पूर्वोत्तर के दो राज्य असम और मिजोरम के बीच बीते दिनों सीमा से जुड़े विवाद ने खूनी संघर्ष का रूप ले लिया। दोनों राज्यों की बॉर्डर पर देखते ही देखते हिंसा ने इतना भयावह रूप ले लिया कि पत्थरबाजी, गोलाबारी तक की नौबत आ गई और असम पुलिस के पांच जवान मारे गए।
अभी भी इस इलाके में पूरी तरह से शांति स्थापित नहीं हो पाई है, ऐसे में CRPF को तैनात किया गया है। असम और मिज़ोरम के बीच सीमा का मुद्दा मिज़ोरम के गठन के बाद अस्तित्त्व में आया था। मिज़ोरम सबसे पहले साल 1972 में एक केंद्रशासित प्रदेश के रूप में और फिर साल 1987 में एक पूर्ण राज्य के रूप में अस्तित्त्व में आया।
मिजोरम और असम के बीच हुए एक समझौते के तहत सीमावर्ती इलाके में ‘नो मैन्स लैंड’ में यथास्थिति बरकरार रखी जानी थी। लेकिन फरवरी 2018 में, उस समय हिंसा हुई जब छात्र संघ मिज़ो ज़िरलाई पावल ने असम द्वारा दावा की गई भूमि पर किसानों के लिए एक लकड़ी का विश्राम गृह बनाया और जिसे असम पुलिस ने ध्वस्त कर दिया।
असम और मिजोरम के बीच सीमा को लेकर ये विवाद कोई नया नहीं है, हाल ही के वक्त में ये विवाद एक बार फिर उठ कर सामने आया है, जब असम की ओर से सीमा पर अतिक्रमण हटाने का अभियान चलाया गया वरना ये विवाद करीब सौ साल पुराना है। मिजोरम और असम के बीच सीमा विवाद की जड़ें औपनिवेशिक काल से जुड़ी हैं।
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विवाद का इतिहास
अब असम और मिजोरम के बीच विवाद की वजह क्या है उसे समझना जरूरी है। अगर तनाव के मूल में जाए तो दोनों राज्यों के बीच जमीन विवाद है। असम को लगता है कि उसकी जमीन पर मिजोरम का अवैध कब्जा हैं तो मिजोरम को लगता है कि 1875 में जिस नियम के तहत उसे जमीन हासिल हुई थी असम उस का उल्लंघन कर रहा है।
1830 तक ‘कछार’ एक स्वतंत्र राज्य था। 1832 में यहां के राजा की मौत हुई। उस का कोई उत्तराधिकारी नहीं था। उस समय ‘डॉक्ट्रिन ऑफ लैप्स’ के तहत इस राज्य पर ‘ईस्ट इंडिया कंपनी’ ने कब्जा कर लिया। अंग्रेजों की योजना लुशाई यानी मिजो हिल्स की तलहटी पर चाय बागान लगाने की थी। लोकल लोग इस से खुश नहीं थे, वे इस के विरोध में सेंधमारी करने लगे।
1875 में अंग्रेजों ने फिर इनर लाइन रेगुलेशन (आईएलआर) लागू किया ताकि असम में पहाड़ी और आदिवासी इलाकों को अलग किया जा सके। मिजो आदिवासी इस से खुश थे, उन्हें लगा कि अब कोई उन की जमीन पर अतिक्रमण नहीं कर सकेगा।
ब्रिटिश सरकार ने 1933 में ‘कछार’ और ‘मिजो हिल्स’ के बीच औपचारिक तौर पर सीमा रेखा खींच दी। इस प्रक्रिया में ‘मिजो ट्राइब्स’ को शामिल नहीं किया गया। उन्होंने नई सीमा का विरोध किया और 1875 आईएलआर को फिर से लागू करने की मांग की।
1947 में देश आज़ाद हुआ और इस के तीन साल बाद असम इस का एक राज्य बना। तब असम में आज के नागालैंड, अरुणाचल प्रदेश, मेघालय और मिजोरम आते थे। नॉर्थ-ईस्टर्न एरिया (रीऑर्गेनाइजेशन) एक्ट 1971 के तहत असम से तीन नए राज्य मणिपुर, मेघालय और त्रिपुरा का गठन किया गया।
1987 में मिजो शांति समझौते के तहत मिजोरम को अलग राज्य बनाया गया। यह मिजो ट्राइब्स और केंद्र सरकार के बीच हुए करार के तहत था। इस का आधार 1933 का एग्रीमेंट था। लेकिन मिजो ट्राइब्स का कहना है कि उन्होंने 1875 इनर लाइन रेगुलेशन (आईएलआर) बॉर्डर को माना।
