पूर्व केंद्रीय मंत्री सलमान खुर्शीद, कांग्रेस के एक प्रमुख नेता और उच्चतम न्यायालय के जानेमाने वकील है। हाल में उनकी एक किताब प्रकाशित हुई है, जिसका शीर्षक है- ‘सनराइज ओवर अयोध्या: नेशनहुड इन प्रेजेंट टाइम्स।’
पुस्तक की प्रचार सामग्री में उसके एक उद्धरण का प्रयोग किया गया है- “सुप्रीम कोर्ट…ने राम मंदिर के निर्माण का रास्ता साफ़ कर दिया…अगर एक मस्जिद का ध्वंस आस्था की रक्षा है, अगर एक मंदिर की स्थापना, आस्था का उद्धार है तो हम सब मिल कर संविधान में आस्था का उत्सव मना सकते हैं…।”
पुस्तक में यह भी कहा गया है कि जहां हिंदू एक महान और सहिष्णु धर्म है, वहीं हिंदुत्व एक तरह की राजनीति है जिसकी तुलना आईएस और बोको हराम की राजनीति से की जा सकती है। अपनी पुस्तक में सलमान खुर्शीद ने अयोध्या मामले में सुप्रीम कोर्ट के निर्णय का जमकर बचाव ही किया है।
यह इस तथ्य के बावजूद कि देश की सबसे बड़ी अदालत ने यह तो स्वीकार किया कि 1949 में परिसर में चोरी-छुपे रामलला के प्रतिमाएं रखा जाना एक आपराधिक कृत्य था और मस्जिद को ढहाना भी अपराध था, पर उसने इन अपराधों के लिए किसी को भी सजा नहीं दी।
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सावरकर की होशियारी
जहां तक दूसरे अपराध का सवाल है, लिब्रहान आयोग की रपट ही बीजेपी के शीर्ष नेतृत्व को सीखचों के पीछे डालने के लिए पर्याप्त है। खुर्शीद, दरअसल, शांति की बात कर रहे हैं और उस निर्णय के प्रति नर्म रुख अपना रहे हैं जिसने अपराधियों को बरी कर दिया।
हां, पुस्तक में उन्होंने हिंदुत्व की परिकल्पना की विवेचना करते हुए उसकी तुलना अन्य कट्टरपंथी संगठनों से की है। इस बात पर बवाल खड़ा कर दिया गया है। हिंदुत्व की राजनीति के सिपाहियों ने नैनीताल में स्थित उनके घर पर गोलियां चलाईं और वहां आगजनी की। उनकी किताब को हिंदू धर्म का अपमान बताया गया।
दरअसल, वे हिंदू धर्म की तारीफ कर रहे हैं। वे तो हिंदू धर्म के नाम पर की जा रही हिंदुत्व की राजनीति का विरोध कर रहे हैं। उन्हीं की तरह, राहुल गांधी ने भी हिंदू धर्म और हिंदुत्व के बीच विभेद किया। हिंदू एक धर्म है और हिंदुत्व राजनीति है। इस्लाम एक धर्म है, बोको हरम और आईएसआईएस इस्लाम के नाम पर राजनीति करने वाले संगठन हैं।
लोगों के दिमाग में यह भर दिया गया है कि हिंदुत्व और हिंदू धर्म पर्यायवाची हैं। यह सांप्रदायिक राष्ट्रवादियों की बड़ी सफलता है। सावरकर ने बड़ी होशियारी से अपनी राजनैतिक विचारधारा, हिंदुत्व, के नाम में ‘हिंदू’ शब्द को शामिल कर लिया। इससे एक आम हिंदू को लगता है कि हिंदुत्व की आलोचना, उसकी आलोचना है।
सावरकर हिंदू राष्ट्रवाद के पितामह हैं और उनकी दृष्टि में राष्ट्रीय पहचान तीन स्तंभों पर आधारित है, “भौगोलिक एकता, नस्लीय लक्षण और सांझा संस्कृति।”
