बिहार विधान सभा चुनावों का विश्लेषण करते हुए विगत 31 अक्टूबर 2020 को ‘राष्ट्रीय सहारा’ में प्रकाशित अपने लेख में मैंने लिखा था की इस बार के चुनाव में नीतिश कुमार के लिए राह आसान नहीं होगी। अब नतीजे सामने हैं और दोनों गठबंधनों को लगभग एक सामान (38 प्रतिशत) मत हासिल हुआ है और दोनों गठबंधनों के बीच मात्र 15 सीट का फ़ासला है।
एक ओर जहां सत्ताधारी राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) को बहुमत के आंकड़े से केवल तीन सीट ज़्यादा (125) हासिल हुई है वहीं राष्ट्रीय जनता दल के नेतृत्व वाले महागठबंधन को 110 सीटें मिल पायीं हैं। हालाँकि विपक्षी दल मतगणना के दौरान धांधली किये जाने के आरोप लगा रहे हैं।
क्योंकि कई स्थानों पर दोबारा मतगणना करके एनडीए उम्मीदवारों को जिताये जाने की ख़बरें हैं। इन आरोपों में इसलिए भी जान नज़र आती है कि कई सीटों पर हार-जीत का अंतर बहुत कम रहा यानी 10 से 15 वोट का। बिहार विधान सभा चुनावों का विश्लेषण कई नज़रियों से किया जा सकता है।
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कश्ती कहां डूबी ?
एक ओर इन चुनावों में जहाँ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मज़बूत नेता बनकर उभरे हैं वहीँ लगातार चौथी बार मुख्यमंत्री चुने जाने वाले नीतीश कुमार की स्थिति काफी कमज़ोर हो गयी है।
वह अब पूरी तरह बीजेपी के रहमो करम पर आ गए हैं। इसलिए बिहार में मौजूदा सत्ताधारी गठबंधन कितने दिन चल पायेगा कहना मुश्किल है।
दूसरी ओर अगर विपक्षी राष्ट्रीय जनता दल के नेतृत्व वाले महागठबंधन की बात की जाये तो यह कहना ग़लत नहीं होगा की तेजस्वी यादव मुख्यमंत्री की कुर्सी तक पहुँचते पहुंचते रह गए। यानी कश्ती वहां डूबी जहाँ पानी बहुत कम था।
आरजेडी के नेतृत्व वाला गठबंधन अगर बहुमत हासिल नहीं कर सका तो उसके कई कारण गिनाये जा सकते हैं। लेकिन जो दो अहम कारण बताये जा रहे हैं, उनमें से एक अपनी सहयोगी कांग्रेस पार्टी को ज़्यादा सीटें दे देना और सीमांचल में असददुद्दीन ओवैसी की पार्टी को नज़र अंदाज़ कर देना है।
जहाँ तक कांग्रेस पार्टी की बात है तो राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) के साथ गठबंधन करके 70 सीटों पर चुनाव लड़ने वाली कांग्रेस पार्टी को महज़ 19 सीटों पर ही कामयाबी मिल पायी यानी उसका स्ट्राइक रेट उम्मीदों से काफ़ी नीचे रहा।
2015 के विधान सभा चुनावों में कांग्रेस ने आरजेडी और जनता दल यूनाइटेड (जेडीयू) के साथ गठबंधन करके 41 सीटों पर चुनाव लड़ा था और 27 सीटें जीतीं थीं जबकि 2010 के चुनावों में कांग्रेस ने सभी विधान सभा की सभी 243 सीटों पर चुनाव लड़ा था लेकिन उसे सिर्फ़ चार सीटें ही मिल पायी थीं।
इस आधार पर कांग्रेस पार्टी का व्यावहारिक दावा 40-45 सीटों से ज़्यादा का नहीं था मगर उसने 70 सीटें हासिल कर ली। कहा तो यहाँ तक जाता है की खुद पार्टी को भी नहीं मालूम था की उसे कहाँ कहाँ चुनाव लड़ना है।
अगर तेजस्वी यादव कांग्रेस पार्टी को 50 से ज़्यादा सीटें न देते और इन बीस सीटों पर अपने या अपने वामपंथी सहयोगियों को चुनाव लड़ाते तो ज़्यादा फ़ायदे में रहते। कम से कम महागठबंधन दस सीटें और जीत पाता।
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ओवैसी फॅक्टर
दूसरा कारण बताया जा रहा है कि असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी की वजह से आरजेडी-महागठबंधन को काफी नुक़सान हुआ और बीजेपी को फ़ायदा हुआ। बिहार के सीमांचल इलाक़े में 24 सीटे हैं जिनमें से आधी से ज़्यादा सीटों पर मुसलमानों की आबादी क़रीब आधी या उससे कुछ ज़्यादा है।
ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम ने इनमें से पच्चीस सीटों पर चुनाव लड़ा और पांच सीटों पर जीत हासिल की। इस आधार पर कहा जा रहा है कि यदि ओवैसी की पार्टी चुनाव नहीं लड़ती तो महागठबंधन इस इलाक़े से कम से कम पंद्रह सीट आसानी से जीत लेता जो उसे सरकार बनाने में अहम् साबित होतीं।
लेकिन ज़ाहिर है की लोकतंत्र में किसी एक पार्टी को चुनाव लड़ने से नहीं रोका जा सकता और हार का ठीकरा भी किसी एक दल पर नहीं डाला जा सकता। ऐसे में असदुद्दीन ओवैसी का यह तर्क सही मालूम होता है की जब कांग्रेस पार्टी को केंद्र में सरकार बनाने के लिए सांसदों की ज़रूरत थी तो वह मुस्लिम लीग, बदरुद्दीन अजमल की एआईयूडीएफ़ और ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम का समर्थन लेने से परहेज़ नहीं करती थी बल्कि मुस्लिम लीग को तो मनमोहन सिंह ने अपने मंत्रिमंडल तक में शामिल किया।
लेकिन जब बिहार में हिस्सेदारी देने की बात आती है तो ओवैसी की पार्टी सांप्रदायिक बता दी जाती है या उसे बीजेपी की बी टीम बताया जाता है और उसके साथ चुनाव गठबंधन नहीं किया जाता । बहरहाल बिहार विधान सभा चुनावों के नतीजे विपक्षी दलों के लिए ‘आई ओपनर’ हैं और उन्हे यह तय करना है की अगले साल पश्चिमी बंगाल मैं होने वाले चुनावों में बीजेपी को सत्ता से दूर रकने में वह क्या रणनीति अपनाते हैं।
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लेखक त्रिभाषी (हिन्दी, उर्दू और अंग्रेजी) पत्रकार हैं, जिनके पास सभी पारंपरिक मीडिया जैसे टीवी, रेडियो, प्रिंट और इंटरनेट में 35 से अधिक सालों का अनुभव है। वह पीआईबी, भारत सरकार और भारत की संसद द्वारा मान्यता प्राप्त पत्रकार हैं।