इस के बाद से सीमा को लेकर विवाद लगातार बढ़ता गया। मिजोरम के तीन जिले- आइजोल, कोलासिब और ममित- असम के कछार, करीमगंज और हैलाकांडी जिलों के साथ लगभग 164.6 किलोमीटर की सीमा साझा करते हैं।
30 जून 1986 को मिजोरम के नेताओं ने मिजो शांति समझौते पर हस्ताक्षर किए थे। इस में ही सीमा तय की गई है, लेकिन नियम 1875 को माने या 1933 को? दोनों राज्यों के बीच इस बात पर विवाद है।
मिजोरम कहता है कि 1875 के नियमों का पालन किया जाए। और असम का विवाद सिर्फ मिजोरम से नहीं है, बल्कि उन सभी 6 राज्यों से है, जिन के साथ वह सीमा साझा करता है।
मिजोरम और असम के बीच हुए हिंसक संघर्ष के बाद दोनों ने एक-दूसरे पर अवैध अतिक्रमण के आरोप लगाए हैं। मिजोरम का दावा है कि असम ने उसके 509 वर्गमील जमीन पर कब्जा कर रखा है।
यह मसला असम के बंटवारे के समय से ही चला आ रहा है। असम से टूट कर ही उत्तर पूर्व राज्यों का गठन हुआ था। फरवरी, 1987 को मिजोरम भारत का 23वां राज्य बना। 1972 में केंद्र शासित प्रदेश बनने से पहले तक यह असम का ही एक जिला था। दोनों राज्यों के बीच सीमा विवाद को ईमानदारी से सुलझाने की कोशिश नहीं की गई।
1995 के बाद कई दौर की बातचीत हुई, लेकिन उन का नतीजा नहीं निकला। इसे सुलझाने में और देर नहीं होनी चाहिए क्योंकि मिजोरम का 700 किलोमीटर क्षेत्र म्यांमार और बांगला देश से भी लगता है। इसलिए यह मुद्दा देश की सुरक्षा से भी जुड़ा है, यूं भी म्यांमार में तख्ता पलट होने के बाद से मिजोरम में वहां से काफी शरणार्थी आ रहे हैं।
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अंतर्राज्यीय विवादों की स्थिति
भारत में अंतर्राज्यीय विवाद बहुआयामी हैं, सीमा विवादों के अलावा देश में पानी (नदियों) के बँटवारे और प्रवासन को लेकर भी विवाद देखने को मिलते हैं, जो कि भारत की संघीय राजनीति को भी प्रभावित करते हैं।
राज्यों के बीच सीमा विवाद भारत में अंतर्राज्यीय विवादों के प्रमुख कारणों में से एक है। उदाहरण के लिए कर्नाटक और महाराष्ट्र दोनों ही बेलगाव पर अपना दावा करते हैं, जिस से इन दोनों के बीच समय-समय पर विवाद देखने को मिलता रहता है।
पूर्वोत्तर क्षेत्र (पुनर्गठन) अधिनियम [North-Eastern Areas (Reorganisation) Act], 1971 ने मणिपुर और त्रिपुरा जैसे राज्यों की स्थापना तथा मेघालय के गठन से पूर्वोत्तर भारत के राजनीतिक मानचित्र को बदल दिया। इस पुनर्गठन के परिणामस्वरूप पूर्वोत्तर क्षेत्र में कई सीमा विवाद हुए हैं जैसे असम-नगालैंड, असम-मेघालय आदि।
कुछ राज्यों में दूसरे राज्यों के प्रवासियों और नौकरी चाहने वालों को ले कर हिंसक आंदोलन हुए हैं। ऐसा इसलिए है क्योंकि मौजूदा संसाधन और रोज़गार के अवसर बढ़ती आबादी की ज़रूरतों को पूरा करने के लिये पर्याप्त नहीं हैं। संबंधित राज्यों में रोज़गार में वरीयता के लिये ‘सन ऑफ द साइल’ (Sons of The Soil) की अवधारणा संघवाद की जड़ों को नष्ट कर देती है।
सब से लंबे समय से चल रहा और विवादास्पद अंतर्राज्यीय मुद्दा नदी के पानी के बँटवारे का रहा है। भारत की अधिकांश नदियाँ अंतर्राज्यीय हैं, अर्थात् ये एक से अधिक राज्यों से हो कर बहती हैं। पानी की मांग में वृद्धि के कारण नदी के पानी के बँटवारे को लेकर कई अंतर्राज्यीय विवाद सामने आए हैं।
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क्या हैं इनर लाइन परमिट ?
