व्यवस्था ने जिन नौजवानों को गलत तरीके दहशतगर्दी के केसेस में फसाया था। 2010 के दशक में शाहिद आजमी उन नौजवानों की आवाज बन उभरे थें। मानवताविरोधी साम्प्रदायिक गुट ने 11 फरवरी 2010 को मुंबई के कुर्ला इलाके में स्थित टॅक्सीमेन कॉलनी के उनके ऑफीस गोलियां मारकर हत्या कर दी।
इस हादसे के पूर्व औरंगाबाद शहर में ‘मौलाना आझाद रिसर्च सेंटर’ में ‘नुमाईंदा कौन्सिल, औरंगाबाद’ की ओर से ‘राष्ट्रीय दहशतगर्दी विरोधी परिषद’ आयोजित कि गयी थी। जिसमें शाहिद आजमी ने हिस्सा लिया था। उस परिषद में उन्होंने एक यह भाषण दिया था। जिसका शब्दांकन ‘टीम डेक्कन क्वेस्ट’ ने किया है, इसे तीन भागों में प्रकाशित किया जा रहा है। पेश हैं पहला भाग..
दहशतगर्दी के इल्जामात और इसमें हमारा कानूनी लाहे अमल क्या होना चाहिए। उसपर आने से पहले यह दहशतगर्द कौन है, कम से कम हिंदुस्तान के पसमंजर में इस बात की वजाहत होनी चाहिए। पिछले चार साल में मुझे कुछ मौके मिले दहशतगर्दी के केसेस में मैने कुछ कैद किए गए आरोपितों का प्रतिनिधित्व किया और उससे जो बात समझी वह मैं आपके सामने रख रहा हूं।
यह अमेरिका से लेकर हिंदुस्तान तक कई कानून में स्पष्ट (डिफाईन) किया गया है। लेकिन दहशतगर्द कौन है? और दहशतगर्द का जो दुसरा शब्द (अल्फाज) जो इन्होंने अब इस्तेमाल करना शुरु कर दिया है, जो ‘इन्सर्जन्ट’ शब्द है। यह कौन है? मैं आपको बताना चाहता हूं। इन्सर्जंट के इस्तलाहत के तौर पर अरेस्ट होनेवालों कि एक प्रोफाईल मैं आपके सामने पेश करना चाहता हूं।
दुनिया के इतिहास हो में या फिर इस्लामी इतिहास में या और किसी इतिहास में कभी भी ऐसा नहीं हुआ कि, एक समय में इतने दहशतगर्द गिरफ्तार हुए हों या जेलों में बंद किए गए होंगे। इस्लाम के नाम पे आज जितने दहशतगर्द दुनिया के जेलों में बंद है, इतने तारिख में कभी बंद नहीं हुए। अमेरिका के जेलों में बंद हैं, इंग्लंड के जेलों में बंद हैं, कॅनडा कि जेलों में बंद हैं, अफगानिस्तान की जेलों में बंद हैं, इजरायल के जेलो में बंद हैं, पाकिस्तान की जेलों में बंद हैं, भारत कि जेलो में बंद हैं।
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टेरेरिस्ट ॲक्ट क्या है?
