भगत सिंह कहते थे, ‘क्रांति के लिए खूनी संघर्ष जरुरी नहीं’

देशवासियों को इंकलाब जिंदाबादऔर साम्राज्यवाद मुर्दाबादका क्रांतिकारी नारा दे, जंग-ए-आज़ादी में निर्णायक मोड़ लाने वाले शहीद-ए-आजम भगत सिंह की इस साल 90वीं पुण्यतिथि है। बरतानिया हुकूमत ने सरकार के खिलाफ क्रांति का बिगुल फूंकने के इल्जाम

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‘कशकोल’ : उर्दू अदब को चाहने वालों के लिए नायाब तोहफा

किताबीयत : कशकोल

बीते साल आई किताब दास्तान-ए-मुग़ल-ए-आज़मकी चर्चा अभी थमी नहीं है कि वरिष्ठ लेखक, पत्रकार और हिंदी सिनेमा के गहन अध्येता राजकुमार केसवानी की एक और शानदार किताब कशकोलआ गई है। किताब की टैगलाइन

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शोषित वर्गों के हक में आग उगलती थी कृश्न चंदर की कलम

र्दू अदब के अफसानानिगार कृश्न चंदर ने बेशुमार लिखा हैं। हिंदी और उर्दू दोनों ही जबानों में समान अधिकार के साथ लिखा। कृश्न चंदर की जिन्दगी के ऊपर तरक्कीपसंद तहरीक का सबसे ज्यादा असर पड़ा।

यह अकारण नहीं है कि उनके ज्यादातर अफसाने समाजवाद

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…और बगावत बन गई साहिर के मिजाज का हिस्सा!

साल 2021, शायर-नग्मा निगार साहिर लुधियानवी का जन्मशती साल है। इस दुनिया से रुखसत हुए, उन्हें एक लंबा अरसा हो गया, मगर आज भी उनकी शायरी सिर चढ़कर बोलती है। उर्दू अदब में उनका कोई सानी नहीं। 8 मार्च, 1921

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उर्दू ज़बान के ‘शायर-ए-आज़म’ थे फ़िराक़ गोरखपुरी!

क उम्दा मोती, खु़श लहजे के आसमान के चौहदवीं के चांद और इल्म की महफ़िल के सद्र। ज़हानत के क़ाफ़िले के सरदार। दुनिया के ताजदार। समझदार, पारखी निगाह, ज़मीं पर उतरे फ़रिश्ते, शायरे-बुजु़र्ग और आला। अपने फ़िराक़ को मैं

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शायर-ए-इंकलाब ‘जोश मलीहाबादी’ पाकिस्तान क्यों चले गए?

र्दू अदब में जोश मलीहाबादी वह आला नाम है, जो अपने इंकलाबी कलाम से शायर-ए-इंकलाब कहलाए। उनके तआरुफ और अज्मत को बतलाने के लिए उनके हजारों शेर काफी है। वरना उनके अदबी खजाने में ऐसे-ऐसे कीमती हीरे-मोती हैं, जिनकी चमक

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इश्क के नर्म एहसास वाले बागी शायर थे जां निसार अख्त़र

जां निसार अख्त़र, तरक्कीपसंद तहरीक से निकले वे हरफनमौला शायर हैं, जिन्होंने न सिर्फ शानदार ग़ज़लें लिखीं, बल्कि नज़्में, रुबाइयां, कितआ और फिल्मी नगमें भी उसी दस्तरस के साथ लिखे। मध्य प्रदेश के ग्वालियर में 18 फरवरी, 1914 को

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गुलाम रब्बानी ताबां जिन्होंने दंगों के विरोध में लौटाया ‘पद्मश्री’

र्दू अदब में ग़ुलाम रब्बानी ताबां का शुमार तरक्कीपसंद शायरों की फेहरिस्त में होता है। उन्होंने न सिर्फ़ शायरी की ज़मीन पर तरक्कीपसंद ख्याल और उसूलों को आम करने की कोशिश की, बल्कि इसके लिए हर मोर्चे पर ताउम्र जद्दोजहद करते रहे। तमाम

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अपनी कहानियों को खुद जीती थी रज़िया सज्जाद जहीर!

ज़िया दिलशाद उर्फ रज़िया सज्जाद जहीर को ज्यादातर लोग प्रगतिशील लेखक संघ के संस्थापक सदस्य सज्जाद जहीर की पत्नी के तौर पर जानते-पहचानते हैं। जबकि उनकी खुद की एक अलहेदा पहचान थी। वे एक बहुत अच्छी अफसानानिगार और आला दर्जे की अनुवादक थीं।

उन्होंने

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एहसान दानिश की पहचान ‘शायर-ए-मजदूर’ कैसे बनी?

र्दू अदब में एहसान दानिश की पहचान, ‘शायर-ए-मजदूर के तौर पर है। मजदूरों के उन्वान से उन्होंने अनेक गजलें, नज्में लिखीं। वे एक अवामी शायर थे। किसानों, कामगारों के बीच जब दानिश अपना कलाम पढ़ते थे, तो एक

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