जर्मनी के तानाशाह एडोल्फ हिटलर के आत्महत्या को 75 साल हो रहे हैं। उसके मौत के बाद, फासीवादी प्रवृत्तियाँ पूरी दुनिया में फैल गईं। जगह-जगह पर, इन ताकतों ने लोकतांत्रिक व्यवस्था को हिला कर रख दिया हैं। इस तरह कि फासिस्ट विचारधारा ने दुनिया भर में मानव जाति को खतरे में डाल दिया है।
हिटलर की आत्महत्या दुनिया के लिए एक सबक थी। आज इस अवसर पर, हम वरिष्ठ पत्रकार एवं राज्यसभा सांसद कुमार केतकर ने 15 साल पहले लिखा यह लेख मामूली बदलाव के साथ पुनः प्रकाशित कर रहे हैं, जो मराठी दैनिक लोकसत्ता में से लिया गया है। – संपादक
ठीक 75 साल पहले, 30 अप्रैल, 1945 को दोपहर में लगभग 3:30 बजे, एडोल्फ हिटलर ने सबसे पहले अपने सहयोगी ईवा ब्राउन को जहर पिने के लिए कहा। जब उसे यकीन हो गया कि वह मर चुकी है, तो उसने अपने मुंह में पिस्तौल रख दी और ट्रिगर दबा दिया। एक पल में, हिटलर का ख़ून से लथपथ शरीर जमीन पर गिर गया। उस समय हिटलर केवल 56 साल का था।
आत्महत्या करने से पहले, हिटलर ने अपने करीबी सहयोगियों गोएबल्स, बोरमैन और अन्य को बुलाया था। हिटलर ने निर्देश दिया था कि उनकी मृत्यु के बाद, उनके और ईवा के लाशों को दफन नहीं करना बल्कि उन्हें जला दिया जाए। इसके लिए 200 लीटर पेट्रोल का इंतजाम भी किया गया था। वह बर्लिन में एक बंकर में रहता था, जो शहर से दूर एक भूमिगत जगह में था।
दूसरा विश्व युद्ध समाप्त होने के अन्तिम पडाव पर था। रूसी लाल सेना ने बर्लिन में घुस गई थी। जर्मनी के अधिकांश क्षेत्र पर मित्र देशों, याने रूस, अमरिका, ब्रिटेन और फ्रान्स का कब्जा था। 1939 और 1943 के बीच जर्मनी द्वारा जीते गए सभी देशों या क्षेत्रों को मित्र देशों की सेनाओं द्वारा मुक्त किया गया था। स्वयं जर्मनी और ऑस्ट्रिया में नाजी विरोधी समूहों ने मित्र देशों की मदद से आक्रमण किया था।
दो दिन पहले ही इटली में मुसोलिनी और उसकी पत्नी को फासीवाद विरोधी समूहों द्वारा पकड़ लिया गया था और उनकी गोली मारकर उनकी हत्या कर दी गई थी। दोनों के लाशें मिलानो शहर के मुख्य चौक में उलटे लटका हुई थीं। नगरवासी उन लाशों कि बेअदबी कर रहे थे। हिटलर के खबरीयों ने मुसोलिनी और उसकी पत्नी के हत्या और लाशों के बेअदबी कि खबर ‘फ्यूरर’ को पहुँचा दी थी।
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लाशें आग के हवाले
हिटलर को डर था कि उसकी और इवा की इसी तरह हत्या की जायेगी और उनके लाशों की बेअदबी की जायेंगी। इसलिए, उसे लगा कि किसी भी हालात में दुश्मन को जिन्दा नहीं पाया जाना चाहिए। इतना ही नहीं, हिटलर इस बात का ध्यान रख रहा था कि उसकी लाश उनके हाथ में न लग जाए। इसलिए वह चाहता था कि उसे और इवा को जला दिया जाए और उनकी अस्थियों को यहां-वहां फेंक दिया जाए।
निर्देश के मुताबिक हिटलर के सहयोगियों ने दोनों के शवों को निकाला और उन्हें बाहर आंगन में चारपाई पर रख दिया। हिटलर के सहयोगी गुन्शे ने लाशों पर पेट्रोल डाला और उन्हें आग लगा दी। जैसे ही आग की लपटें बढ़ीं, वहां मौजूद सहयोगियों ने हिटलर को ‘नाजी’ सलाम किया।
12 साल और 3 महीनों के लिए अपनी एकहाती सत्ता चलाकर, लगभग 60 लाख यहूदियों को मारने वाला, यूरोप को अपनी जूते के निचे लाने की कोशिश करनेवाला, रूस और उसकी समाजवादी व्यवस्था का मुक्तिकरण करने की कोशिश करनेवाला, फ्रान्सिसी और ब्रिटिश उपनिवेशों को जीत कर जर्मन साम्राज्य की स्थापना करनेवाला, अमरिका को चुनौती देनेवाला और जर्मन/आर्य वंश के सार्वभौमिक प्रभुत्व को स्थापित करने के लिए दुनिया पर दूसरा विश्वयुद्ध लादनेवाला एक बर्बर राक्षसी को दी गई वह अन्तिम सलामी थी।
हिटलर के दाह संस्कार के बाद, गोएबल्स और बोरमैन ने रूसियों के साथ बातचीत करने की पेशकश की। लेकिन रूसी सैन्य अधिकारियों ने साफ कर दिया है कि “जर्मन सैनिकों को बिना शर्त आत्मसमर्पण करना होगा।”
