आजा़दी कि रात नेहरू ने किया था देश के ‘तकदीर से सौदा’

जवाहरलाल नेहरू कि लेखमाला :

आज हम अंग्रेजों से मिली आज़ादी कि 75वीं वर्षगांठ मना रहे हैं। इस सात दशकों मे भारत नें दुनिया भर में अपनी अलग और शक्तिशाली पहचान स्थापित की हैं। हम दुनिया के नक्शे पर विराजमान हो चुके हैं।

जिस आज़ाद भारत का सपना स्वाधीनता के नायकों ने देखा था, उसके पुरा करने में हम अब भी प्रयासरत हैं। पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने आधुनिक भारत के निर्माण को लेकर दूरअंदाज रुपरेखा बनाई थी। उन्होंने ये भाषण 14 अगस्त 1947 कि रात को संविधान सभा में दिया था, जिसे हम आपके लिए दे रहे हैं।

हुत साल हुए हमने तकदीर से एक सौदा किया था, और अब अपने इस अहद पूरा करने का समय आया है – पूरी तौर पर या जितनी चाहिए उतनी तो नहीं, फिर भी काफी हद तक। जब आधी रात के घंटे बजेंगे, जबकि सारी दुनिया सोती होगी, उस समय भारत जागते रहकर जिन्दगी और आजादी हासिल करेगा।

एक ऐसा पल आता है, जो कि इतिहास में कम ही आता है, जबकि हम पुराने को छोड़कर गए जीवन में कदम रखते है, जबकि एक सदी का अंत होता है, जबकि राष्ट्र की चिर दलित आत्मा उद्धार प्राप्त करती है। यह उचित है कि इस गंभीर क्षण में हम भारत और उसके लोगों और उससे भी बढ़कर मानवता के हित के लिए सेवा अर्पण करने की शपथ हैं।

इतिहास के सवेरे में भारत ने अपनी अनंत खोज आरंभ की। दुर्गम सदिया उसके उद्योग, उनको विशाल सफलता और उसको असफलताओं से भरी मिलेंगी। चाहे अच्छे दिन आएं हो, चाहे बुरे, उसने इस खोज को आंखों से ओझल नही होने दिया; न उन आदर्शों को ही भुलाया जिनमे उसे शक्ति प्राप्त हुई।

आज हम दुर्भाग्य की एक अवधि पूरी करते हैं, और भारत अपने आपको फिर पहचानता हूँ। जिस कीर्ती पर हम आज खुशी मना रहे हैं, वह और भी बड़ी कीर्ती और आनेवाली विजयों की दिशा केवल एक कदम है, और वाले के लिए अवसर देने वाली है। इस अवसर को ग्रहण करने भविष्य की चुनौती स्वीकार करने के लिए क्या हममें काफी साहस और काफी बुद्धि है।

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आज़ादी और ताकद जिम्मेदारी लाती है। वह जिम्मेदारी इस सभा पर है, जो कि भारत के संपूर्ण सत्ताधारी लोगों का प्रतिनिधित्व करने वाली संपूर्ण सत्ताधारी सभा है।

स्वाधीनता के जन्म से पहले हमने प्रसव को सारे दर्दों बरदाश्त की है और हमारे हृदय इस दुख की यादों से भरे हुए है। इनमें से कुछ दर्द जब भी चल रही हैं। फिर भी, अतीत समाप्त हो चुका है और अब भविष्य ही हमारा आवाहन कर रहा है।

यह भविष्य आराम करने और दम लेने के लिए नहीं है बल्कि निरंतर प्रयत्न करने के लिए है, जिससे कि हम उन प्रतिज्ञाओं को, जो हमने इतनी बार की है और उसे जो आज कर रहे है, पूरा कर सके। भारत की सेवा का अर्थ करोड़ों पीड़ितों की खिदमत है।

इसका मतलब दरिद्रता और अज्ञान और अवसर की विषमता का खात्मा करना है। हमारी पीढ़ी के सब से बड़े आदमी की यह आकांक्षा रही है कि हर आँख के हर आंसू को पोंछ दिया जाए। ऐसा करना हमारी शक्ति से बाहर हो सकता है, लेकिन जब तक आंसू है और दर्द है, तब तक हमारा काम पूरा नहीं होगा।

इसलिए हमें काम करना है और परिश्रम करना है और कठिन परिश्रम करता है जिससे कि हमारे स्वप्न पूरे हों। वे स्वप्न भारत के लिए है, लेकिन ये संसार के लिए भी हैं, क्योंकि आज सभी राष्ट्र और लोग आपस में एक दूसरे से इस तरह गुँथे हुए है कि कोई भी बिल्कुल अलग होकर रहने की कल्पना नहीं कर सकता।

शांति के लिए कहा गया है कि वह अविभाज्य है। स्वतंत्रता भी एसी ही है, और अब समृद्धि भी ऐसी है, और इस एक संसार में, जिगका कि अलग अलग टुकड़ों में अब विभाजन संभव नहीं, संकट भी ऐसा ही है।

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भारत के लोगों से, जिनके हम प्रतिनिधि है, हम अनुरोध करते है कि यकिन और निश्चय के साथ वे हमारा साथ दें। यह क्षुद्र और विनाशकारी आलोचना का समय नहीं है। असद्भावना या दूसरों पर आरोप का भी समय नहीं है। हमें आज़ाद भारत की विशाल इमारत का निर्माण करना है, जिसमें कि उसकी संतान रह सके।

महोदयमें यह प्रस्ताव उपस्थित करने की आज्ञा चाहता हूँ। –

यह निश्चय ही कि :

(1) आधी रात के अंतिम घंटे के बादइस अवसर पर उपस्थित संविधान सभा के सभी सदस्य यह शपथ लें :

इस पवित्र क्षण में, जबकि भारत के लोगों ने दुःख झेल कर और त्याग करके स्वतंत्रता प्राप्त की है, में, जो कि भारत की संविधान सभा का सदस्य हूँ, पूर्ण विनयपूर्वक भारत और उसके निवासियों की सेवा के प्रति, अपने को इस उद्देश्य से अर्पित करता हूं कि यह प्राचीन भूमि संसार में अपना उपयुक्त स्थान ग्रहण करें और संसारव्यापी शांति और मनुष्य मात्र के कल्याण के निमित्त अपना पूरा और इच्छापूर्ण अनुदान प्रस्तुत करें।

(2) जो सदस्य इस अवसर पर उपस्थित नहीं है ने यह शपथ (ऐसे शाब्दिक परिवर्तनों के साथ जो कि सभापति निश्चित करें) उस समय ले जब कि वे अगली बार इस सभा के अधिवेशन में उपस्थित हों।

जाते जाते :

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