कैफ़ी ने शायरी को इश्कियां गिरफ्त से छुड़ाकर जिन्दगी से जोड़ा

रीब 80 फिल्मों में गीत लिखने वाले क़ैफी आज़मी के गीतों में जिन्दगी के सभी रंग दिखते हैं। फिल्मों में आने के बाद भी उन्होंने अपने गीतों, शायरी का मैयार नहीं गिरने दिया।

सिने इतिहास की क्लासिक कागज़ के फूल के

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अपनों की गद्दारी के चलते शहीद हुए तात्या टोपे

ज़ादी के पहले मुक्ति संग्राम 1857 में यूं तो मुल्क के हजारों लोगों ने हिस्सेदारी की और अपनी जान को कुर्बान कर, इतिहास में हमेशा के लिए अमर हो गए। लेकिन कुछ नाम ऐसे हैं, जिनकी बहादुरी के किस्से आज भी फिजा

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शाहजहाँ ने अपने बाप से क्यों की थी बगावत?

शाहजहाँ का उदय नूरजहाँ की हिमायत के वजह से नही बल्कि उसकी काबिलियत और कारनामों के वजह से हुआ था। शाहजहाँ की अपनी महत्वाकांक्षाएं थी जिनसे जहाँगीर बेखबर नही था।

उन दिनों कोई शासक ये जोखिम नही उठाता था कि कोई अमीर या राजकुमार

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सावित्री बाई फुले को कितना जानते हैं आप?

किसी भी कॉलेज के गेट के बाहर खड़े होकर अगर आप किसी छात्रा से पुछेंगे, “सावित्री बाई फुले कौन है?” तो शायद लडकियों से जवाब मिलने कि सुरत बहुत कम हैं। क्योंकि उनकी पिढी इस ऐतिहासिक किरदार को ज्यादा नही जानती।

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सूर और ताल की सौगात पेश करने वाले नौशाद अली

हिंदी सिनेमा की शुरुआत को हुए, एक सदी से ज्यादा गुजर गया, लेकिन कोई दूसरा नौशाद नहीं आया। नगमा-ओ-शेर की जो सौगात उन्होंने पेश की, कोई दूसरा उसे दोहरा नहीं पाया। फिल्मी दुनिया के अंदर थोड़े से ही वक्फे में नौशाद ने बड़े-बड़े नामवरों

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जब तक रफी के गीत नही होते, हिरो फिल्में साईन नही करते!

ता भारत रत्न, मुहंमद रफी क्यों नहीं?अक्सर यह सवाल शहंशाह-ए-तरन्नुम मुहंमद रफी के चाहने वाले पूछते हैं, लेकिन इस सवाल का जवाब किसी के पास नहीं हैं। क्यों हमने अपने इस शानदार गायक की उपेक्षा की है? ‘भारत रत्न’, तो छोड़िए

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तीन लाख डॉलर में बिकती थी तैयब मेहता की पेंटिग

मकालीन भारतीय कला इतिहास में तैयब मेहता अकेले पेंटर थे जिनका काम इतनी अकल्पनीय कीमतों में बिका है। तैयब एक शांतखामोशबेचैनसजग और जनचेतना के चितेरे थे। वे निहायत संकोची, विनम्र और अपनी कला में डूबे रहने वाले

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आज भी ‘हर जोर-जुल्म की टक्कर में’ गूंजता हैं शैलेंद्र का नारा

हिन्दी साहित्य में शैलेंद्र की पहचान क्रांतिकारी और संवेदनशील गीतकार के तौर पर है। वे सही मायने में जन कवि थे। उनकी कोई भी कविता और गीत उठाकर देख लीजिए, उसमें सामाजिक चेतना और राजनीतिक जागरूकता स्पष्ट दिखलाई देती है।

बाबा नागार्जुन,

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मुल्कराज ने लिखा अंग्रेजी मगर हमेशा रहे भारतीय

पनी 99 साला जिन्दगी में मुल्कराज आनंद ने 100 से ज्यादा किताबें लिखीं। जिनका दुनिया की 22 जबानों में अनुवाद हुआ और यह किताबें सभी जगह सराही गईं। उनकी किताबों का यदि प्रकाशन-क्रम देखें, तो जब से उन्होंने लिखना शुरू किया, तब से लगभग

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प्रो. बेन्नूर हालात से समझौता करते तो अलग-थलग ना होते

भाग-4

प्रो. फकरुद्दीन बेन्नूर महाराष्ट्र का जाना-माना और नामचीन नाम। राजनीतिक विश्लेषक के रूप में उन्होंने कई किताबों की रचना की हैं। महाराष्ट्र ने उन्हें कई सम्मानों से नवाजा हैं। अगस्त 2018 में उनका निधन हुआ। 

25 नवम्बर को उनका जन्मदिन। उनके करीबी

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