स्टेक होल्डर की निर्भरता पर लड़खड़ाती पत्रकारिता

त्रकारिता एक पेशेवर काम है। यह एक पेशा नहीं है। बल्कि कई पेशों को समझने और व्यक्त करने का पेशा है। इसलिए पत्रकारिता के भीतर अलग-अलग पेशों को समझने वाले रिपोर्टर और संपादक की व्यवस्था बनाई गई थी जो ध्वस्त हो चुकी है।

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एंकर बनाम आम आदमी, आज़ादी किसकी बड़ी?

स्टिस डीवाय चंद्रचूड ने सुप्रीम कोर्ट में 11 नवंबर को टीवी एंकर अर्नब गोस्वामी को जमानत देते हुए कहा, “यह संदेश सभी हाईकोर्ट तक पहुंचने दें। कृपया व्यक्तिगत आज़ादी की सुरक्षा के लिए अपने न्याय के अधिकार का इस्तेमाल करें। क्योंकि बतौर

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चैनल्स डिबेट को जहरीला बनाने का जिम्मेदार कौन?

र व्यक्ति इस बात से सहमत है कि चैनलों की डिबेट ड्रामा बन गई हैं। टीवी चैनलों की चर्चाओं पर हर तरफ से पक्षपाती होने के भी आरोप लग रहे हैं। आरोप इस हद तक पहुंच गए हैं कि कुछ चैनलों की डिबेट्स का

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मीडिया जो परोस रहा है, क्या उस दायरे में सच भी है?

राजनीति लोकतंत्र को हांकती है। लोकतंत्र राजनीतिक सत्ता की मंशा मुताबिक परिभाषित होती है। लोकतंत्र के चारो स्तंभ लोकतंत्र को नहीं राजनीतिक सत्ता को थामते हैं या फिर विरोध की राजनीति धीरे-धीरे सत्ता के विकल्प के तौर पर खड़ा होना शुरु होती है तो

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अच्छी खबरें ही देखें‚ ‘भोंपू़ मीडिया’ को करें खारिज

कुछ दिनों पहले सुप्रीम कोर्ट ही नहीं‚ कम से कम देश के दो उच्च न्यायालय मीडिया में खबरों (ॽ) के गिरते स्तर को लेकर चिंतित रहे। सुप्रीम कोर्ट ने एक कार्यक्रम को राष्ट्र के लिए अहित करने वाला बता कर रोका तो बॉम्बे हाई

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मीडिया के बिगड़ने में बहुसंख्यकवादी राजनीति का रोल

भारत की मीडिया के सामने इस समय सबसे बड़ा सवाल उसकी साख, उसकी भटकती भूमिका और भाषा के गिरते स्तर को लेकर है। ऐसे में ये सवाल उठना भी लाज़मी है कि दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र होने और स्वतंत्र एवं निष्पक्ष मीडिया

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मीडिया में सांप्रदायिकता कैसे शुरु हुई?

मीडिया मे सांप्रदायिकता कैसी हैं, इसके तीन स्टेप हैं पहला, 1975 के इमरजेंसी के बाद जनता पार्टी की सरकार पावर में आई उस समय लालकृष्ण आडवाणी जो डेप्युटी प्राइम मिनिस्टर रह चुके हैं; वह सूचना और प्रसारण मंत्री थे

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हिन्दुत्व की तरफदारी में मीडिया क्या छुपा रहा हैं?

देश में मुख्यधारा के मीडिया में स्थापित पत्रकारिता संस्थानों, प्रतिष्ठित अखबारों और कुछ हद तक टीवी चैनलों का नाम आता है।

मीडिया के नये तरीके, जैसे वेबसाइट्स, ऐप्स आदि को मुख्यधारा का मीडिया अभी नहीं माना जाता है क्योंकि किसी अखबार या चैनल की

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मुसलमानों को लेकर मीडिया में नफरत क्यों हैं?

सामान्य सामाजिक सोच जब बनती हैं, तो उसमे मीडिया का बडा हाथ होता हैं आज ऐसे हालात हो गये हैं, खास तौर पर मुस्लीम कम्युनिटी एक टारगेट बन गई हैं, वह निशाने पर बनी हुई हैं, उसे हाशिये पर, मार्जिन पर ढकलने कि

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कैसे हुई कोरोना को तबलीग पर मढ़ने की साजिश?

मीडिया के एक बड़े हिस्से ने जिस तरह जमात की गलती को एक साजिश और भारतीय मुसलमानों का देश पर हमला बताया वह घिनौना था। इससे उन तत्वों के हाथ मजबूत हुए हैं जो समाज को धर्म के आधार पर विभाजित कर कोरोना संकट में

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