जिन्दगी के पाठशाला ने बनाया अन्नाभाऊ को ‘लोकशाहीर’

न्नाभाऊ साठे की पहचान पूरे देश में एक लोकशाहीर के तौर पर है। खास तौर पर दलित, वंचित, शोषितों के बीच उनकी छवि एक लोकप्रिय जनकवि की है।

उन्होंने अपने लेखन से हाशिये के समाज को आक्रामक जबान दी। उनमें जन चेतना फैलाई। उन्हें

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छोटे भाई टैगोर की मुख़रता से स्वर्णकुमारी रही उपेक्षित लेखिका

बात कितनी अजीब थी कि अच्छे परिवार, वैचारिक और आर्थिक समृद्धता, अपने राष्ट्रवादी विचारों और उदार दृष्टि के बावजूद स्वर्णकुमारी देवी (28 अगस्त 1855 – 3 जुलाई 1932) को अपने ही परिवार से वैसा उत्साहवर्द्धन नहीं मिला, जिससे वह

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क्या कलासक्त होना था व़ाजिद अली शाह के गिरते वैभव कि वजह?

वाब वाज़िद अली शाह का नाम आते ही तमाम ख़ुशरंग-बदरंग ख़याल जेहन में उभर आते हैं। एक शासक के रूप में उनकी इतनी थुक्का- फ़जीहत की गई है कि लख़नऊ से आपका लगाव और जुड़ाव आपको शर्मसार कर देता है। ख़राब और गैरजिम्मेदार शासक

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कवि नही दर्द की जख़िरा थे सय्यद मुत्तलबी फ़रीदाबादी

र्दू शायरी के बारे में एक आम राय यह है कि वह ऊंचे तबके के शहरी लोगों की शायरी है जिसका गांव के जीवन और ग़रीब लोगों से कोई ताल्लुक नहीं है। लेकिन उर्दू में ऐसे शायरों की कमी नहीं है जिन्होंने अवाम की

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यूसुफ़ मेहरअली : भुलाये गए ‘लोकनायक’

यूसुफ़ मेहरअली का नाम शायद ही आज के पिढ़ी के नौजवानो को पता होगा, मग साधारण सी कद काठी सा दिखनेवाला यह इन्सान भारत के उन महामानवों कि सूची मे है, जिन्होंने स्वाधीनता के लिए अपने जान कि भी परवाह नही की। उनके करीबी …

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‘गलवान’ सीमा विवाद में गुलाम रसूल कि कहानी क्या हैं?

भारत-चीन तनातनी को लेकर ‘गलवान घाटी’ का नाम बीते कुछ दिनों से चर्चा में हैं। इतिहास में यह जगह एक ऐसे व्यक्ति के नाम दर्ज हैजिसने गलवान नदी के मूल स्त्रोत का पता लगाया था।

इसी शख्स के नाम उस

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समाज बुद्धिजीवी बने यहीं था मोईन शाकिर का सिद्धान्त

पंधरा साल का एक लडका घर कि अमीरी, रुतबा और तामझाम से तंग आकर हमेशा के लिए घर छोड देता हैं। जाते जाते अब्बू कहते हैं, “तूम जा तो रहे हैं, मगर तुम्हें इस घर से कुछ नही मिलेंगा। जमीन, जायदाद से तूम बेदखल …

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मलिक अम्बर कैसे बना हब्शी गुलाम से सर्वोच्च सेनापति?

ध्यकालीन इतिहास का सबसे कीर्तिमान सेनापति, मुत्सद्दी, न्यायप्रिय, लोकप्रिय और बेहतरीन प्रशासक जिसका नाम स्वर्णिम अक्षरों में लिखा गया है और जिसकी गवाही खुद इतिहास देता है, वह है आदिवासी मुस्लिम सुपुत्र मलिक अम्बर।

एक बाजार में बेचें गए गुलाम से लेकर सर्वोच्च सेनापति …

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शिबली नोमानी कैसे बने ‘शम्स उल उलेमा’?

क नौज़वान आज़मगढ़ से लाहौर के लिए निकला। उसके जेब में केवल 25 रुपये थे। आज़मगढ़ से जौनपुर तक उसने घोडागाड़ी कि यात्रा की जिसमें 3 रुपये खर्च हो गए। जौनपुर से रेल के जरिए वह सहारनपुर पहुंचा, जिसमें 7 रुपये लगे। सहारनपुर

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स्वदेशी आग्रह के लिए गांधी से उलझने वाले हसरत मोहानी

क गठीला नौजवान अलीगढ़ कॉलेज के छात्रावास में दाखील हुआ। उसकी पेशानी चौडी थी और चेहरा पसरा हुआ गोल, आँखों पर चष्मा, खुबसुरत शेरवानी, हवा से लहराता हुआ पजामा, चेहरे पर तराशी हुई लंबी सी दाढी, बगल में कपडों कि अटैची और एक हाथ

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