प्रगतीशील लेखक संघ की जरुरत आज क्यों हैं?

कुछ थोड़ी सी राज़ की बात आप लोगों को बताता हूं, फिर शुरू करुगा। मैं बैठा था छगन भुजबल साहब के पास में। उनसे कहा, यहां बहुत बड़े लोग बैठे हैं तो मुझे किस-किस का नाम लेना चाहिए, अगर कोई मुझे लिखकर दे देगा, …

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उर्दू मिठास तो है पर सही उच्चारण के बगैर महसूस नही होती!

र्दू बुनियादी तौर पर उत्तर भारत की एक ‘अर्बन जुबान’ रही है। उसकी फोनोटिक पर, उसके सैटर्लिटी पर उसके नोअर्सिस पर सीरियसली काम किया गया है। इस हद तक कि आप यह सोचों गालिब की एक किताब है, जिसे उनके दो दोस्त थे, उन्होंने …

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कोरोना संकट या एक-दूसरे को बेहतर समझने का मौका

मारा देश ही नहीं बल्कि सारी दुनिया एक अजीब दौर से गुजर रही है। सुना है कि एक-दो सदी पहले भी ऐसी कुछ बीमारियां आई थी, जिसमें प्लेग था, उसने आधे यूरोप को साफ कर दिया था, मौत के घाट उतार दिया था।

लेकिन …

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क्या हिन्दोस्ताँनी जबान सचमूच सिमट रही हैं?

र्दू जबान के साथ एक अजीब सी ट्रेजेडी हो गई है। वह जब तक आपके समझ में आती है तब तक उसे आप हिंदी समझते हैं। और जब समझ में आना बंद हो जाए तब कहते हैं कि यह उर्दू हैं। हम जब आपस

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जब जाँ निसार अख्त़र ने जादू के कान में पढ़ा ‘कम्युनिस्ट मेनिफिस्टो’

प्रसिद्ध शायर जाँ निसार अख्त़र शायर और फिल्मो के नगमानिगार जावेद अख्त़र के वालिद थें। जावेद अख्त़र नें अपने पिता के साथ रहे रिश्तों के बारे में हमेशा खुलकर कहां हैं।

निदा फाजली नें अपनी बायोग्राफी में उन दोनो पिता-पुत्र के रिश्तो को लेकर

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