उसी दिन, 30 अप्रैल की आधी रात को, हिटलर के बंकर को घेर लिया गया। हिटलर के कुछ साथी किसी तरह बच गए, कुछ भागते हुए मारे गए, कुछ रूसी सेना के चंगुल में फंस गए। अधिकांश इतिहासकारों का मानना है कि इसी समय हिटलर के करीबी सहयोगी बोरमैन की मौत हो गई थी।
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जला दिया गया गोएबल्स
गोएबल्स ने नौसेना चीफ एडमिरल कार्ल डेनिट्ज को हिटलर की मौत की खबर दी, बाद में वह अपने परिवार से मिलने गया। मरने से पहले हिटलर ने डेनिट्ज को सारी शक्तियाँ सौंप दी थी। गोएबल्स के छह बच्चे थे, उन सभी को जहर का इंजेक्शन दिया गया। उनकी तुरन्त मौत हो गई।
उसके बाद गोएबल्स ने अपने मातहतों को आदेश दिया कि “मुझे और मेरी पत्नी को पेट्रोल से तुरन्त जलाओ और हमारी लाशों को नष्ट करो।” अधिकारी पहले से ही दहशत की स्थिति में थे, क्योंकि हार और असहायता सामने खड़ी थी। उन्होंने गोएबल्स पती-पत्नी को आग के हवाले कर दिया, लेकिन कुछ घंटों के भीतर, रूसी सैनिक वहां आ पहुँचे।
अधजले होने के बावजूद उन्होंने उसके शरीर की पहचान कर ली और हिरासत में लिया। हिटलर के इस प्रचार मंत्री ने पूरी दुनिया में अपनी कुटिल और हिंसक ‘गोएबल्स शैली’ का उपयोग करके एक नई प्रचार प्रणाली को जन्म दिया, आखिरकार उसका भी डरावना अन्त हो गया।
रूसी सेनाओं ने हिटलर के शरीर के कम से कम हिस्से, उसकी हड्डियों को खोजने के लिए बंकर परिसर की तलाशी ली। वे दुनिया को हिटलर की मौत की खुशखबरी बतलाने के लिए सबूत चाहते थे। 3 मई को, उन्हें हिटलर के दांत और जबड़े का हिस्सा मिला। पकड़े गए लोगों की विस्तृत गवाही, कुछ जली हुई हड्डियों और दांतों की पहचान के बाद ही उन्होंने हिटलर को मृत घोषित किया।
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नाजीवाद का सफाया
कुछ दिनों (या घंटों) के भीतर, हिटलर के एयर फोर्स के प्रमुख, हरमन गोअरिंग, उनकी दो पत्नियां, हिटलर के जुलमी विभाग ‘एसएस’ के पोलीस प्रमुख हेनरिक हिमलर, उसकी सेना के फील्ड मार्शल विल्हेम कायटेल, नाजी विदेश मंत्री रिब्बेनट्रॉप, हत्यार मंत्री अल्बर्ट स्पीअर, फ्रिट्झ सॉकेल, जिसने यातना शिवीर चलाए थे, इन सारों को पकड़ लिया गया।
इसके अलावा, कई नाजी अधिकारी सफाई से भागने कामयाब हुए थे। कुछ नाजी वैज्ञानिकों ने अमेरिका में शरण मांगी ली थी। उनमें से कुछ ने रूस को सभी गुप्त जानकारी देने का वादा करके अपनी जान बचाई।
कुछ तो अपना नाम और पासपोर्ट बदलकर जर्मनी या दक्षिण अमरिकी देशों में दस या पंद्रह साल तक रहे। पकड़े गए नाजियों के खिलाफ ‘न्यूरेन्बर्ग’ में केस फाईल किया गया। मानवता के खिलाफ अपराधों के लिए कुछ को मौत की सजा सुनाई गई थी। कुछ को आजीवन कारावास और कुछ को लंबी जेल की सजा सुनाई गई।
इटली में फासीवाद और जर्मनी में नाजियों के साथ-साथ उनकी अमानवीय नस्लवादी विचारधारा को पराजित किया गया। हिटलर की मौत यहूदियों द्वारा मुक्ति का दिन माना जाता है। जनवरी 2015 को, नाजी पोलैंड में ऑशविट्ज़ की मुक्ति की 60 वीं वर्षगांठ मनाई गई। इस कार्यक्रम में यूरोप और अमरिका के प्रमुखों ने भाग लिया। जो लोग हिटलर के उत्पीड़न से बच गए और जीवित हैं, उन्हें सम्मानित किया गया।
अपने इंटरव्यू में उन्होंने फिल्म ‘शिंडलर्स लिस्ट’ में दिखाए गए हिंसक दृश्य भी कमतर महसूस हो, इस तरह के डरावने अनुभव साझा किये। उन सभी से इंटरव्यू लेने वालों द्वारा एक ही सवाल पूछा गया था, “… क्या आपको लगता है कि नाजियों की हार के बाद, हिटलर की आत्महत्या के बाद, न्यूरेन्बर्ग के ऐतिहासिक फैसले के बाद, उन क्रूर प्रवृत्तियों को निर्णायक रूप से हराया गया है?”
