गांधीहत्या को लेकर सरदार पटेल ने दिखाई थी उपेक्षा

हात्मा गांधीजी के हत्या का मुकदमा सिधा और स्पष्ट था। परंतु आज 70 साल बाद गांधी हत्या को लेकर गोडसे और सावरकर का महिमामंडन किया जा रहा हैं। झुठी कहानियाँ गढकर और फेक न्यूज को आधार बनाकर गोडसे को दोषमुक्त करने का प्रयास किया जा रहा हैं।

इतना ही नही बल्कि गांधी हत्या करनेवाला गोडसे एक महापुरुष था, उसने हत्या कर अच्छा काम किया, इस तरह के बयान दिए जा रहे हैं। तत्कालीन शिक्षा मंत्री मौलाना आजाद नें अपनी आत्मकथा ‘इंडिया विन्स फ्रीडम’ गांधी हत्या का आँखोदेखा हाल बयाँ किया हैं। साथ उनका मानना हैं कि गांधी हत्या के लिए गृहमंत्री सरदार पटेल जिम्मेदार थें। इनका मानना था कि अगर पटेल सुरक्षा में चुक नही करते तो गांधी जिन्दा रहते। आज़ाद लिखते हैं,

तीस जनवरी, 1948 को मैं दोपहर बाद ढाई बजे गांधी जी के पास गया। मुझे कुछ आवश्यक मसलों पर उनसे विचार-विमर्श करना था और मैं एक घंटे से कुछ अधिक समय तक उनके पास बैठा। तब मैं घर लौट आया परंतु लगभग साढ़े पाँच बजे मुझे यकायक याद आया कि अभी कुछ ऐसे महत्त्वपूर्ण मसले शेष रह गए हैं जिनके बारे में गांधी जी की सलाह लेनी थीं।

मैं वापस बिड़ला हाउस गया और जब मैंने वहाँ के फाटक बंद देखे तो मुझे बड़ा आश्चर्य हुआ। हजारों लोग घास पर खड़े थे और भीड़ बढ़ती-फैलती सड़क तक आ गई थी। मैं समझ नहीं सका कि बात क्या हैं परंतु जैसे ही लोगों ने मुझे देखा तो मेरी कार निकलने के लिए स्थान खाली कर दिया।

मैं फाटक के पास उतर गया और गांधी जी के आवास की ओर बढ़ गया। उनके आवास के द्वार बंद थे, भीतर से भी चटकनी लगी हुई थी। एक व्यक्ति ने अंदर से मुझे शीशे में से झाँककर देखा और मुझे अंदर ले जाने के लिए वह बाहर आया। जैसे ही मैं भीतर घुस रहा था, किसी ने रोते-रोते कहा, ‘‘गांधी जी को किसी ने गोली मार दी हैं और वे अचेत पड़े हैं।’’

मैं यह समाचार सुनकर सन्न रह गया। कैसी अप्रत्याशित घटना थी। मैं समझ नही पाया कि जो कुछ मुझसे कहा गया हैं, उन शब्दों के अर्थ क्या हैं। मेरी सामने अंधेरा छा गया। मैं गांधी जी के कमरे तक गया। मैंने देखा कि वे फर्श पर पड़े थे। उनका चेहरा पीला था और आँखें बंद थी। उनके दो नाती उनके पैर पकड कर रो रहे थे। मैंने सुना, मानो सपने में कोई कह रहा हो, ‘‘गांधी जी नहीं रहे।’’

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उपसंहार

गांधी जी की हत्या से एक युग समाप्त हो गया। मैं आज के दिन भी यह नहीं भूल पाता कि हम आधुनिक भारत के महान सपूत के जीवन की रक्षा करने में नितांत असफल रहे। बम दुर्घटना के बाद दिल्ली की पुलिस और सीआईडी से आशा करना स्वाभाविक था कि वे गांधी जी का सुरक्षा के लिए विशेष प्रबंध कर लेंगे।

यदि एक साधारण व्यक्ति के जीवन पर घातक हमला होता हैं तो पुलिस उसकी विशेष देख-रेख करती हैं। यदि किसी को धमकी भरे पत्र या पैंफ्लेट मिले तो उसकी सुरक्षा के लिए पुलिस सतर्क हो जाती हैं।

गांधी जी के संबंध में केवल पत्र, पैंफ्लेट और सार्वजनिक रूप से धमकियाँ नहीं दी गई थीं, अपितु वास्तव में उन पर बम भी फेंका गया था। समसामयिक भारत के सबसे महान व्यक्तित्व के जीवन का प्रश्न था परंतु फिर भी कोई कारगर कदम न उठाए गए थें।

