अली के मुक्कों से ज्यादा ताकतवर थी उनकी ज़ुबान

मुहंमद अली और जॉर्ज फोरमैन के मुकाबले की नींव उस समय रखी गई जब मुहंमद अली ने अचानक हैवीवेट बॉक्सिंग चैंपियन जॉर्ज फ़ोरमैन को फ़ोन मिलाकर उन्हें चुनौती दी, “जॉर्ज क्या तुम में मेरे सामने रिंग में उतरने की हिम्मत है?”

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मौलाना वहीदुद्दीन खान : भारत के मकबूल इस्लामिक स्कॉलर

शहूर इस्लामिक विद्वान और गांधीवादी मौलाना के नाम से प्रसिद्ध वहिदुद्दीन ख़ान अब हमारे बीच नही हैं। खबरों के मुताबिक 21 अप्रेल की देर रात दिल्ली के एक अस्पताल में उनका निधन हुआ।

बता दे की 96 वर्षीय मौलाना कोविड से संक्रमित थे, इलाज

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जब बलराज साहनी ने सच में सड़कों पर चलाया हाथ रिक्शा !

लराज साहनी एक जनप्रतिबद्ध कलाकार, हिन्दी-पंजाबी के महत्वपूर्ण लेखक और संस्कृतिकर्मी थे। जिन्होंने अपने कामों से भारतीय लेखन, कला और सिनेमा को एक साथ समृद्ध किया। उनके जैसे कलाकार कभी कभी ही पैदा होते हैं। बलराज ने अपनी पढ़ाई पूरी करने के

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भगत सिंह कहते थे, ‘क्रांति के लिए खूनी संघर्ष जरुरी नहीं’

देशवासियों को इंकलाब जिंदाबादऔर साम्राज्यवाद मुर्दाबादका क्रांतिकारी नारा दे, जंग-ए-आज़ादी में निर्णायक मोड़ लाने वाले शहीद-ए-आजम भगत सिंह की इस साल 90वीं पुण्यतिथि है। बरतानिया हुकूमत ने सरकार के खिलाफ क्रांति का बिगुल फूंकने के इल्जाम

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शोषित वर्गों के हक में आग उगलती थी कृश्न चंदर की कलम

र्दू अदब के अफसानानिगार कृश्न चंदर ने बेशुमार लिखा हैं। हिंदी और उर्दू दोनों ही जबानों में समान अधिकार के साथ लिखा। कृश्न चंदर की जिन्दगी के ऊपर तरक्कीपसंद तहरीक का सबसे ज्यादा असर पड़ा।

यह अकारण नहीं है कि उनके ज्यादातर अफसाने समाजवाद

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…और बगावत बन गई साहिर के मिजाज का हिस्सा!

साल 2021, शायर-नग्मा निगार साहिर लुधियानवी का जन्मशती साल है। इस दुनिया से रुखसत हुए, उन्हें एक लंबा अरसा हो गया, मगर आज भी उनकी शायरी सिर चढ़कर बोलती है। उर्दू अदब में उनका कोई सानी नहीं। 8 मार्च, 1921

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उर्दू ज़बान के ‘शायर-ए-आज़म’ थे फ़िराक़ गोरखपुरी!

क उम्दा मोती, खु़श लहजे के आसमान के चौहदवीं के चांद और इल्म की महफ़िल के सद्र। ज़हानत के क़ाफ़िले के सरदार। दुनिया के ताजदार। समझदार, पारखी निगाह, ज़मीं पर उतरे फ़रिश्ते, शायरे-बुजु़र्ग और आला। अपने फ़िराक़ को मैं

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बारा साल की उम्र में ही सरोजिनी नायडू को निज़ाम ने दिया था वजीफा

भारत कोकिला की उपनाम से सुपरिचित सरोजिनी नायडू की कविताओं में प्रेम एक सरस-सहज प्रवाह की तरह दिखाई देता है। प्रेम की यह उपस्थिति उनके लिए केवल कविताओं का विषय नहीं थी।

डॉ. अघोरनाथ चट्टोपाध्याय की बेटी और गोपालकृष्ण गोखले की शिष्या सरोजिनी के

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शायर-ए-इंकलाब ‘जोश मलीहाबादी’ पाकिस्तान क्यों चले गए?

र्दू अदब में जोश मलीहाबादी वह आला नाम है, जो अपने इंकलाबी कलाम से शायर-ए-इंकलाब कहलाए। उनके तआरुफ और अज्मत को बतलाने के लिए उनके हजारों शेर काफी है। वरना उनके अदबी खजाने में ऐसे-ऐसे कीमती हीरे-मोती हैं, जिनकी चमक

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इश्क के नर्म एहसास वाले बागी शायर थे जां निसार अख्त़र

जां निसार अख्त़र, तरक्कीपसंद तहरीक से निकले वे हरफनमौला शायर हैं, जिन्होंने न सिर्फ शानदार ग़ज़लें लिखीं, बल्कि नज़्में, रुबाइयां, कितआ और फिल्मी नगमें भी उसी दस्तरस के साथ लिखे। मध्य प्रदेश के ग्वालियर में 18 फरवरी, 1914 को

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