सावरकर हिन्दुओं के लिए धर्म के महत्व को कम कर आंकते हुए कहते हैं कि “हिंदू धर्म, हिंदू-ता का एक गुणधर्म मात्र है।” (हिन्दुत्व, पृष्ठ-18) इस प्रकार दोनों शब्दों के बीच का अंतर स्पष्ट है।
हिंदू धर्म को समझना जटिल है क्योंकि इस धर्म का न तो कोई एक पैगम्बर है, न कोई एक पवित्र पुस्तक और न कोई एक देव। पर हिंदू एक धर्म है, इसमें कोई संदेह नहीं है।
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राजनैतिक निहितार्थ
नेहरू लिखते हैं “एक धर्म के रूप में हिंदू अस्पष्ट, अनाकार और कई पहलुओं वाला है और विभिन्न लोग इसे अलग-अलग रूप में देखते हैं…आज और अतीत में भी उसमें अलग-अलग तरह की आस्थाएं और आचरण शामिल रहे हैं। इनमें से कई एक-दूसरे के विपरीत और एक-दूसरे का खंडन करने वाले हैं। मुझे ऐसा लगता है कि जिओ और जीने दो इस धर्म की मूल आत्मा है।”
महात्मा गांधी ने हिंदू धर्म को परिभाषित करने का प्रयास करते हुए लिखा था, “अगर मुझे हिंदू धर्म को परिभाषित करने को कहा जाए तो मैं केवल यह कहूंगा: अहिंसक साधनों से सत्य की खोज। कोई व्यक्ति ईश्वर में विश्वास न करते हुए भी स्वयं को हिंदू कह सकता है। हिंदू धर्म, सत्य की अनवरत खोज का नाम है… ।” गांधी का हिंदू धर्म सहिष्णु था।
इसके विपरीत, सावरकर के लिए हिंदू धर्म का एक राजनैतिक निहितार्थ था और यही हिंदू साप्रदायिकता का आधार है। सावरकर के अनुसार हिंदू वह है जो सिंधू से लेकर समुद्र तक के भूभाग को अपनी पितृभूमि और पुण्यभूमि दोनों मानता है।
उनके अनुसार हिंदू एक अलग राष्ट्र हैं और भारत भूमि के मूल रहवासी हैं। मुसलमान एक अलग राष्ट्र हैं। गांधी-नेहरू की समझ यह थी कि हमारा धर्म चाहे कोई भी हो हम एक राष्ट्र हैं। गांधीजी ने उनके हिंदू धर्म को परिभाषित करते हुए कहा था ‘ईश्वर अल्लाह तेरो नाम।’
हिंदू राष्ट्रवादी, अर्थात हिन्दुत्व की राजनीति करने वाले, हिंदू धर्म और हिन्दुत्व को पर्यायवाची के रूप में प्रयुक्त करते हैं। बहुत सोच-समझकर यह प्रचारित किया जा रहा है कि हिंदुत्व सभी को एक साथ लाता है और उनमें एकता स्थापित करता है।
यह बात मोहन भागवत भी कहते हैं। यह सारा प्रचार चुनावी लाभ के लिए किया जा रहा है। हिंदुत्व के एजेंडे में शामिल है अतीत का महिमामंडन- उस अतीत का जिसमें जातिगत और लैंगिक पदक्रम पत्थर की लकीर था- ‘विदेशी धर्मों’ (ईसाई धर्म व इस्लाम) का दानवीकरण और गाय, राम मंदिर, लव जिहाद आदि जैसे मुद्दों पर हिंदुओं की भावनाएं भड़काना।
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साप्रदायिकता का आधार