स्थिति यह नहीं थी कि इस प्रकार के कदम उठाना कोई कठिन काम हों। प्रार्थना सभाएँ खुले मैदान में नहीं हुआ करती थीं परंतु इन प्रार्थना सभाओं का आयोजन बिड़ला हाउस की हरी घास पर होता था। यह स्थान चारों ओर ऊँची दीवार से घिरा हुआ था। आने-जाने वाले लोगों के लिए बिड़ला हाउस का मुख्य द्वार ही था। पुलिस के लिए बहुत ही आसान काम था कि गेट में से लोगों के आते-जाते समय उनका जाँच-पड़ताल कर ली जाए।

जब यह दुःख भरी घटना घटित हो गई तो दर्शकों की गवाही से पता चला कि हत्यारा बहुत ही संदेहास्पद ढंग से अंदर आया था। उसकी हरकतें और बातें ऐसी थीं कि खुफिया पुलिस उस पर नज़र रख सकती थी और उस पर नज़र रखनी चाहिए भी थीं। यदि पुलिस ने कोई कार्रवाई की होती तो वह पकड़ा जा सकता था और उसे निहत्था किया जा सकता था।

वह बेरोक-टोक रिवाल्वर लेकर अंदर तक चला गया। जब गांधी जी प्रार्थना सभा में पहुंचे तो वह उठ खड़ा हुआ और गांधी जी के सामने आकर बोला, ‘‘आज आप को देर हो गई।’’ गांधी जी नें उत्तर दिया, ‘‘हाँ’’ वह और कोई शब्द बोल पाते कि हत्यारे ने पहले ही तीन गोलियाँ दाग दीं जिनसे गांधी जी के अमूल्य जीवन का अंत हो गया।

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इन सभी मामलों में सबसे अधिक ध्यान देने की बात यह हैं कि सरदार पटेल गांधी जी के विरोधी बन गए थे। वे गांधी जी के उस विरोधी हो गए थे जब गांधी जी ने मुसलमानों की सुरक्षा के मसले पर अनशन किया था।

पटेल ने यह महसूस किया था कि वह अनशन उनके विरुद्ध किया गया हैं। यही कारण हैं कि उन्होंने उस समय दिल्ली में ठहरने से इनकार कर दिया जब उनसे बंबई न जाने का आग्रह किया था।

उनके रूख का विपरीत प्रभाव पुलिस पर पड़ा। स्थानीय पुलिस अधिकारी सरदार पटेल के आदेशों का रहते थे और जब स्थानीय पुलिस अधिकारियों ने देखा कि सरदार पटेल ने गांधी जी की सुरक्षा के लिए विशेष आदेश नहीं दिए हैं तो उन्होंने यह आवश्यक नहीं समझा कि सुरक्षा के विशेष प्रबंध किए जाएँ।

गांधी जी की मृत्यु से पहले पटेल ने उनके प्रति जो उपेक्षा दिखाई थी, उसे लोग जानते थे। जब यह भीषण दुर्घटना घट गई तो देश में रोष की एक लहर दौड़ गई। कुछ लोग खुले आम सरदार पटेल को उनकी अक्षमता अथवा काम करने के गलत तरीके के लिए उन पर आरोप लगाने लगे। जयप्रकाश नारायण ने इस मसले को उठाने में काफी साहस का परिचय दिया।

दिल्ली में गांधी जी की हत्या के फलस्वरूप उत्पन्न संत्रास और उनके प्रति श्रद्धा तथा शोक व्यक्त करने के लिए एक आम सभा आयोजित की गई, जिसमें जयप्रकाश नारायण ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि हिंद सरकार के गृहमंत्री इस हत्याकांड के उत्तरदायित्व से बच नहीं सकते। उन्होंने सरदार पटेल से यह जानना चाहा कि गांधी जी की सुरक्षा के विशेष उपाय क्यों नहीं किए गए जबकि उनकी हत्या करने के लिए खुले आम लोगों को उकसाया जा रहा था और सचमुच उन पर बम फेंका जा चुका था।

कलकत्ते के श्री प्रफुल्ल चंद्र घोष ने भी यही प्रश्न उठाया। उन्होंने हिंद सरकार की निंदा की कि वे गांधी जी के अमूल्य जीवन को नहीं बचा सकी। उन्होंने कहा कि गांधी जी ने ही सरदार पटेल को उनके जीवन में राजनीतिक प्रतिष्ठा दिलाई थी और सरदार पटेल एक कुशल और सबल गृहमंत्री के रूप में प्रसिद्ध थे। ऐसी स्थिति में सरदार पटेल के पास क्या उत्तर हैं कि गांधी जी के प्राण बचाने के लिए कोई प्रयत्न नहीं किया गया?

