राजेश खन्ना अद्भूत लोकप्रियता हासिल करने वाले सुपरस्टार

राजेश खन्ना बॉलिवुड के पहले सुपरस्टार थे। जिनकी फिल्मों का जादू आज भी तिसरी पिढी के सर चढकर बोलता हैं। उनका नाम आते ही उनके स्वाभाविक अदाकारी क नक्श आँखो के सामने तैरने लगते हैं। उन्हें आँखो द्वारा अभिनय करने के लिए जाना जाता हैं। उसी तरह उनके हाथ और गर्दन का हिलना भी अभिनय का हिस्सा था।

पांच दशक ये सितारी फिल्मी दुनिया पर छाया रहा। भावपूर्ण दृश्यों और सहज अभिनय को आज भी याद किया जाता है। उनका जाना न सिर्फ फिल्मी दुनिया के लिए सदमा था, बल्कि ठेले पर कमाने वाले उस शख्स का भी उतना ही नुकसान था, जितना उनके घरवाले तथा परिजन। राजेश खन्ना आम लोगों के दिलों दिमाग के हिरो थे।

आम लोगो के रूमानियत का वे सपना थे, यही वजह थी की उनके निधन के बाद अंत्यदर्शन के लिए हजारों का हुजूम भरे बारीश में उमट पडा। आज भी कई पुरानी दुकानों तथा घरों राजेश खन्ना के पोस्टर पाये जाते हैं। वीडियो पार्लर तथा सिनेमाघर उनकी यादें संजोये हैं।

कहते है, राजेश खन्ना द्वारा पहने गए गुरु कुर्त्ते खूब प्रसिद्ध हुए और कई लोगों ने उनके जैसे कुर्त्ते पहने। उनके जमाने के लड़कियों के बारे में तो पुछीए मत। उनकी लोकप्रियता इस कदर थी कि लोग पागल हो जाते थे।

पढ़े : सूर और ताल की सौगात पेश करने वाले नौशाद अली

पढ़े : देव आनंद फिल्म इंडस्ट्री के ‘रूमानियत का बादशाह’

पढ़े : एक्टिंग कि ट्रेनिंग स्कूल है दिलीप कुमार की अदाकारी

सीधे शिखर पर

कहते हैं जब राजेश खन्ना की पलकें झपकती थीं तो लड़कियां सिनेमाघरों में सीटों पर उछल पड़ती थीं। लड़कियों ने उन्हें खून से खत लिखे। उनकी फोटो से शादी कर ली। कुछ उनकी कार की धूल को अपनी मांग में लगाती थीं। कुछ ने अपने हाथ या जांघ पर राजेश का नाम गुदवा लिया। कई लड़कियां उनका फोटो तकिये के नीचे रखकर सोती थी।

प्रोड्युसर और डिरेक्टर तो उनके घर के बाहर लाइन लगाए खड़े रहते थे। वे मुंहमांगे दाम चुकाकर उन्हें साइन करना चाहते थे। एक बार किसी ऑपरेशन के लिए उनको अस्पताल में भर्ती होना पड़ा। अस्पताल में उनके इर्दगिर्द के कमरे निर्माताओं ने बुक करा लिए ताकि मौका मिलते ही वे राजेश को अपनी फिल्मों की कहानी सुना सके।

अपने रूमानी अंदाज, स्वाभाविक अभिनय उनकी फिल्मों कि कामयाबी मानी जाती थी। 29 दिसंबर, 1942 को अमृतसर में जन्मे जतिन खन्ना फिल्मी दुनिया में राजेश खन्ना के नाम से मशहूर हुए। उनका अभिनय कॅरियर शुरूआती नाकामियों के बाद इतनी तेजी से परवान चढ़ा।

