गांधीजी के निधन पर नेहरू ने कहा था ‘प्रकाश बुझ गया’

हात्तर साल पहले गांधीजी के निधन से देशभर मे शोक कि लहर पैदा हुई थी। इस दुखद घटना ने भारत ही नही बल्कि समूचे विश्व में शोक औऱ सन्नाटा छा गया था। बापू के अंत्य दर्शन के लिए अफगाणिस्तान, अल्जेरिया, अर्जेटिना, बेल्जियम, ब्रिटन, जपान, मलेशिया, इटली के पंतप्रधान, पाकिस्तान के गव्हर्नर जनरल मुहंमद अली जिना, भूटान के किंग, चीन, दुबई, जर्मनी आदी देशों के प्रमुख भारत पधारे थे।

निधन का समाचार मिलने के बाद पंतप्रधान पंडित नेहरू ने एक शोक संदेश प्रसारित किया था, आज गांधीजी के पुण्यतिथि के उपलक्ष्य में  हम फिर से आपके लिए दे रहे हैं…

मित्रो और साथियो, हमारे जीवन से प्रकाश जाता रहा और सब तरफ अँधेरा छा गया है। मैं नहीं जानता कि मैं आपसे क्या कहूँ। हमारे प्रिय नेता, जिन्हें हम बापू कहते थे, जो राष्ट्रपिता थे, अब नहीं रहे। शायद मेरा ऐसा कहना गलत है।

फिर भी हम उन्हें अब न देखेंगे, जैसा कि हम इन बहुत से वर्षों से देखते आए हैं। उनके पास दौड़ कर सलाह लेने या उनसे सांत्वना पाने के लिए अब हम न जा सकेंगे। यह एक भयानक आघात है केवल मेरे लिए ही नहीं बल्कि इस देश के करोड़ों लोगों के लिए। और इस आघात की व्यथा मेरे या अन्य किसी के परामर्श से कम नहीं हो सकती।

मैंने कहा कि प्रकाश जाता रहा, लेकिन मैंने गलत कहा; क्योंकि वह प्रकाश, जिसने कि इस देश को आलोकित किया, कोई साधारण प्रकाश नहीं था। जिस प्रकाश ने इस देश को इन अनेक वर्षों में प्रकाशमान हो रहे है वह आने वाले अनेक वर्षों तक इस देश को आलोकित करता रहेगा और एक हजार वर्ष बाद भी यह प्रकाश इस देश में दिखाई देगा और दुनिया इसे देखेगी और यह अनगिनत हृदयों को शांति देगा।

क्योंकि वह प्रकाश तात्कालिक वर्तमान से कुछ अधिक का प्रतीक था, वह जीवित और शाश्वत सत्यों का प्रतीक था और हमें बेहतर मार्ग का स्मरण दिलाते हुए तथा इस प्राचीन देश को भूलों से बचाते हुए स्वतंत्रता की ओर ले जाने वाला था।

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यह सब तब हुआ है, जबकि उनके सामने बहुत कुछ और करने को था। हम उनके संबंध में ऐसा कभी नहीं सोच सकते थे कि उनकी आवश्यकता नहीं रही या यह कि उन्होंने अपना काम पूरा कर दिया। लेकिन अब, विशेष रूप से, जबकि हमारे सामने इतनी कठिनाइयां हैं, उनका हमारे बीच में न होना एक ऐसी चोट है जिसका सहन करना बड़ा कठिन है।

एक पागल आदमी (नथुराम गोडसे) ने उनके जीवन का अन्त कर दिया। जिसने ऐसा किया उसे में पागल ही कह सकता हूँ। फिर भी, पिछले वर्षों और महीनों में देश में काफी विष फैलाया गया है और उस विष ने लोगों के मन पर अपना असर डाला है।

हमें इस विष का सामना करना है, हमें इस विष को जड़ से उखाड़ना है, और हमें उन सभी संकटों का सामना करना है, जो कि हमें घेरे हुए है। और उनका सामना करना है, पागलपन या बुराई से नहीं, बल्कि उसी ढंग से, जिस ढंग से कि हमारे प्रिय नेता ने हमे सिखाया हैं।

अब पहली बात याद रखने की यह है कि हममें से किसी को क्रोध के आवेश में कदापि कोई अनुचित कार्य नहीं करना है। हमें सशक्त और दृढ़ निश्चयी लोगों की भांति आचरण करना है

सभी संकटों का जो हमें घेरे हुए हैं, दृढ़ता से सामना करते हुए और अपने महान शिक्षक और महान नेता की उन आज्ञाओं का, जो उन्होंने दी है, दृढ़ता से पालन करते हुए और सदा यह याद रखते हुए आचरण करना है कि यदि, जैसा मुझे विश्वास है उनकी आत्मा हमें देख रही है, तो किसी भी बात से उनकी आत्मा इतनी अधिक अप्रसन्न नहीं हो सकती जितनी कि यह देख कर कि हमने कोई निकृष्ट आचरण किया है या कोई हिंसा का काम किया है।