उन सबका जवाब था, “नही, आज भी, लगभग हर देश में, हम उस अमानवीयता को कई तरीकों से देखते हैं। हम मानवाधिकार के हकों को लेकर संघर्ष जारी रहते हुए उनपर होनेवाले बेमुरव्वत और निरंतर हमले को भी देखते हैं।”
उन इंटरव्यू से व्यक्त होनेवाला दर्द वास्तविक था। ठीक 25 साल पहले, याने हिटलर की 50 वीं पुण्यतिथि पर एक अमेरिकी साप्ताहिक, ‘टाइम’ ने एक विशेष अंक प्रकाशित किया था। इसका शीर्षक ‘द एविल दैट विल नॉट डाई’ था, जिसका अर्थ है कि बुराई, अमानवीय, क्रूर, हिंसा अभी भी हर जगह है। मतलब यह कि अभी भी एक लंबा सफर तय करना है।
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यूरोप में क्या बदला
हिटलर की आत्महत्या के चार साल बाद, जर्मनी का आधिकारिक विभाजन हो गया। हालाँकि रूस, अमरिका, ब्रिटेन और फ्रान्स ने संयुक्त रूप से नाजी जर्मनी को हराया, लेकिन उनकी दोस्ती केवल 8 मई 1945 तक चली। यूरोप में नाजी सैनिकों ने उस दिन अपने हथियार डाल दिए।
जर्मनी के विभाजन से पहले ही, अमरिकी राष्ट्रपति हैरी ट्रूमैन और ब्रिटेन की जीत का चेहरा, विन्स्टन चर्चिल ने सार्वजनिक रूप से कहा था कि “कम्युनिस्ट रूस के साथ उनकी दोस्ती नाजियों की हार तक सीमित थी। अब आगे का संघर्ष समाजवादी विचारधारों के राष्ट्रों से, मतलब कम्युनिस्ट रूस के साथ होनेवाला हैं। यह संघर्ष लोकतंत्र और तानाशाही, पूँजीवाद और समाजवाद, व्यक्तिगत स्वतंत्रता और सामूहिकता के बीच होगा।”
यूरोप में युद्ध की समाप्ति के बाद भी, अर्थात्, जर्मनी के आत्मसमर्पण के बाद, नाजी के एशियाई मित्र, जापान आत्मसमर्पण नहीं कर रहा था। मित्र राष्ट्रों के चुनौती को जापान ने नजरअन्दाज कर दिया था।
जिसके जवाब में हैरी ट्रूमैन ने एक फैसला किया, जिसमें जापान द्वारा 1941 में पर्ल हार्बर के नौसैनिक अड्डे पर हमले के बदले अमरिका हिरोशिमा-नागासाकी पर परमाणु बम गिराने का तय हुआ। अमरिकी राष्ट्रपति के इस फैसले ने दुनिया के सभी संदर्भों को बदल कर रख दिया। आज तक हम उन्हीं परमाणु हथियारों की छाया में जी रहे हैं।
हिरोशिमा-नागासाकी के चार साल बाद, याने 1945 में कम्युनिस्ट रूस ने अपने परमाणु बम का परीक्षण किया। उसी साल, जर्मनी का विभाजन हुआ और दो अलग-अलग देश, पूर्वी और पश्चिमी जर्मनी का जन्म हुआ। हिटलर की राजनीति के परिणामस्वरूप लगभग 80 लाख जर्मन और 60 लाख यहूदी मारे गए। हालाँकि, जर्मनी भी बरबाद हो चुका था। इसके बाद कुछ सालों तक, ‘नाज़ी’ और ‘जर्मनी’ जैसे अलफाजों को समानार्थी शब्दों रूप मे इस्तेमाल में लाया गया।
शीत युद्ध का दौर
दुनिया में लोकतंत्र के पैर पसारने के आघात से 1980 में बर्लिन की दीवार गिर गई। है। 1990 में जर्मनी का एकीकरण हुआ। लेकिन इन पैंतालीस सालों (1945-1990) के दौरान, जर्मनी (मुख्य रूप से बर्लिन) को शीत युद्ध का केंद्र माना गया।