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सरदार पटेल ने इन सभी आरोपों का उत्तर अपने विशेष ढंग से दिया। इसमें कोई संदेह नहीं कि सरदार पटेल को इस अनहोनी त्रासदी से गहरा सदमा पहुँचा था। परंतु लोग जिस प्रकार खुले आम उन पर आरोप लगा रहे थे, उससे उनको रोश भी बहुत था। जब काँग्रेस की संसदीय पार्टी की बैठक हुई तो उन्होंने कहा का काँग्रेस के दुश्मन मेरे विरुद्ध इस तरह के आरोप लगाकर काँग्रेस में फूट डालने प्रयत्न कर रहे हैं।

उन्होंने इस बात को दोहराया कि वे गांधी जी के प्रति प्रेम, आगाध श्रद्धा रखते थे और पार्टी को ऐसे आरोपों से प्रभावित नहीं होना चाहिए, बल्कि इस विषम स्थिति में एक होकर खड़े होना चाहिए। यह ख़तरनाक स्थिति गांधी जी की मृत्यु के बाद पैदा हो गई हैं। उनकी अपील का प्रभाव हुआ। काँग्रेस पार्टी के कई सदस्यों ने उन्हें आश्वस्त किया कि हम लोग आपका साथ देगे।

देश के अलग-अलग भागों में कुछ छुट-पुट हिंसात्मक घटनाएं हुई थी। जिसे पता चलता हे कि इधर कुछ वर्षों में सांप्रदायिकता का विष कितने व्यापक रूप से फैल रहा था। जब सारा देश इस हत्याकांड के कारण शोकाकुल था तो कुछ लोगों ने हर्शोल्लास से मिठाइयाँ बाँटी और उत्सव मनाए। ग्वालियर और जयपुर जैसे नगरों में विशेष रूप से यह बात कही गई।

जब मैंने सुना कि नगरों में खुले आम मिठाइयाँ बाँटी गई और कुछ लोगों ने सार्वजनिक खुशियाँ मनाने की धृष्टता की तो मेरे मन को बहुत चोट लगी परंतु उन हर्शोल्लास क्षणिक ही था।

समूचा राष्ट्र शोक से अभिभूत था और जनता के की ज्वालाएँ उन लोगों के आगे बढ़ी जो गांधी जी के विरोधी समझे जाते थे। त्रासदी के बाद दो या तीन सप्ताह तक हिंदू महासभा अथवा राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के नेतागण बाहर नहीं निकल सके और जनता का सामना नहीं कर पाए।

श्यामा प्रसाद मुकर्जी उस समय हिंदू महासभा क अध्यक्ष थे और केंद्र सरकार एक मंत्री थे। उन्होंने अपने घर से निकलने का साहस नहीं किया और कुछ समय बाद उन्होंने महासभा से त्यागपत्र दे दिया। धीरे-धीरे इस स्थिति में सुधार हुआ। और कुछ समय बाद लोगों के मन स्थिर हुए।

हत्यारे गोडसे पर मुकदमा चलाया गया, परंतु उसके विरुद्ध मुकदमा तैयार करने में अधिक समय लगा। पुलिस ने जाँच-पड़ताल में महीनों लगा दिए क्योंकि यह लग रहा था कि गांधी जी की हत्या के लिए बड़ा लंबा शड्यंत्र रचा गया हैं। गोडसे की गिरफ्तारी से जनता की प्रतिक्रिया का पता चलता था कि कैसे सांप्रदायिक विष कुछ लोगों के भीतर तक प्रवेश कर चुका हैं।

अधिकांश भारतीयों ने गोडसे की घोर निंदा की और उसकी तुलना जुडास से की, लेकिन संभ्रांत परिवारों की कुछ महिलाओं ने उसके लिए बुनकर एक स्वेटर भेजा। उसकी रिहाई के लिए एक आंदोलन भी चलाया गया। उसके समर्थकों ने खुलकर उसकी करतूत का समर्थन नहीं किया अपितु यह कहा कि चूंकि गांधी जी अहिंसा में विश्वास रखते थें इसलिए उनके हत्यारे को फाँसी नहीं दी जानी चाहिए।

जवाहरलाल को तार भेजे गए कि गोडसे को फाँसी देना गांधी जी के सिद्धान्तों के विरुद्ध होंगा कानून का चक्र अपने ढंग से घूमा और उच्च न्यायालय ने उसकी सज़ा बहाल रखी। 

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