इस पूरे खेल में हिंदुत्ववादी ये साबित करना चाहते हैं कि मुसलमानों की बढ़ती आबादी हिंदुओं के लिए खतरा है। वे यह भी मानते हैं कि ईसाई मिशनरियों द्वारा करवाया जा रहा ‘धर्मांतरण’ भी हिंदुओं के लिए खतरा है। संक्षेप में हिंदुत्व का एजेंडा ऐसी नीतियों को लागू करना है जो समाज के श्रेष्ठिवर्ग को लाभ पहुंचाएं और दमितों के प्रति केवल शाब्दिक सहानुभूति व्यक्त करें।
हिंदू धर्म और हिंदुत्व को एक बताना सांप्रदायिक ताकतों की राजनैतिक रणनीति है। हिन्दुत्व असहिष्णु है, हिंसा को बढ़ावा देता है और धार्मिकता को भी। वह दलितों और आदिवासियों का सोशल इंजीनियरिंग के जरिए अपने राजनैतिक हित साधने के लिए उपयोग करना चाहता है।
दरअसल, हिंदुत्व उस राजनीति का नाम है जो यथास्थिति को बनाए रखने के साथ-साथ समाज को पदक्रम पर आधारित पुरातन व्यवस्था की ओर वापस ढकेलना चाहता है।
अपने घर में आगजनी के बाद खुर्शीद ने कहा, “ऐसा लगता है कि कुछ लोग हिंदू धर्म को बदनाम करने की कोशिश कर रहे हैं। वे वास्तव में हिंदू धर्म के शत्रु हैं। उन्हें डर है कि इस किताब से उनकी सच्चाई सामने आ जाएगी।”
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धर्म का दुरुपयोग
अपनी किताब के विवादित हिस्से पर खुर्शीद ने कहा, “मैंने ऐसा नहीं लिखा है कि वे (आईएस और हिंदुत्व) एक जैसे हैं। मैंने समानताओं पर बात कही है। मैंने यह भी कहा है कि आईएस और बोको हराम इस्लाम धर्म का दुरुपयोग करते हैं, लेकिन इस्लाम धर्म को मानने वालों ने इस पर आपत्ति नहीं जताई। मैंने यही लिखा है कि उन जैसा धर्म का दुरुपयोग करने वाला यदि किसी अन्य धर्म में है तो वह भी वही कर रहा है।”
बकौल खुर्शीद इससे यही साबित हुआ है कि वे जो कर रहे थे वह ठीक है। वे सही बात कह रहे हैं परंतु सवाल यह है कि हम इस विघटनकारी विचारधारा का मुकाबला कैसे करें? बांटने वाली ताकतों ने आम लोगों को यह समझाने में सफलता हासिल कर ली है कि हिंदू धर्म और हिन्दुत्व एक ही हैं।
क्या हम हिन्दुत्व का नाम लिए बगैर उसकी विभाजक राजनीति का मुकाबला कर सकते हैं? क्या हम हिंदुओं को समझा सकते हैं कि हिंदू धर्म वह है जिसे गांधी और नेहरू ने परिभाषित किया है।
हमें गांधी के हिंदू धर्म और गोडसे और उसके साथियों के हिंदुत्व के बीच विभेद करना ही होगा ताकि हिंदू धर्म के बहुलता और मानवीयता पर आधारित सिद्धांत बचे रहें और हम सांप्रदायिकतावादियों के एजेंडे का मुकाबला करते हुए शांति और बंधुत्व पर आधारित समाज की स्थापना कर सकें।
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लेखक आईआईटी मुंबई के पूर्व प्रोफेसर हैं। वे मानवी अधिकारों के विषयो पर लगातार लिखते आ रहे हैं। इतिहास, राजनीति तथा समसामाईक घटनाओंं पर वे अंग्रेजी, हिंदी, मराठी तथा अन्य क्षेत्रीय भाषा में लिखते हैं। सन् 2007 के उन्हे नेशनल कम्यूनल हार्मोनी एवार्ड से सम्मानित किया जा चुका हैं।