अमर शेख कैसे बने प्रतिरोध की बुलंद आवाज?

मर शेख एक आंदोलनकारी लोक शाहीर थे। वे जन आंदोलनों की उपज थे। यही वजह है कि अपनी जिन्दगी के आखिरी समय तक वे आंदोलनकारी रहे। देश की आजादी के साथ-साथ ‘संयुक्त महाराष्ट्र आंदोलन’ और ‘गोवा मुक्ति आंदोलन’ में भी उनकी सक्रिय भूमिका रही। …

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किसान और मजदूरों के मुक्तिदाता थें मख़दूम मोहिउद्दीन

मेहनतकशों के चहेते, इंकलाबी शायर मख़दूम मोहिउद्दीन (Makhdoom Mohiuddin) का शुमार मुल्क में उन शख्सियतों में होता है, जिन्होंने अपनी पूरी जिन्दगी अवाम की लड़ाई लड़ने में गुजार दी। सुर्ख परचम के तले उन्होंने आज़ादी की तहरीक में हिस्सेदारी की

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कहानियों से बातें करने वाली इस्मत आपा

हिन्दी, उर्दू अदब की दुनिया में ‘इस्मत आपा’ के नाम से मशहूर इस्मत चुगताई की पैदाइश उत्तर प्रदेश का बदायूं शहर है। 21 अगस्त 1915 को उनका जन्म हुआ।अलबत्ता उनका बचपन और जवानी उत्तर प्रदेश और राजस्थान के कई शहरों में गुजरा। बाद में …

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फकरुद्दीन बेन्नूर : मुसलमानों के समाजी भाष्यकार

देश में हिन्दुत्वप्रणित संघठनों का आतंक जब अपनी चरम पर था, ठिक उसी समय सामाजिक सौहार्द और सद्भावना के बानी प्रो. फकरुद्दीन बेन्नूर इस दुनिया से चल बसें। आज उनके निधन को दो साल पूरे हुए हैं। इस बिच मुसलमानों के दुख और दर्द

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मुल्क की सतरंगी विरासत के बानी थे राहत इंदौरी

अब ना मैं हूँ ना बाक़ी हैं ज़माने मेरे

फिर भी मशहूर हैं शहरों में फ़साने मेरे।

कुछ ऐसे ही हालात हैं, शायर राहत इंदौरी के इस जहान-ए-फानी से जाने के बाद। उनको चाहने वाला हर शख्स, इस महबूब शायर को अपनी-अपनी तरह

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जिन्दगी को करीब लाती हैं भीष्म साहनी की कहानियाँ

प्रगतिशील और प्रतिबद्ध रचनाकार भीष्म साहनी को याद करना, हिन्दी की एक शानदार और पायदार परम्परा को याद करना है। वे एक अच्छे रचनाकार के अलावा कुशल संगठनकर्ता भी थे। प्रगतिशील लेखक संघ के महासचिव के तौर पर उन्होंने देश भर में इस संगठन

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शकील बदायूंनी : वो मकबूल शायर जिनके लिये लोगों ने उर्दू सीखी

मैं शकीलदिल का हूं तर्जुमा,

कि मुहब्बतों का हूं राज़दां

मुझे फ़क्र है मेरी शायरी,

मेरी जिन्दगी से जुदा नहीं

शायर शकील बदायूंनी की गजल का यह शानदार शेर वाकई उनकी पूरी जिन्दगी और फलसफे की तर्जुमानी करता

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प्रेमचंद सांप्रदायिकता को इन्सानियत का दुश्मन मानते थे

हिन्दी-उर्दू साहित्य में कथाकार प्रेमचंद का शुमार, एक ऐसे रचनाकार के तौर पर होता है, जिन्होंने साहित्य की पूरी धारा ही बदल कर रख दी। देश में वे ऐसे पहले शख्स थे, जिन्होंने हिन्दी साहित्य को रोमांस, तिलिस्म, ऐय्यारी

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मर्दवादी सोच के खिलाफ ‘अंगारे’ थी रशीद ज़हां

डॉ. रशीद ज़हां, तरक्कीपसंद तहरीक का वह उजला, चमकता और सुनहरा नाम है, जो अपनी 47 साल की छोटी सी जिन्दगानी में एक साथ कई मोर्चों पर सक्रिय रहीं।

उनकी कई पहचान थीं मसलन अफसानानिगार, नाटककार, पत्रकार, डॉक्टर

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जब अपने दोस्त जगन्नाथ के हाथों काटे गये क्रांति योद्धा अहमदुल्लाह

1787 में एक साधारण परिवार में जन्मे सिकंदर शाह को हम अहमदुल्लाह शाह मौलाना के नाम से जानते हैं। उनके पिता मूल रूप से हरदोई के रहने वाले थे और अर्काट के नवाब के कारिंदे थे। बाद में वे हैदर अली की फ़ौज

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