न्यूज़ चैनलों के ग़ुलामों से संवाद समय की बर्बादी

प किससे उम्मीद कर रहे हैं? भारत का 99.999 प्रतिशत मीडिया गोदी मीडिया है। यह एक परिवार की तरह काम करता है। इस परिवार के संरक्षक का नाम आप जानते हैं। इस परिवार में सारे एंकर और चैनलों के मालिक अर्णब ही हैं।

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क्या न्यूज़ चैनल मुल्क और जनता की पीठ में छुरा घोंप रहे हैं?

रेटिंग को लेकर जो बहस चल रही है उसमें उछल-कूद से भाग न लें। ग़ौर से सुनें और देखें कि कौन क्या कह रहा है। जिन पर फेक न्यूज़ और नफ़रत फैलाने का आरोप है वही बयान जारी कर रहे हैं कि इसकी इजाज़त

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अच्छी खबरें ही देखें‚ ‘भोंपू़ मीडिया’ को करें खारिज

कुछ दिनों पहले सुप्रीम कोर्ट ही नहीं‚ कम से कम देश के दो उच्च न्यायालय मीडिया में खबरों (ॽ) के गिरते स्तर को लेकर चिंतित रहे। सुप्रीम कोर्ट ने एक कार्यक्रम को राष्ट्र के लिए अहित करने वाला बता कर रोका तो बॉम्बे हाई

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मीडिया के बिगड़ने में बहुसंख्यकवादी राजनीति का रोल

भारत की मीडिया के सामने इस समय सबसे बड़ा सवाल उसकी साख, उसकी भटकती भूमिका और भाषा के गिरते स्तर को लेकर है। ऐसे में ये सवाल उठना भी लाज़मी है कि दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र होने और स्वतंत्र एवं निष्पक्ष मीडिया

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‘गोदी मीडिया’ के खिलाफ दायर जमीअत के याचिका में क्या हैं?

देश के बेलगाम टीवी चैनलों पर कानूनी अंकुश लगाने की पहल जमीअत उलेमा ए हिन्द (Jamiat e Ulema Hind) ने कर दी है। 6 अप्रेल 2020 के जमीअत की कानूनी इम्दाद कमेटी द्वारा इलेक्ट्रॉनिक और प्रिंट मीडिया के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट (Supreme court) में

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