राष्ट्रकूट राजाओं से मुग़ल, सात सुल्तानों का पसंदिदा शहर कंधार

तिहास का तआल्लूक जमाना ए माज़ी के गुजरे हुये वाकियात से हैं। माज़ी के वाकियात का इल्म हमें कैसे हुआ? इस तआल्लकूक से हमारी अक्ल सोच में पड़ जाती हैं। लेकिन आज भी बहुत सी ऐसी चिजे मौजूद हैं, जिन्हें हमारी

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आज भी हर पहली तारीख़ को बजता हैं क़मर जलालाबादी का गीत

मर जलालाबादी अपने नाम के ही मुताबिक फिल्मी दुनिया आकाश के ‘क़मर’ थे। ऐसे चांद, जिनके गानों से दिल आज भी मुनव्वर होते हैं। पूरी चार दहाई तक उनका फिल्मों से वास्ता रहा और इस दौरान उन्होंने अपने चाहने वालों को अनेक सदाबहार, मदहोश …

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आरएसएस के स्वाधीनता संग्राम के हिस्सेदारी की पड़ताल

मारे देश के सत्ताधारी दल बीजेपी के पितृ संगठन आरएसएस के स्वाधीनता संग्राम में कोई हिस्सेदारी न करने पर चर्चा होती रही है। पिछले कुछ सालों में संघ की ताकत में आश्चर्यजनक वृद्धि हुई है और इसके साथ ही इस संगठन के कर्ताधर्ताओं ने

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कौन था मीर जुमला जिसने मुगलों के लिए खोला दकन का द्वार?

मीर जुमला (Mir Jumla) महज एक साधारण जनरल था। उसका पूरा नाम मीर जुमला मीर मुहंमद सईदथा। इतिहासकार जदूनाथ सरकार के अनुसार, “वह एक ईरानी व्यापारी था, जो शुरुआत में गोलकुण्डा में हीरे का कारोबार करता था।

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मुसलमानों कि स्मृतियां मिटाने कि वजह क्या हैं?

हाल में हरियाणा के मुख्यमंत्री एम. एल. खट्टर की ओर से जारी एक प्रेस विज्ञप्ति में बताया गया कि हरियाणा सरकार ने फरीदाबाद के खान अब्दुल गफ्फार खान अस्पताल का नाम बदल कर अटल बिहारी वाजपेयी के नाम पर रखने का निर्णय

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चीन मामले में नेहरू फर्जी राष्ट्रवादी नहीं थे!

भी हाल ही में आई मेरी किताब ‘Our Hindu Rashtra: What It Is. How We Got Here’ के सिलसिले में मेरा इंटरव्यू लेते हुए सवाल पूछा गया कि हिन्दुत्व आखिर नेहरू से इतनी नफरत क्यों करता है? यह एक रोचक सवाल था और

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दारा शिकोह इतिहास में दु:खद रूप में क्यों हैं चित्रित?

ब शहज़ादा दारा शिकोह सिर्फ सात साल के थे, तब उनके पिता शहज़ादा खुर्रम ने अपने दो बड़े भाइयों के होते हुए भी साम्राज्य का दावा करने के लिए सम्राट जहाँगीर के खिलाफ विद्रोह कर दिया। विद्रोह के सफल होने के अवसर बहुत

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बादशाह खान का नाम हटाना ‘भारत रत्न’ का अनादर तो नही!

रियाणा के फरिदाबाद में बीते दिनों एक अनहोनी घटना हुई, जिसे सरकार का संरक्षण प्राप्त था। तीन दिसम्बर को यहां के एक सरकारी अस्पताल का नाम बदला गया। वैसा भाजपाई राज में नामों को बदलना अब आम हो गया हैं। पर यह नाम

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औरंगाबाद के इतिहास को कितना जानते हैं आप?

न दिनों महाराष्ट्र कि सांस्कृतिक राजधानी कहे जाने वाले औरंगाबाद के शहर की चर्चा आम हैं। बीते तीन दशक से इस शहर के नाम बदलने कि कोशिशे चल रही हैं। पर इस शहर के विकास का इतिहास क्या हमें ज्यादा कुछ पता नही है

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दकनी सुलतानों को ‘गरीबों का दोस्त’ क्यों बुलाते थे?

ध्यकाल में दकन सांस्कृतिक केंद्र बन कर उभरा। जिसमें मुग़लों के साथ कई दकनी सल्तनतों ने इसके विकास में अपना महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है।

गोलकुंडा कि कुतुबशाही और बीजापुर कि आदिलशाही तथा अहमदनगर की निजामशाही ने दकन में कई सांस्कृतिक मापदंड खडे किये। जिनमें

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