनिक भारत के निशानी के लिए हमारा भारतीय संविधान बना। जो हमको तीन महत्त्वपूर्ण मूल्य देता हैं। स्वतंत्रता, समता, बंधुता। जिसमें किसी भी धर्म, जाति तथा स्त्री-पुरुष सबको बराबर माना जाता है।

जो मुस्लिम राष्ट्रवाद, हिन्दू राष्ट्रवाद आया वह आम लोगों में से नहीं हैं। भारतीय राष्ट्रवाद इंडस्ट्रीज और आम लोगों से आया। राजा,नवाब, जागीरदार, जमीदार को डर लगा सत्ता उनके हाथ से फिसल रही है। समाज में परिवर्तन हो रहे हैं। कल तक जो गरीब दलित गुलाम था अब बराबरी का दर्जा प्राप्त करने की बात कर रहा है। जो महिलाएं केवल घर की चारदीवारी के अंदर रहती थी, वह शिक्षा प्राप्त करने की कोशिश कर रही है।

यह बदलाव से राजा, नवाब, जमींदार, जागीरदारों में एक डिस्टबन्स आया। उनको एक तकलीफ हुई। उन्होंने संगठन बनाये। पहले एक ही संगठन था। बाद में अंग्रेजों की ‘फूट डालो और राजनीति’ के कारण इसके दो संगठन बन गए। 

एक ‘मुस्लिम लीग’ तो दूसरा बना ‘हिन्दू महासभा।’ शुरू में यह दोनों में राजा, नवाब, जमींदार और जागीरदार थे। आगे चलकर उच्च शिक्षित, अप्पर कास्ट और संभ्रांत लोग इसके साथ जुड़ गए। 

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जहरिली मानसिकता

पाकिस्तान के बनने के पीछे ये संभ्रात मुसलमान थे। मुस्लिम लीग अमीर लोगों की पार्टी थी। वैसे ही हिन्दू महासभा संभ्रात और अमीर लोगों की पार्टी थी। 1935 में लाहौर में प्रस्ताव रखा गया की मुसलमानों के लिए अलग पाकिस्तान चाहिए। उसमें आम मुसलमान नहीं थे। मुट्ठीभर वरीष्ट क्लास के मुसलमान थे। जिन्होंने दावा किया कि हम पूरे मुस्लिम समाज का प्रतिनिधित्व करते हैं।

और एक बात कितने लोगों को पता है कि इस रिज्योलुशन के विरोध में अल्लाह बख्श नाम के व्यक्ति ने दिल्ली में एक बड़े कांफ्रेंस का आयोजन किया था। इसमे आम और गरीब मुसलमान थे। इन लोगों ने प्रस्ताव रखा कि हम मुसलमान पाकिस्तान के बनने के विरोध में है। क्योंकि इससे हमारा कोई फायदा नहीं होगा। हम जिस भारत से जुड़े हुए हैं उसके खिलाफ है।

अल्लाह बख्श हो, मौलाना अबुल कलाम आज़ाद हो, सरहद गांधी हो, ऐसे कितने मुस्लिम फ्रीडम फाइटर हैं जो आज़ादी के आंदोलन से जुड़े थे। यहां से एक प्रक्रिया शुरू हुई जिसमें मुसलमानों को बदनाम करने की बात रखी गई।

हिन्दू राष्ट्रवाद कि नींव

एक तरफ तो दूसरी तरफ मुस्लिम तो दूसरी तरफ हिन्दू राष्ट्रवाद आया। इन्होंने कभी आज़ादी के आंदोलन में हिस्सा नहीं लिया। अपनी राजनीति चमकाने के लिए उस समय से यह लोग मुसलमानों का खराब चित्रण करते आए हैं। खास तौर पर से विभाजन के बाद।

सावरकर ने हिन्दू राष्ट्र की बात रखी और जिना साहब ने मुस्लिम राष्ट्र की। इस परिप्रेक्ष्य में सावरकर नें और भी कुछ बाते रखी। उन्होंने कहा हिन्दू वहीं है जो इस धरती को पुण्य भूमि और पवित्र भूमि मानता है बाकी लोग हिन्दू नहीं है और उनको इस जमीन पर रहने का कोई अधिकार नहीं है।

उन्होंने एक शब्द सामने लाया जो आजकल बहुत पॉपुलर हुआ है वह शब्द है ‘हिन्दुत्व।’ ये कोई धर्म नहीं है। हिन्दुत्व में राजनीति है, जो ब्राह्मणवादी मूल्यों के आधार, आर्यवंश के आधार पर और इस देश की सीमाओं के आधार पर देश की कल्पना करती हैं। इसी आधार पर वह हिन्दुत्व कहते हैं।

मेरे खयाल से आरएसएस दुनिया और भारत का बड़ा ऑर्गेनाइजेशन हैं। जो यहां के रूलिंग पार्टी को कंट्रोल करता है। जो पार्टी न्यूज मीडिया को इनडायरेक्टली कंट्रोल करती है। आरएसएस बनने के बाद उसने आज़ादी के आंदोलन में किसी प्रकार का हिस्सा नहीं लिया।

उसने अपने प्रचारक और स्वयंसेवक तैयार किए। उनको मॉड्यूल दे दिया कि अनादि काल से हम हिन्दू राष्ट्र है, हिन्दू राष्ट्र में सब अच्छा था। कोई ऊंचा कोई नीचा नहीं। पुरुष स्त्रियों का आदर होता था। सभी जातियां बराबर थी और इसमें मुसलमानों के आने के बाद जाति व्यवस्था में असमानता आ गई। जुल्म और अत्याचार चालू हो गए। यह उनकी पूरी फिलॉसफी को शार्ट में बता रहा हूं। 

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शाखाओं में ट्रेनिंग

गोलवलकर संघ के दूसरे संघचालक थे उन्होंने डायरेक्टली कहा, “हमारा आदर्श हिटलर है। यह देश हिन्दुओं का है और इस देश में मुसलमान, ख्रिश्चियन यह विदेशी है। उनको इनकी कृपा पर रहना पड़ेगा।“ यह जो विचारधारा आरएसएस की शाखाओं में होती है। उसको लेकर बहुत सारे लोग जाकर बाद में मीडिया को ज्वाइन करते हैं। 

सावरकर जैसे लोग आकर हिन्दू महासभा की फिलोसॉपी बना गए। आज का मीडिया इसी हिन्दू राष्ट्रवाद के चपेट और गिरफ्त में है। यहीं वजह हे वह मुसलमानों का इतना नकारात्मक चित्रण करता है। 1980 के दशक के बाद से यह प्रक्रिया और ज्यादा तेज हो गई। मीडिया में बहुत हिम्दू राष्ट्रवादीयों नें ‘घुसपैठ’ की।

यह फटाफट या ऑटोमेटिक नहीं होता। शाखाओं पर उनकी विशेष ट्रेनिंग होती है। साथ-साथ ही यह लोग नफरती प्रचार करनेवाले किताबों के संपर्क में आते हैं। यह सब आरएसएस और हिन्दू राष्ट्र को मानने वाले लोग हैं और यूनाइटेड है। इसके कारण एक-दूसरे सपोर्ट करते हैं। एक दूसरे के काम को वह अपनी पर्सनल पब्लिसिटी के लिए नहीं करते। चुपचाप अपना काम करते रहते है। 

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