शुरुआती दिनों मे उन्हें फिल्मों मे काम पाने के लिए काफी संघर्ष करना पड़ा। स्ट्रगलर होने के बावजूद वे इतनी महंगी कार में निर्माताओं के यहां जाते थे कि उस दौर के हीरो के पास भी वैसी कार नहीं थी। बहरहाल उन्हें काम मिला और उनकी पहली प्रदर्शित हुई जिसका नाम आखिरी खतहै, जो 1966 में रिलीज हुई थी।

1969 में रिलीज हुई आराधना और दो रास्ते की सफलता के बाद राजेश खन्ना सीधे शिखर पर जा बैठे। उन्हें सुपरस्टार घोषित कर दिया गया और लोगों के बीच उन्हें अपार लोकप्रियता हासिल हुई।

पढ़े : एकाएक जिन्दगी के स्टेशन पर रुक गये इरफ़ान ख़ान

पढ़े : उच्च अभिनय प्रतिभा थी शौकत ख़ानम की पहचान

पढ़े : फिल्म इंडस्ट्री के ‘क्लब क्लास’ को जिम्मेदार बनना होगा

साल में 15 हिट

फिल्म आराधनाने उनके कॅरियर में उड़ान भर दी। देखते ही देखते वह युवा दिलों की धड़कन बन गए। फिल्म में शर्मिला टैगोर के साथ उनकी दोहरी भूमिका बहुत पसंद की गई। वह हिंदी सिनेमा के पहले सुपरस्टार बनकर प्रशसंकों के दिलोदिमाग पर छा गए।

उसके बाद उन्होंने अगले चार साल के दौरान लगातार 15 हिट फिल्में दी। वो ऐसे स्टार बन गए जो साल में 15 से ज्यादा हिट फिल्में देता था। आपको यकीन नहीं होगा कि राजेश खन्ना के नाम एक साल के अंदर 17 फिल्में करने का रिकॉर्ड है।

साल 1970 में बनी फिल्म सच्चा झूठाके लिए उन्हें पहली बार सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का फिल्मफेयर अवार्ड मिला। फिल्म आनंदमें यादगार अभिनय के लिये साल 1971 में लगातार दूसरी बार यह अवार्ड दिया गया। तीन साल बाद उन्हें आविष्कारके लिए भी फिर एक बार सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का फिल्मफेयर पुरस्कार प्रदान किया गया। इस पुरस्कार के लिए चौदह बार वे नॉमिनेट हुए।

1969 से 1975 के बीच राजेश ने कई सुपरहिट फिल्में दीं। कहते है, उस दौर में पैदा हुए ज्यादातर लड़कों के नाम राजेश रखे गए।

1971 का साल राजेश खन्ना के अभिनय कॅरियर का सबसे यादगार साल रहा। उस साल उन्होंने कटी पतंग’, ‘आनंद’, ‘आन मिलो सजना’, ‘महबूब की मेंहदी’, ‘हाथी मेरे साथीऔर अंदाजजैसी सुपरहिट फिल्में दीं। दो रास्ते’, ‘दुश्मन’, ‘बावर्ची’, ‘मेरे जीवन साथी’, ‘जोरू का गुलाम’, ‘अनुराग’, ‘दाग’, ‘नमक हरामऔर हमशक्लके रूप में हिट फिल्मों के जरिए उन्होंने बॉक्स आफिस को सदाबहार रखा।

राजेश खन्ना की सफलता के पीछे संगीतकार आरडी बर्मन और गायक किशोर का अहम योगदान रहा। इनके बनाए और राजेश पर फिल्माए अधिकांश गीत हिट साबित हुए और आज भी सुने जाते हैं। किशोर ने 91 फिल्मों में राजेश को आवाज दी तो आरडी ने उनकी 40 फिल्मों में संगीत दिया।

वैसे तो राजेश खन्ना ने कई अभिनेत्रीयों के साथ काम किया। पर मुमताज और शर्मिला चागोर के साथ उनकी जोडी खूब जमी। शर्मिला के साथ आराधना’, ‘सफर’, ‘बदनाम’, ‘फरिश्ते’, ‘छोटी बहू’, ‘अमर प्रेम’, ‘राजा रानीऔर आविष्कारमें जोड़ी बनाई, जबकि दो रास्ते’, ‘बंधन’, ‘सच्चा झूठा’, ‘दुश्मन’, ‘अपना देश’, ‘आपकी कसम’, ‘रोटीतथा प्रेम कहानीमें मुमताज के साथ उनकी जोड़ी बहुत पसंद की गई।