इसलिए हमें ऐसा काम न करना चाहिये। लेकिन इसका यह तात्पर्य नहीं कि हम कमजोरी दिखलावें, बल्कि यह कि हमें मजबूती से और मिल-जुल कर अपने आगे की सब कठिनाइयों का सामना करना चाहिए। हम एक साथ मिल कर रहना चाहिए और इस महान विपत्ति के सामने अपनी छोटी-छोटी तकलीफों और कठिनाइयों और आपस के झगड़ों का अन्त कर देना चाहिए।

यह महान दुर्घटना हमारे लिए इस बात की द्योतक है कि हम जीवन की सभी बड़ी बातों को याद रखें और उन सभी छोटी बातों को, जिनका हम जरूरत से अधिक ध्यान करते रहे हैं, भूल जावें। अपनी मृत्यु द्वारा उन्होंने हमें जीवन की बड़ी बातों का, उस जीवित-सत्य का, स्मरण दिलाया है, और यदि हम इसे याद रखते हैं, तो भारत का भला होगा।

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कुछ मित्रों का प्रस्ताव था कि महात्मा गांधी का शव कुछ दिनों तक लेपादि (दवाई का लेप लगाकर) द्वारा सुरक्षित रखा जाए, जिससे कि करोड़ों व्यक्ति उन्हें अपनी अंतिम श्रद्धांजलि भेंट कर सकें।

लेकिन यह उनकी इच्छा थी, और इसे उन्होंने बार-बार दोहराया था कि ऐसी कोई बात न होनी चाहिए। हमे ऐसा न करना चाहिए। वे (गांधी) लेपादि द्वारा शरीर को सुरक्षित रखने के घोर विरोधी थे। इसलिए हम लोगों ने उनकी इच्छा का पालन करने का निश्चय किया, दूसरों की इच्छा इससे भिन्न चाहे जितनी रही हो।

इसलिए शनिवार (31 अक्तूबर) को दिल्ली शहर में यमुना नदी के किनारे उनका दाह-संस्कार होगा। शनिवार को दोपहर से पहले 11:20 बजे बिड़ला भवन से उनकी अर्थी निकाली जायगी और यह एक पूर्व निश्चित मार्ग से चलकर यमुना नदी तक जायगी।

शाम के लगभग 4 बजे दाह संस्कार होगा। स्थान और मार्ग की सूचना रेडियो तथा समाचार-पत्रों द्वारा दे दी जायगी। दिल्ली के लोगों को, जो अपनी अंतिम श्रद्धांजलि भेंट करना चाहें, इस मार्ग के किनारे इकट्ठे हो जाना चाहिए। में यह सलाह न दूंगा कि बहुत लोग बिड़ला भवन में आवें, बल्कि यह कि बिड़ला भवन से लेकर यमुना तक के इस लम्बे मार्ग के दोनों ओर एक, हो जायें।

में उम्मीद करता है कि वे शांतिपूर्वक और बिना प्रदर्शन के ऐसा करेंगे। इस महान आत्मा को श्रद्धांजलि अर्पण करने का यही सबसे अच्छा और उपयुक्त ढंग होगा। इसके अतिरिक्त शनिवार हम सबके लिए उपवास तथा प्रार्थना का दिन होना चाहिए।

जो लोग दिल्ली से बाहर भारत में अन्य जगहों में रहते हैं, वे भी निस्संदेह इस अंतिम श्रद्धांजलि में, जिस रूप में उनसे होगा, भाग लेंगे। उनके लिए भी यह दिन उपवास और प्रार्थना का होना चाहिए। और दाह-कर्म के लिए निश्चित समय पर, यानी शनिवार को सायंकाल 4 बजे लोगों को नदी अथवा समुद्र तट पर जाकर प्रार्थना करनी चाहिए।

जब हम प्रार्थना करें, तो सबसे बड़ी प्रार्थना यह होगी कि हम इस बात की प्रतिज्ञा करें कि अपने को सत्य के लिए और उस उद्देश्य के लिए, जिसके लिए हमारा यह महान देशवासी जीवित रहा और मरा, हमे अपने को अर्पित करेंगे। यही सबसे अच्छी प्रार्थना है जो हम उनके और उनकी स्मृति के प्रति भेंट कर सकते हैं। यही सबसे अच्छी प्रार्थना है जो कि हम भारत और अपने लिए कर सकते हैं।

जय हिन्द।

(30 जनवरी, 1948 को नई दिल्ली से प्रसारित भाषण)

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