एक मामूली शौक ने बनवा दिया सालारजंग म्युजिअम

तेलंगना की राजधानी हैदराबाद का सालारजंग म्युजिअम दुनिया भर के इतिहास प्रेमीयों के लिए आकर्षण का केंद्र रहा हैं। नवाब मीर यूसुफ अली खान ने जमा कि हुई ऐतिहासिक वस्तुओं को एकत्जरित कर यह म्युजियम बनवाया गया था।

जिसमें आज निजाम राजवंश के कई महत्वपूर्ण और दुर्लभ वस्तुएं पाई जाती हैं सालारजंग को ऐतिहासिक वस्तुए को जमा करने का शौक था। उन्होनें अपनी जीवन में ऐसी हजारों चिजों का संग्रह अपने घर में किया था। 

वाब मीर यूसुफ अली खान (सालारजंग तृतीय) सन 1889 में हैदराबाद स्टेट के प्रधानमंत्री (वजीर ए आम) के घर पैदा हुए। 23 साल कि उम्र में वह वजीर आजम के ओहदे पर नियुक्त किए गए। लेकिन तीन साल के बाद इन्होने अपनी व्यक्तिगत समस्या कि वजह से इस्तिफा दे दिया।

इनका निधन 2 मार्च 1949 में हुआ। इनको कोई औलाद नहीं थी, इसीलिए इनकी जागीर, जायदाद के फैसलों के लिए नवाब मेहदी नवाज जंग की अध्यक्षता में, उच्च आयोग गठित किया गया।

नवाब साहब को ज्ञान-विज्ञान में रुची थी। उन्होंने अलीगढ विश्वविद्यालय (AMU) को एक लाख रुपये का अनुदान दिया था। इनकी संपत्ती कि देखभाल के लिए, सालारजंग म्युजिअम बोर्ड कि स्थापना की गई।

जिसके पहले अध्यक्ष के तौर पर नवाब मेहदी नवाज जंग को चुना गया। मेहदी यार जंग ने उच्च आयोग को सालारजंग की सारी संपत्ती को और उनकी किमती वस्तुओं को एक म्युजिअम कि शक्ल देने की गरज से सरकार को सौंपने के लिए राजी किया।

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कीमती चिजे जमा करने का शौक

इसके बाद सालारजंग के महल का एक बडा हिस्सा, छह एकर जमीन और पाच लाख रुपये की वस्तू आध्र प्रदेश सरकार को सौंपी गई। आंध्र सरकार ने और चार एकड जमीन खरिदी और संग्रहालय को पांच लाख रुपये के अनुदान भी दिया।

भारत सरकारने उस समय 10 लाख रुपये मदद कि घोषणा की। म्युजियम का उदघाटन सालारजंग के महल में ही किया गया। सन 1951 में आम लोगों के लिए म्युजिअम को खोल दिया गया।

इस म्युजिअम को एक राष्ट्रीय संस्था का दर्जा देने का ऐलान 23 जुलाई 1963 में प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरु ने किया। इस म्युजिअम के ‘उद्‌घाटन पर उन्होने कहा,

‘‘यह म्युजिअम कई ऐतेबार से अपने आप में एक मिसाल है, यह सिर्फ एक शख्स ने जमा किया हुआ दुनिया का सबसे बडा विरसा हैं। इसका नाम दुनिया के प्रथम दर्जे के म्युजिअम में किया जाता है।’’

सालारजंग कि ख्वाहिश थी की 300 कमरों की एक नई इमारत निर्माण की जाए, जिसमें वह अपनी तामाम ऐतिहासिक वस्तुओं को रख सकें।

मगर इनकी जिंदगी में उनका यह ख्वाब पुरा न हो सका। सालारजंग को अलग अलग किमती वस्तु जमा करने का शौक था। इसी वजह उन्होने अपनी जिंदगी का ज्यादा तर समय सफर में गुजारा, जहाँ भी इनको कोई वस्तू पसंद आती वह मुंहमांगे दाम देकर खरीद लेते।

दुनिया के कोने कोने से मशहूर कारोबारी इनके पास आते और खुशी-खुशी इन चिजों का सौदा करके चले जाते। किमती वस्तू खरीदने का अंदाज भी बडा अनोखा था, जब भी कोई कारोबारी अपना माल लेकर आता, तो मामुली सी परची लगाकर अपना माल एक कमरे में रखकर चला जाता।

उसके बाद सालारजंग खुद अपने कुछ सलाहकारों के साथ आकर चिजें देखकर पर्चीयों पर किमत लिख देते। अगर व्यापारीयों को यह किमत मंजूर हो ती तो सौदा पुरा कर दिया जाता।

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एशिया का बडा म्युजिअम

सालारजंग उन चुनिंदा लोगों में से हैं, जिनके जिंदगी की तमन्ना उनके मौत के बाद पुरी हुई। सालारजंग म्युजिअम आज एशिया का सबसे बडा म्युजिअम माना जाता है। पूर्व और पश्चिम की कलाकारी, चित्रकला और हस्तीदंतकला के यह नमुने जो इरान, तुर्की, म्यांमार चिन और जापान के कुछ हिस्सों से जमा किए गए है।

200 साल पुराने सालारजंग के महल में रख्खे गए। पुराने वास्तुकला से बनायी गयी यह कोठी कई बडे बडे दालानों से सजी हुई है। जिसमें कई कंदिले अपना नुर बिखर रही है। इस म्युजियम में दाखिल होते ही, एक खुबसुरत हौज है। हौज के थोडे ही फासले पर कुछ पुतले रखे हुए हैं।

म्युजिअम के पिछले हिस्से में एक घडी रखी हुई है। जो तकरीबन तीन फिट चौढी और चार फिट लंबी है। इसे इंग्लीश ब्रॅकेटक्लॉक कहा जाता है। जो इंग्लंड में बनी थी, और सबसे पहले कलकत्ता में इसे लगवाया गया था।

आसिफीया सल्तनत के छट्टे नवाब मीर महिबूबअली की दौर में यह घडी, सालारजंग ने हैदराबाद लायी थी। इस घडी के अलावा निजाम घराने की कई नायाब चिजें यहां रखी हुई हैं। हाथी के दांतो से बनी कई अजीब वस्तुए भी यहां देखने को मिलती है। सालारजंग म्युझिअम के सामने ही निजाम स्टेट की फायर ब्रिगेड व्हॅन रखी हुई है।

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