अगर किसी दिन कोई आदमी असम कि ट्रेन में बैठकर चले जाता है मुंबई (बॉम्बे) के लिए तो अखबार उठाता जाए, जब वो असम का न्यूज पेपर उठाएगा, तो चार जिलो में 4 लोग गिरफ्तार दिखेंगे, इस्लामी दहशतगर्दी के नाम पर, बिहार पहुंचो, बिहार में कुछ लोग गिरफ्तार, उत्तर प्रदेश पहुंचे वहां कुछ लोग गिरफ्तार हुए नजर आते हैं।
आप लोगों ने सोचा है कभी कितने लोग इन आरोपो में गिरफ्तार हुए होंगे? जो हमारे पास लिस्ट मौजूद है। मराठवाडा से 11 लोग गिरफ्तार हो चुके हैं। उनमें 5 औरंगाबाद से, 2 माजलगांव से, 3 बीड से और एक परली से।
मेरा कहने का मतलब सिर्फ इतना था कि बिलावजह या बिलावास्ता इस्लाम के नाम पे दहशतगर्द बनाकर कई हजारों लोग दुनिया में गिरफ्तार हुए हैं, ऐसा युग (दौर) इतिहास में कभी नहीं था और ऐसे दौर में (जनता) उम्मत अपने आंखो को बंद करके, अपने कानों को बंद करके और अपनी जुबान को बंद करके जिस तरीके से खामोशी इख्तियार करके बैठी है, ऐसा भी इतिहास में कभी नहीं हुआ।
लेनिन कहता था जब ‘स्टेट इन्स्ट्रुमेंट ऑफ ऑपरेशन’ बन जाता है, जब खुद देश ज्यादती का सामान बन जाता है। हमारे राजनीतिज्ञ कहते हैं, जो ससंद (पार्लमेंट) में बहस करते हैं, ‘वह जो दहशतगर्द हैं, उनकी राजनीतिक चिंता (सियासी फिक्र) हमसे अलग हैं।’ इतनी सी डेफीनेशन कि जा रही है, दहशतगर्दी की वह हथियार इस्तेमाल करे या न करे, (इससे कोई फर्क नहीं पडता।)
अब आप प्रोफाईल देखते जाईए कुछ दहशतगर्दों कि, तीन साल पहले मुंबई के सॅटेलाईट टाउन मुंब्रा से एक लडके को गिरफ्तार किया जाता है। उसपर आरोप है कि जब वह पाकिस्तान से ट्रेनिंग लेकर आया, तब पुलिस उसके घरपर पहुंची और उसे गिरफ्तार किया। पुछताछ कि, “तुझे पाकिस्तान किसने भेजा?” तब तक उसे फोन आता है, वह फोन उठाता है।
पुलिसवाले पुछते हैं किसका फोन है? वह कहता है, “यह फोन उस आदमी का है, जिसने मुझे पाकिस्तान ट्रेनिंग के लिए भेजा।” पुलिसवाले कहते हैं कि, “उसको बुलाओ यहां पर, प्यार से बुलाओ, उसे पता मत लगने दो कि हम लोग यहां पर हैं। उसे आ जाने दो।” जब वह शख्स वहां आ जाता है तो उसे पुलिसवाले गिरफ्तार करते हैं।
गिरफ्तार करनेवाले वरीष्ठ इन्स्पेक्टर को वह कहता “मुझे हाथ मत लगाना, मैं इस इस कमिशनर का आदमी हुं, जाओ कमिशनर को फोन लगाओ।” पुलिस ऑफिसर कमिशनर को फोन लगाता है, और इस बात का विश्वास करता है की, यह आदमी जिसने एक मासूम लडके को ट्रेनिंग के लिए भेजा वह कमिशनर का आदमी हैं। उसको छोड दिया जाता है, जबकि इस लडके को जेल में भेज दिया जाता है, तीन साल वह जेल में रहता है।
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कैसी बनती हैं साजिश?
23 नवंबर को स्टार टीव्हीने अब का (एबीपी न्यूज) लाल किले पर हमला करनेवाले एक व्यक्ति का एक पत्र प्रकाशित किया। जिसमें वह लिखता है, “मैं कई सेंट्रल इंटेलिजन्स एजेन्सीज के लिए काम करता था। हमारा काम करने का तरिका यह होता था। मुझे किसी एक मुस्लिम इलाके में भेज दिया जाता था, मुझे कहा जाता था कि, किसी मसजिद के पास घर ले लो।
मसजिद के पास घर लेने के बाद मुझे कहा जाता था, नमाज पढना शुरु करो और मुस्लिम नौजवानों से दोस्ती करो। मुस्लिम नौजवानों से दोस्ती करता था, उन्हे जिहाद के लिए उकसाता था। कुछ लोगों को तरबियत (ट्रेनिंग अभ्यास) के लिए भेजता था। जब वह वापिस आते तो उन्हे गिरफ्तार करवा देता था। जिसके ऐवज में यह एजन्सीज मुझे इनाम देती थीं।” यह दुसरी प्रोफाईल दहशतगर्दों की।
