मुहंमद कुली क़ुतुब शाह को अपने आबा व अजदाद के मुकाबले बहोत कम उम्र मिली थी। दुसरी तमाम बातों में कुदरत ने इनपर बड़ा करम किया था। मालो व दौलत, फतेह व कामरानी, अमन व इत्मिनान जितना इनको मिला था उतना किसी क़ुतुब शाही हुक्मरान को नहीं मिला था।
इनकी ऐश व इशरत की जिन्दगी ने इसकी सेहत पर बहोत बुरा असर डाला। उसकी बुरी आदतों ने उसे सेहत की तरफ लापरवाह रखा जिसकी वजह से वह बुरी तरह कमजोर हो गया और कमजोरी बिमारीयों की महेजबान होती है। अपने कलाम में उसने कई जगह अपनी बिमारी का जिक्र किया है और ‘शिफा ए कुल’ नसीब होने के लिए दुआएं की हैं।
‘सदके नबी के कुतूब कूं अप लुत्फ व मियां थे।
दुख दर्द सभी दूर कर, हौर सुख शिफा बख्श’
बिमारी के इस अहसास के बिना पर वह बार–बार अपनी उम्रदराजी की दुआ किया करता था। इसका काव्य इस तरह की दुआओं से भरा पडा है।
‘सदके नबी आला महल में क़ुतुब शाह जमजन अछू
जब तक अच्छे असमान पर, चंद सोर जहरा मिश्तरी’
इस तरह के अशहार के अलावा एक मुकम्मल नज्म दुआ के तौर पर लिखी हुई है। आखिर वह रोज आ ही गया जिसको दुर से दुर तर रखने के लिए मुहंमद कुली क़ुतुब शाह दुआएं मांगा करता था।
कसरते शराबनोशी के वजह से इसके जिस्म को घीन सा लग गया था। आखिरकार माहे रमजान 1020 हिजरी में वह बिमार हुआ और ढाई महिने तक बुखार का सिलसिला जारी रहा। रोज बरोज इसमें शिद्दत पैदा होती गयी। जिसकी वजह से शनिवार कि सुबह 17 जिल्कदा 1020 हिजरी (21 जनवरी 1612) को इसकी आँखे हमेशा के लिए बंद हो गयी और सिर्फ 47 साल कि उम्र में दुनिया की इसकी इशरतों को छोड गया।
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मुहंमद कुली की खुबीयां
मुहंमद कुली की सबसे अहम विशेषत: उसकी फय्याजी (विशाल हृदयता) थी। इसने अपनी जिन्दगी में सबसे ज्यादा रकम इमारतों की तामीर में सर्फ कि अहद ए हाजीर के तकरीबन 5 करोड रुपये के खर्चे पर यह इमारतें खडी हुई है। जिससे मजदूर पेशा अवाम को बहोत फायदा हुआ।
हर साल मुहंमद कुली क़ुतुब शाह ‘लंगर ए अयम्मां’ अशर के सिलसिले पर 60 हजार होन खर्च करता था। यह बडी रकम मुजावरों और खादिमों के वजीफे और लंगर के पकवान में खर्च होती थी। हजारों गरीब और मुफलीस लोग खुशहाल जिन्दगी जिते थे।
इसके अलावा मुहर्रम के खत्म होने पर जरुरतमंद और गरीबों में ‘जर ए आशुरी’ के नामसे हर साल 12 हजार होन तक्सीम कर दिए जाते थे। हर साल एक लाख होन ईद ए मिलाद के जश्न में 12 रोज के अंदर खर्च होते थे।
इसके अलावा मुहंमद कुली मुबारक मुकामों के गरीबों के लिए हर साल कपडे और नकद रवाना करता था। इसने हुकूमत पर आते ही अनाजों पर टॅक्स लेना बंद कर दिया। ब्राह्मण इस रकम की वसुली के लिए रियाया के साथ बडी सख्ती से पेश आते थे।
इसकी वजह से रियाया ब्राह्मणों के जुल्म व सितम से महफूज हो गयी। इस तरह इसकी दरीया दिली और रियाया परवरी ने हुकूमत को तकरीबन 4 करोड रुपये की आमदनी से महरूम कर दिया।
मुहंमद कुली ने अपनी तमाम जिन्दगी में किसी के कत्ल का हुक्म नहीं दिया। अगर कभी कोई ऐसा मुकदमा पेश भी हुआ तो उसने उसे काजीयों के पास भिजवा दिया ताकी वहां से इसका फैसला हो। मुहंमद कुली के दस्तरखान की बडी शोहरत थी और कहा जाता है की, हर वक्त एक हजरा आदमी इसके दस्तरख्वान पर मौजूद होते और किसी को रोकटोक न थी।
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मुहंमद कुली का गुंबद
हैदराबाद शहर की बडी इमारतों के अलावा मुहंमद कुली ने अपने लिए एक अलिशान गुंबद भी अपने आबा व अजदाद के गुंबदों के करीब बनवा लिया था। जिस तरह वह अपने खानदान में सबसे बढकर अजीमुश्शान हुक्मरान था उसी तरह उसका गुंबद भी ‘मकाबीर ए सलातीन ए क़ुतुब शाहीया’ (क़ुतुब शाही सुलतानों के मकबरों) में सबसे अलिशान है।
इसका गुंबद जिस चबुतरे पर है वह जमीन से 13 फिट 16 इंच बुलंद है। बादशाह की असल कबर तहखाने में है। जहां तक पहुंचने के लिए उपर और निचे दोनो तरफ से रास्ते हैं। दुसरे क़ुतुब शाही बादशाहों के तहखाने बंद है।
जबतक क़ुतुब शाही सल्तनत बाकी रही मुहंमद कुली का उर्स धुमधाम से होता रहा। इसे कबर के आसपास कई बच्चे कुरआन मजीद को याद करते रहते थे। कबर पर अथलसी चादर और फूल चढाए जाते थे। रौशनी का एक आलीशान झाड़ दरमीयान में और इसके आसपास कई चिराग दिन रात रौशन रहते थे।
बादशाह कि किताबें रहलों पर रखी रहती थी। जिसमें अक्सर कुरआन और दिगर मजहबी किताबें शामील थी। गुंबद में चारों तरफ किमती कालीनों पर फर्श होता था।
यह रौनक और अहमाम अब बाकी नहीं रहा। लेकीन गोलकुंडा के ऐतराफ के अक्सर लोग ज्यादा तर औरतें हर साल खास–खास दिनों में मुहंमद कुली के मकबरे की जियारत के लिए आती थी। मलिदा और जलेबीयां यहां तक्सीम कर फातेहा दिलवाते थे।
इस तरह तेलंगाना के इस मशहूर हिरो भागमती के सच्चे आशिक और दकन बैनूल कौमी तमद्दून के बानी की याद अबतक तेलंगना के गरीबों के दिल में बाकी है।
(मोहियोद्दीन कादरी ‘जोर’ संपादित ‘कुलियात सुल्तान मुहंमद कुली क़ुतुब शाह’ से लिया गया है।)
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