आज के मोहर्रम पर हिन्दू संस्कृति का प्रभाव

हैदराबाद मध्यकाल से ही दक्षिण भारत का एक अहम शहर है। दकन के हर छोटे बडे शहर पर हैदराबादी संस्कृति का प्रभाव आज भी कायम है। शहर हैदराबाद चौदहवीं सदी से शिया संस्कृति का आश्रयस्थान माना जाता है। इसी वजह से यहां का मोहर्रम

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सांप्रदायिक राजनीति में अंधविश्वास का बिजनेस मॉडल

सात साल पहले (20 अगस्त 2013), हुई डॉ. नरेंद्र दाभोलकर की क्रूर हत्या अंधश्रद्धा व अंधविश्वास के खिलाफ सामाजिक आंदोलन के लिये एक बड़ा आघात है।

पिछले कुछ दशकों में तार्किकता और सामाजिक परिवर्तन को बढ़ावा देने का काम मुख्यतः जनविज्ञान कार्यक्रम कर रहे …

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क्यों जरुरी हैं इतिहास लेखन और राष्ट्रवाद की पुनर्व्याख्या?

हुसंख्याक समाज कि संस्कृति और धर्म से प्रेरित शासनव्यवस्था, पूंजीपतीयों के हितरक्षा से प्रेरित अर्थव्यवस्था तथा धर्मवादी सोच को प्रमाणित कर रहे माध्यमों के इस दौर में राष्ट्रवाद की बेहद गलत व्याख्या को प्रस्तुत किया जा रहा है।

अब राष्ट्रवाद बस किसी धर्म

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क्या, कम्युनिस्ट होना था अन्नाभाऊ के उपेक्षा की वजह?

ग बदल घालूनी घाव, (दुनिया बदल दे..) सांगून गेले मला भीमराव, (कह चले भीमराव) गीत में अन्नाभाऊ कहते हैं, ‘पूंजीपतीयोंने हमेशा लुटा हैं, धर्मांधों ने छला हैं’, गीत में, जाति और वर्ग के शोषण के

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अन्नाभाऊ ने आम लोगों को संस्कृति से जोडा था

दूसरे विश्व युद्ध के दौरान, फासीवादी हिटलर ने सोवियत रूस पर आक्रमण किया। लाल सेना ने हिटलर के फासिवाद के खिलाफ जोरदार संघर्ष किया। इस सबका बख़ान करनेवाला एक पोवाडा अन्नाभाऊ नें 1942 में लिखा। जिसे काफी लोकप्रियता मिली। मुंबई में मज़दूर आंदोलनों

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अन्नाभाऊ साठे : कैडर कैम्प से निकला वैश्विक नेता

एक जुट का नेता हुआ मजदूर तैय्यार!

बदलने दुनिया सारी गरज रही ललकार!

सदा लडे, मरने से उसे ना मिले शांति

मर मर के दुनिया सजा के जीने की भ्रांति

उठा क्रोध से लडाई लडने

तूफान बाँध कर बाँध तोडने

निश्चय हुआ पैर उठे

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ईद-उल-जुहा ऐसे बनी इस्लामी तारीख़ की अज़ीम मिसाल

द-उल-जुहादीन-ए-इस्लाम का दूसरा सबसे बड़ा त्योहार है। यह त्यौहार बकरा ईद, ईद-उल-अजहा, सुन्नत-ए-इब्राहीमी और ईदे कुर्बां के नाम से भी जाना जाता है। जिस तरह से ईद उल फितर रमज़ान की खुशी में मनाया जाता है, ठीक उसी

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अन्नाभाऊ ने जो देखा-भोगा उसे ही शब्दों का रूप दिया

हाराष्ट्र में दलित साहित्य की शुरुआत करने वालों में अन्नाभाऊ का नाम अहमियत के साथ आता है। वे दलित साहित्य संगठन के पहले अध्यक्ष रहे। इसके अलावा भारतीय जन नाट्य संघ (इप्टा) ने उन्हें जो जिम्मेदारियां सौंपी, उन्होंने उनका अच्छी तरह से निर्वहन

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इन्सानियत को एक जैसा रख़ती हैं भक्ति-सूफी परंपराएं

क्ति-सूफी परंपराएं मानवता को एक करती हैं चाहे मुद्दा चरमपंथी हिंसा का हो या संकीर्ण राष्ट्रवाद का, दुनिया के सभी हिस्सों में धर्म के मुखौटे के पीछे से राजनीति का चेहरा झांक रहा है। 

वर्तमान दौर में धार्मिक पहचान का इस्तेमाल, राजनैतिक

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इतिहास सोया हुआ शेर हैं, इसे मत जगाओं

खनऊ के गन्ना संस्थान के हॉल में 2 जुलाई 1990 को ‘पयामे इन्सानियत’ अधिवेशन आयोजित किया गया था। उसमें इस फोरम के संस्थापक और धार्मिक विद्वान मौ. अबुल हसन अली नदवी (अली मियाँ) ने एक भाषण दिया था।

जिसे बाद में ‘पयामे इन्सानियत फोरम’ …

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