पढ़े : नगमा-ओ-शेर की सौगात पेश करने वाले नौशाद अली

पढ़े : रफी के गीतों के बिना अदाकार फिल्मों के लिए नहीं भरते थे हामी

पढ़ें : दिलकश आवाज़ वाले किशोर कुमार जिन्दादिल इन्सान भी थे!

असल जिन्दगी में रोमॅण्टिक

रुमानी फिल्मों के हीरो राजेश दिल के मामले में भी काफी रोमांटिक निकले। अंजू महेन्द्रू से उनके अफेयर की फिल्मी पत्रिका में जमकर चर्चा हुई, लेकिन फिर ब्रेकअप हो गया।

बाद में अंजू ने क्रिकेट खिलाड़ी गैरी सोबर्स से सगाई कर सभी को चौंका दिया। राजेश खन्ना की लाइफ में टीना मुनीम भी आईं। इसके बाद भी राजेश खन्ना का नाम कई महिलाओ के साथ जोडा गया। पर उन्होंने अपनी शादी से सबको सकते में डाल दिया।

राजेश खन्ना ने वर्ष 1973 में अपने से उम्र में काफी छोटी नवोदित अभिनेत्री डिम्पल कपाडि़या से शादी कर सबको चौका दिया। डिम्पल ने बॉबी फिल्म से सनसनी फैला दी थी।

डिम्पल और राजेश की दो बेटी हैं ट्विंकल और रिंकी। हालांकि दोनो का वैवाहिक जीवन ज्यादा दिनों टिक नहीं सका और कुछ समय के बाद वे अलग हो गए। अलग होने के बावजूद मुसीबत में हमेशा डिम्पल ने राजेश का साथ दिया।

करीब डेढ़ दशक तक प्रशंसकों के दिलों पर राज करने वाले राजेश खन्ना के कॅरियर में 80 के दशक के बाद उतार शुरू हो गया।

कुछ लोग अहंकार और चमचों से घिरे रहने की वजह को राजेश खन्ना की असफलता का कारण मानते थे। बाद उन्होंने कई फिल्में की, लेकिन सफलता की वैसी कहानी वे दोहरा नहीं सके। वैसे लोग भी रोमांटिक फिल्मों से बोर होने लगे थे।

कहते है, राजेश ने उस समय कई महत्वपूर्ण फिल्में ठुकरा दी, जो बाद में अमिताभ को मिली। यही फिल्में अमिताभ के सुपरस्टार बनने की सीढ़ियां साबित हुईं। यही राजेश के पतन का कारण बना। उनके बारे मे कहा गया की मे स्टारडम संभाल नही पाए।

एस्सी के दशक में उन्होंने राजनीति में कदम रखा और साल 1991 से 1996 के बीच नई दिल्ली से काँग्रेस के लोकसभा सांसद भी रहे। लालकृष्ण आडवाणी को उन्होंने चुनाव में कड़ी टक्कर दी और शत्रुघ्न सिन्हा को हराया भी। बाद में उनका राजनीति से मोहभंग हो गया।

उनका राजनीति के साथ फिल्मी करियर भी जैसे मानो खत्म सा हो गया था, जिसके बाद वे काफी अलग-थगल हो गए। कहते हैं, इन दिनों राजेश खन्ना अपने पुराने दिनों में ही खोए रहते।

ये दौर ऐसा था जब उन्होंने खुद को 14 महीनों तक दीवारों के बीच कैद कर लिया था। उनको इस बात की चिंता सताने लगी थी कि उनके फैंस उन्‍हें छोड़कर न चले जाये।

जाते जाते :

Share on Facebook