Inner line Permit यानी ILP एक आधिकारिक यात्रा दस्तावेज़ है जिसे भारत सरकार द्वारा किसी भारतीय नागरिक को संरक्षित क्षेत्र में सीमित समय के लिए आंतरिक यात्रा की मंज़ूरी देने हेतु जारी किया जाता है। इसे बंगाल ईस्टर्न फ्रंटियर रेगुलेशन, 1873 के आधार पर लागू किया गया था।
यह अधिनियम पूर्वोत्तर के पहाड़ी आदिवासियों से ब्रिटिश हितों की रक्षा करने के लिये बनाया गया था क्योंकि वे ब्रिटिश नागरिकों (British Subjects) के संरक्षित क्षेत्रों में प्रायः घुसपैठ किया करते थे। इस के तहत दो समुदायों के बीच क्षेत्रों के विभाजन के लिये इनर लाइन (Inner line) नामक एक काल्पनिक रेखा का निर्माण किया गया ताकि दोनों पक्षों के लोग बिना परमिट के एक-दूसरे के क्षेत्रों में प्रवेश न कर सकें।
आगंतुकों को इस संरक्षित क्षेत्र में संपत्ति खरीदने का अधिकार नहीं होता है। अरुणाचल प्रदेश, नागालैंड तथा मिज़ोरम राज्यों के मूल निवासियों की पहचान को बनाए रखने के लिये यहाँ बाहरी व्यक्तियों का ILP के बिना प्रवेश निषिद्ध है।
इस दस्तावेज़ की सेवा-शर्तें और प्रतिबंध राज्यों की अलग-अलग आवश्यकताओं के अनुसार लागू किये गए हैं। BEFR अरुणाचल प्रदेश, मणिपुर, मिज़ोरम और नगालैंड में अनिवासी भारतीयों को अस्थायी प्रवास के लिए आंतरिक लाइन परमिट के बिना इजाजत नहीं देता है।
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आगे की राह
राज्यों के बीच सीमा विवादों को वास्तविक सीमा स्थानों के उपग्रह मानचित्रण का उपयोग करके सुलझाया जा सकता है।
अंतर-राज्यीय परिषद को पुनर्जीवित करना अंतर-राज्यीय विवाद के समाधान के लिये एक विकल्प हो सकता है।
संविधान के अनुच्छेद 263 के तहत अंतर-राज्यीय परिषद से विवादों पर पूछताछ और सलाह देने, सभी राज्यों के लिये सामान्य विषयों पर चर्चा करने तथा बेहतर नीति समन्वय हेतु सिफारिशें करने की अपेक्षा की जाती है।
इसी तरह प्रत्येक क्षेत्र में राज्यों की सामान्य चिंता के मामलों पर चर्चा करने हेतु क्षेत्रीय परिषदों को पुनर्जीवित किए जाने की आवश्यकता है। जैसे- सामाजिक और आर्थिक योजना, सीमा विवाद, अंतर-राज्यीय परिवहन आदि से संबंधित मामले।
भारत अनेकता में एकता का प्रतीक है। हालाँकि इस एकता को और मज़बूत करने के लिये केंद्र तथा राज्य सरकारें दोनों को सहकारी संघवाद (Federalism) के लोकाचार को आत्मसात करने की आवश्यकता है।
बदलते परिदृश्य में सरकारों को क्षेत्रवाद के स्वरूप को समझना होगा। यदि यह विकास की मांग तक सीमित है तो उचित है, परंतु यदि क्षेत्रीय टकराव को बढ़ावा देने वाला है तो इसे रोकने के प्रयास किए जाने चाहिए।
वर्तमान में क्षेत्रवाद संसाधनों पर अधिकार करने और विकास की लालसा के कारण अधिक पनपता दिखाई दे रहा है। इसका एक ही हल है कि विकास योजनाओं का विस्तार सुदूर तक हो।
दोनों राज्यों को आपसी संवाद के माध्यम से सीमा विवाद को सुलझाने का प्रयास करना चाहिए। दुसरा तो, दोनों राज्यों में आपसी सहमति न बनने की स्थिति में केंद्र सरकार की मदद से इस समस्या को सुलझाया जा सकता है।
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लेखक सामाजिक विषयों के अध्ययता और जलगांव स्थित डॉ. उल्हास पाटील लॉ कॉलेज में अध्यापक हैं।