CAA विरोधी आंदोलन धार्मिक एकता स्थापित करने का समय

पिछले दिनों पुणे के आजम कॅम्पस में नागरिकता कानून के विरोध में विशाल जनसभा हुई। जिसमें जमात इस्लामी के नायब सदर एस. अमीनुल हसन ने संबोधित किया उन्होंने अपने तकरीर में मुसलमानों के कई सामाजिक मसलो पर बात की जिसके एक और दो भाग हमने पहले हिस्से मे दिए हैं

आज इस्लाम के धार्मिक मेलमोल के बारे में उनके विचार हम आपके सामने रख रहे हैं इस्लामी दर्शन में अन्य धर्मो के लोगो से सामाजिक मेलमिलाप को महत्व दिया गया हैं परंतु बीते कुछ सालों से धर्मावलंबी सिर्फ मुसलमानों के दावत (धर्मसंवाद) का काम कर रहे हैं परिणामत: भारतीय मुसलमानों को लेकर गैरमुस्लिमों में परायापन नजर आ रहा हैं अमीनुल हसन नें अपने इस भाष्य में धार्मिक मेल-जोल पर विषेश चर्चा की हैं, पेश हैं उनके तकरीर का अंतिम भाग   

नागरिकता कानून के खिलाफ हो रहे आंदोलन नें हमारे वतनी भाईयो के साथ मेल-जोल का मौका फरहाम कर दिया हैं। हमे इस प्रोटेस्ट में शरीक हुए हमारे वतनी भाइयों, बहनों के साथ, हमारी बिरादरी के साथ संवाद करने का (Communicate) मौका मिला हैं।

जिस मुल्क में हम रहते हैं वहां ईसाई भी है, हिंदू भी है और पारसी भी रहते हैं। इन सब के साथ हमको इस्लाम के बेसिक वैल्यूज पर गुफ्तगू करने का मौका मिला हैं। हम याने वुई द पीपलमें चार वैल्यूज बताए गए हैं। जिसमें स्वतंत्रता (Liberty), भाईचारा (Fraternity), (समानता) Equality), और न्याय (Justice) जैसे मूल्य हैं।

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हमारे संविधान में यह मूल्य अमेरिका के दस्तूर से लिए गए थें। जब अमेरिका का संविधान लिखा जा रहा था। तब उसे लिखने वालों ने इस्लाम का अध्ययन किया था और इस्लाम के चारों वैल्यूज को उन्होंने उसमें रखा। वहां से यह वैल्यूज भारत के संविधान में आए। इन्शाल्लाह हम अपनी वतनी भाइयों को बताएंगे कि इस्लाम इसी बात की तालीम देता है। वह सब इन्सानों के समानता के निगाह से देखता है। वह किसी को छोटा या किसी को बड़ा नही देखता। इस्लाम किसी को उंचा या किसी को निचा नहीं मानता।

आज भी तमिलनाडू में टू टंबलरसिस्टम पाया जाता है। याने चाय की दुकान में एक टंबलर के नीचे लाल कलर है और दूसरे के नीचे हरा रंग है। लाल कलर का जब आता है। तो छोटी जाति के आदमी की लिए उसमें चाय दी जाती है।

बड़ी जाति का आदमी आता है तो उसे एक ग्रीन रंग का दिया जाता है। हम इस दोनों टंबलर को तोड़ेंगे और एक साधे टंबलर में सबको चाय पिलाएंगे। हम इस दो टंबलर के कायल नहीं है।

हम नहीं मानते कोई इंसान बड़ा है कोई इंसान छोटा है। कोई इंसान शरीफ है पर कोई रजील हैं। कोई सुपर है तो कोई डाउन है, हम इसे हरगीज नहीं मानते। असल में हमारी गलती है कि हमने इस मेसेज को कम्युनिकेट नहीं किया।

इस्लाम भाईचारा चाहता है। अल्लाह का एहसान है कि यह एक प्यारा मुल्क है। इस मुल्क के अंदर भी इन्सानियत जिन्दा है। इस मुल्क के अंदर अभी इन्सानी मजहब जिन्दा है। इस मुल्क के अंदर अभी मजहबी एकदार जिन्दा हैं।

दिल्ली में जो दंगे हुए हैं उसमें पुलिस का किरदार खराब रहा हैं। फितना बरपा करने वाले फसादियो का रोल अफसोसनाक रहा हैं। पर हिंदुओं ने मुसलमानों की हिफाजत की है। और मुसलमानों ने हिंदुओं की रक्षा की है।