जब वह खुद गिरफ्तार हुआ, उसे रेडफोर्ट अटॅक में अरेस्ट किया गया, तब उसने इस बात को जाहीर किया, जब उसके पास बचने का कोई मौका नहीं था। यह तिसरी प्रोफाईल हैं।
एक प्रोफाईल यह है कि जिसे ‘मेहमान मुजाहिदीन’ कहा जाता है। जो पाकिस्तानी होते हैं, या भारत में आतंकी कारवाई करने के लिए किसी और देश से आते हैं। इसी लाल किले के केस में और एक लडके को गिरफ्तार किया गया, जिसको बताया जा रहा था यह पाकिस्तान का रहनेवाला हैं।
उसने अपने केस के दौरान जब दिफा (बचाव) का मौका आया, तो उसने दिफा के दौरान बताया कि, “रॉ (RAW) के इस ऑफिसर ने मुझे पाकिस्तान से भारत बुलाया और कहा एक काम है, जो तुम्हे करना है। मैं कई सालों से हिंदुस्तान के एजंट बनके पाकिस्तान में काम करता था। मैं यहां पर आया, उसके घरपर उसके मां से भाडे का ‘लिव्ह ॲन्ड लायसेन्स’ ॲग्रिमेंट बनाके उसके घर में रहता था, यह उसका लिव्ह ॲन्ड लायसेन्स ॲग्रिमेंट है।”
न्यायालय रॉ के उस ऑफिसर को बुलाती है। उसकी गवाही शुरु होती है, गवाही के दौरान जज उसको सवाल करता है, “तुम क्या काम करते हो?” तो वह जज को कहता है, “मुझे यह सवाल करने का आपको हक नहीं है। मैं कोई कॉन्फिडेन्शियल काम करता हूं, कॅबिनेट सेक्रेटरिएट में।”
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बार-बार एक ही तरीका
यह दुनिया के सभी लोग जानते हैं, कॅबिनेट सेक्रेट्रीएट एक युफीनिजम है, इंटेलिजेंट एजेन्सीज में काम करते हैं उनके लिए। वह शख्स अपना कॅबिनेट सेक्रेट्रिएट का आयडेंटीटी कार्ड कोर्ट के सामने पेश कर देता है। वह लिव्ह एण्ड लायसेंसी ॲग्रिमेंट भी पेश होता है, वह मान लेता है और कहता है, “घर मैने भाडे पर नहीं दिया मेरी मां ने दिया, मैं तो बाहर था मेरी माँ ने दिया।” यह दहशतगर्दी कि चौथी प्रोफाईल है।
इसके बाद एक कॉन्स्टंट प्रोफाईल है, बहुत कॉमन प्रोफाईल है, जो आप 1989 से देखते हुए आ रहे हैं। चंद नौजवान एक जगह पहुंचते है, वहां दुसरे नौजवानों कि टीम आती है। मन्शा यह है हम इस वक्त उनको हथियार देंगे। ठिक उसी समय पुलिस कि गाडी आती है उनको गिरफ्तार करती है और चली जाती हैं। जो पांचवा प्रोफाईल है वह यह है।
जलिस अन्सारी इस तरह से गिरफ्तार होता है। 1997 बम ब्लास्ट के लोग गिरफ्तार होते हैं इसी तरह से, और जब भी हथियारों का सिलसिला होता है, लोग इसी तरह से गिरफ्तार होते हैं। मराठवाडा में जो लोग गिरफ्तार हुए, ‘औरंगबाद आर्म केस’ में उनकी गिरफ्तारी का तरीका यही है। वहां हथियार आ रहा था, यह लोग हथियार लेने गए, पुलिस को जानकारी मिली और उन्हे गिरफ्तार गिया गया।
यह है बार-बार का तरीका। यह तरीका नहीं बल्की पॅटर्न बन चुका है। और जो हथियार देनेवाला होता है, वह कभी गिरफ्तार नहीं होता है। गुजरात के हरेन पंड्या का केस देख लिजीए, जो मौलाना सेंटर है, कॉन्स्पेरेसी का, जिसके करीबी रिश्ते है नरेंद्र मोदी से वह गिरफ्तार नहीं होता।
बाकी सारे लोग जिस जगह से गिरफ्तार होते हैं, वह भी उसी जगह मौजूद होता है, लेकीन चंद मिनिट पहले वहां से चला जाता है। आज तक सरकार उसे ढुंढ रही है। बाकी सब लोग गिरफ्तार हैं। क्या यह दहशतगर्दी है? क्या यह लोग दहशतर्द हैं?
(क्रमश:)
(इस भाषण को आप पुरा यहा सून सकते हैं)
जाते जाते :
* ‘मुसलमानी की कहानी’ धर्मवाद पर प्रहार करती टैगोर कि रचना