जब 1961 में बर्लिन की दीवार खड़ी की गई थी, तो अमेरिकी राष्ट्रपति जॉन एफ कैनेडी ने बर्लिन में सार्वजनिक रूप से घोषणा की थी कि “यह शीत युद्ध कभी भी भड़क सकता है।” अगर मान लो यह विस्फोट होता तो, तिसरा विश्वयुद्ध (परमाणु) भडक सकता था।
इस शीत युद्ध के अन्त के दौरान और उसके बाद भी हिटलरी प्रवृत्ति खत्म हो गई है, इसके कोई सबूत नहीं मिलते। यही कारण है कि ऑशविट्ज़ यातना शिविर में जीवित बचे उन लोगों आज भी नहीं लगता कि बुराई का अन्त हुआ हैं।
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बहु-जातीय संघर्ष
शीत युद्ध की समाप्ति के तुरंत बाद याने 1991 में यूगोस्लाविया के बहु-जातीय संघर्षो का आगाज हुआ। यूगोस्लाविया के सात क्षेत्र अर्थात् सर्बिया बनाम क्रोएशिया, सर्बिया बनाम बोस्निया, मैसेडोनिया बनाम स्लोवेनिया एक-दूसरे के विरुद्ध सशस्त्र रूप से खड़े थे। सोवियत संघ में कुछ गणराज्यों ने एक-दूसरे पर हमला करना शुरू कर दिया।
अर्मेनिया बनाम अजरबैजान, जॉर्जिया बनाम रूस और खुद रूस में रूस बनाम चेचन्या। इन सभी युद्धों में एक ही अत्याचार, एक ही उत्पीड़न, एक ही जेल, एक ही अन्याय, एक ही अन्याय दिखाई दिया। शीत युद्ध के अन्त के बाद शांति का एक नया दौर शुरू होने वाला आशावाद झूठा निकला।
शीत युद्ध समाप्त होने के उसी साल याने 1991 में, अमरिका ने कुवैत-मुक्ति मिशन के साथ इराक पर आक्रमण किया। जिसने मध्य-पूर्व में आग भडका दी और उससे चरमपंथ की एक नई लहर उठ खडी हुई। 11 सितंबर, 2001 को वर्ल्ड ट्रेड सेंटर पर चरमपंथी हमलों के बाद से सभी देश चरमपंथ के साये में जी रहे हैं।
जिस लापरवाही के साथ अमरिका ने अफगानिस्तान और फिर इराक पर हमला किया, इससे यह सवाल खडा होता है कि, क्या इस इतिहास से हमने कुछ सीखा भी है!
अमरिकी सैनिकों द्वारा अबू धारीब जेल में इराकी कैदियों पर किए गए अत्याचार नाजियों के बराबरी के थे। फिलिस्तीनी लोगों पर इजरायली यहूदी सैनिकों द्वारा किए गए अत्याचारों को देखते हुए, ऐसा नहीं लगता कि यहूदियों ने हिटलर के उत्पीड़न से कुछ सीखा।
आज दुनिया का एक भी देश ऐसा नहीं है जिसमें नाज़ी प्रवृत्ति न हो। आज हिटलर की आत्महत्या की 75वीं वर्षगांठ है। जबकि इस सारे इतिहास से निराश होना स्वाभाविक है, परंतु आशावाद के लिए अभी बहुत जगह है।
हर देश में इन बुरी प्रवृत्तियों को मिटाने के लिए पर्याप्त ताकतें हैं। वे अधिक साहस के साथ आगे आ रहे हैं। इसीलिए, मानव अधिकारों, लैंगिक समानता, लोकतंत्र, और शांति के लिए संघर्ष तेज हो रहे हैं।
जिन्होंने हिटलरवाद और फासीवाद को पराजित किया, उनकी विरासत चलाने वाले गांधीजी, नेल्सन मंडेला, मार्टिन लूथर किंग, इन्हीं विपरीत परिस्थितियों में पैदा हुए थे। उन्होंने मानवता के लिए संघर्ष में कुछ शानदार स्तरों को जीता हैं। वास्तव में संघर्ष बिकट है। लेकिन वह संघर्ष अब नहीं रुकेगा। मानव नैतिकता की अन्तिम जीत तक !
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