मुसलमानों ने मंदिरो को संरक्षित किया और हिंदुओं ने मस्जिदों की रक्षा की। देख लीजिए ऐसे कितने वाकियात आपको दिल्ली में मिलेंगे, जिससे यह साबित होता है कि यहां के हुक्मरान, यहां की पुलिस भी अगर चाहे भी तो यहां के इन्सानों के दिलो को नहीं तोड़ सकती।

इन्शाल्लाह जो भी गिनेचुने लोग इन्सानी धर्म से भटके हैं, हम उनके दिलों को बदलेंगे। हम उनके दिलों में भाईचारा पैदा करेंगे। उनके अंदर सदभाव को पैदा करेंगे। आज भी इस देश में भाईचारगी मौजूद है।

खबरों में ऐसे वाकियात नजर आ रहे हैं जिसमे लोगों ने अपनी जान पर खेलकर एक दूसरे को बचाया है। हिदुओ ने और सरदारों ने मुसलमानों को बचाया हैं। यह हमारा देश अजीम हैं। यह हमारा मुल्क महान हैं। यह एक बहुत बड़ी नेमत हैं।

यहां के बसने वाले महान है। वो इन्सानी मजहब को भी मानते हैं। जो शैतानियत का नंगा नाच हो रहा है, उसे मानने के लिए तैयार नहीं है। यही तो तकलीफ होती है। यही तो इनको प्रॉब्लम है। इतना सब कुछ करने के बावजूद भी इन्सानियत जिन्दा रहेंगी। हमारा काम है कि इस्लाम की जो बुनियादी दावते है जिसमे इन्सानियत, समानता, भाईचारा और आजादी की दावत को लोगो तक पहुँचाए।

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आजादी के बारे में इस्लाम कहता है, हर तरह कि आजादी होंगी। हर एक को अपने अपने मजहब पर चलने आजादी होंगी। इस्लामी हुकूमत जब भी जहां भी रही हैं उसने कभी चर्च को बंद नहीं किया। उन्होंने कभी मंदिरों को बंद नहीं किया गया। कभी लोगों को अपने मजहब पर अमल करने रोका नहीं।

भारत में भी मुसलमानों ने हुकूमत की है, अगर मुसलमान जालिम होते तो आज देश भर में एक भी मंदिर नहीं बचता। अगर मुसलमान जालिम होते आज यह जुल्म करनेवाले हुक्मरान बाकी नहीं रहते। इन सब का नाम बदल गया होता हैं। इन सब का हुलिया बदल गया होता। लेकिन मुसलमानों ने यह काम नहीं किया।

उन्होंने जबरन किसी का मजहब नही बदला। उन्होंने कभी दूसरो के इबातगाहों को ढहाया नही। हां यह बात सच है कि बादशाहो के लड़ाईया में यह सब काम होते थें। मगर उसका मजहब से कोई ताल्लुक नहीं है। वह बादशाहो कि लड़ाई होती थी। उसमें मुसलमान और मुसलमान भी एक दूसरे से लड़ता था।

उसी तरह से एक हिंदू बादशाह भी दूसरे हिंदू बादशाह से लड़ता था। मुसलमान बादशाह हिंदू बादशाह से लड़ता था। बादशाहो की लड़ाई अलग है लेकिन यहां क्रूसेड जैसी मजहबी लड़ाइयां कभी नहीं हुई। हमने यहां हमेशा बडा पुरअमन रखा।

मुसलमानों ने जो इन्साफ किया है दुनिया में वह अजीमोशान इंसाफ का मुजाहिरा था। यहां कभी जुल्म नहीं हुआ तारीख उठाकर बता दे कि यहां जुल्म होता था। कोई बता दे यहां फसादात होते थे। कोई नहीं बता सकते। हजारों साल मुसलमानों ने यहां हुकूमत की पर एक भी फसाद नही हुआ।

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इस शासन में यहां लोगों पर जुल्म कभी नहीं हुआ। लोगों को हम बताएंगे कि इस्लाम यही आजादी चाहता है। इस्लाम मसावत चाहता है। इस्लाम भाईचारगी चाहता है। इस्लाम इन्सानी हुकूक का एहतराम करता है। एक इन्सान का खून भी ना हक नहीं बहाया जाएगा, ऐसा निजाम हो। कुरआन कहता है एक इन्सान का खून भी जुल्म के साथ बहाया गया तो सारी इन्सानियत को कत्ल करने के बराबर है। यही तो इस्लाम की तालीम हैं।

इस्लाम दरिंदगी नहीं सिखाता। हमारे लिए यह मौका है कि वतनी भाइयों को हम यह सब पैगाम सुनाए। समानता का, अमन का, न्याय का पैगाम सुनाए। इस्लामी इन्साफ के बारे में आपको मालूम होना चाहिए कि न्याय के लिए वक्त का खलीफा हजरत अली चीफ जस्टिस के सामने खडे थें। उन्होंने चीफ जस्टिस से कहा कि यह जिरा (युद्ध के समय इस्तेमाल होनेवाली टोपी) मेरी है।

जस्टिस ने खलीफा से कहा कि तुम्हारे पास इसका कोई सबूत है। खलीफा कोई सबूत नहीं दे पाए तो चीफ जस्टिस ने उस जिरे को उठाकर एक इसाई के हवाले कर दिया, जो कहता था कि वह मेरा हैं। इस्लाम के अंदर किसी के लिए दो अलग-अलग इन्साफ नहीं थें। गैरमुस्लिम के लिए भी एक इन्साफ और मुसलमान के लिए भी एक इन्साफ हैं।

हमारे मुल्क में आज क्या हो रहा है। गैरबराबरिक न्याय (Proportionate Justice) हो रहा है। बच्ची ने ड्रामा में चप्पल मारुंगी कहा तो उसे, उसके मां और टिचर को जेल भेज दिया गया। और खुल्लम-खुल्ला जो लोग गोली मारो..कहते हैं वह देश के प्रेमी होते हैं। और चप्पल मारने वाले देशद्रोही। हम इस गैरबराबरिक न्याय को नहीं मानते। हम इस अन्याय के खिलाफ खड़े होंगे।

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अगर चप्पल मारो गुनाह है, देशद्रोह है; तो गोली मारोगे कहनेवाला उससे बडा गुनहगार है। वह सबसे बडा मुजरिम है। उसे पकड़ना चाहिए। इस ड्रामे शाहीन स्कूल के बच्चे कहते है सीएए के इल्यूमिनेटर आयेंगे तो उन्हे हम चप्पल से मारेंगे इस इल्यूमिनेटर को वह जगह नहीं देंगे।

और उसी कर्नाटक में रामा स्कूल है उसका अन्युअल डे होता है। वहां एक छोटी सी बाबरी मस्जिद बनाई जाती है। पंधरा मिनिट में उसे तोड़ना और राम मंदिर को बनाना यह प्रैक्टिस उन्हें कराया गया। यह करने वाले कोई गुनाह नहीं करते। पर शाहीन स्कूल वाले ड्रामा करते हैं तो उन गुनाह आता है। यह जो दो जस्टिस है हम चलने नहीं देंगे।

अगर शाहीन स्कूल का ड्रामा करना गलत है और रामा स्कूल कि प्रैक्टिस भी जुर्म होना चाहिए। याद रखें कि शाहीन लफ्ज़ पूरे आंदोलन में जिन्दा हुआ है। क्या आपको पता है कि जामिया में सबसे पहले पुलिस ने जिसे लडके को मारा, जिसे तीन लड़कियां बचा रही थी।

जिसे मारा जा रहा था उस लड़के का नाम शाहीन हैं। फिर उसके बाद दूसरा शाहीन उभरा वह शाहीन बाग हैं और उसके बाद जो तीसरा शाहीन उभरा वह शाहीन स्कूल था।

अल्लामा इकबाल के नजरों में शाहीन का मतलब है बहुत बुलंदी पर उड़ने वाला परिंदा हैं। यही मुसलमानों की अलामत है। इकबाल कि माने तो शाहीन का दूसरा मतलब है दूर रस निगाह रखने वाला।

यह जो आंदोलन चल रहे है उसमे हमारी दूर रस नजर बनी हुई हैं। वाकई में हमारे नौजवान शाहीन साबित हो रहे हैं। शाहीन का एक आखरी मतलब अल्लामा इकबाल ने बताया है जो तानाशाही के आगे झुकता नहीं। शाहीन तानाशाही के तलवे नहीं चाटता।

नहीं तेरा नशेमन खसरे सुल्तानी के गुंम्बद पर

तू शाहीन है, बसेरा कर पहाड़ों की चट्टानों पर

इस पूरे आंदोलन में छात्र और युवा शाहीन साबित हुए मुसलमान हैं। औरतें भी शाहीन साबित हुई हैं। अल्लाह से दुआ है कि इस मुल्क के हिफाजत में जो काम हमे करने की जरूरत है उसे निभाने की लिए हमारे इमान को मजबूत फरमाए।

अल्लाह हमारे मुल्क के आम हिंदू, सिख ईसाई के दिलों की मुहब्बत को खोल दें। और जो दोस्ती और एकदानियत बाकी है उसे बरकरार रखने की तौफिख अता फरमाए। जो लोग मुल्क का नुकसान करना चाह रहे हैं अल्लाह जल्द से जल्द इस मुल्क से उन लोगों के हटाकर अच्छे लोगों के हाथ में अता करें।

आमिन…

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