बशर नवाज़ : साहित्य को जिन्दगी से जोड़नेवाले शायर

क्षिण महाराष्ट्र को साहित्यकारों और विद्वानों कि भूमि कहा जाता है। यहां के सूफी संतो सामाजिक सौहार्द और बहुसांस्कृतिकता को संजो कर रखने की कोशिशों मे लगे थे, इस विरासत को यहां के साहित्यकार, लेखक और शायरों ने आगे ले जाने का

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भावों को व्यक्त करना हैं ग़ज़ल लिखने की चुनौती

ग़ज़ल का फार्म हिन्दी, उर्दू, फारसी, तुर्की आदि एशियाई भाषाओं के कवियों को ही नहीं पश्चिमी भाषाओं के कवियों को भी आकर्षित करता है। इसका कारण क्या है? संक्षेप में कह सकते हैं कि ग़ज़ल का फॉर्म  एक विचार,

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उम्दा गायक ही नहीं, दरिया दिल भी थे मुहंमद रफी !

नवरी, 1948 में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की हत्या के बाद, उन्हें श्रद्धांजलि देने के लिए जब मुहंमद रफी ने ‘सुनो सुनो ऐ दुनिया वालों, बापू की ये अमर कहानी’ गीत गाया, तो इस गीत को सुनकर देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू की

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iQBAL MINNE/DECCAN QUEST

नौजवां दिलों के समाज़ी शायर थे शम्स ज़ालनवी





हर जालना में अवाम की सुबह अखबारों से रोशन करने का जिक्र छिडता तो शम्स ज़ालनवी (Shams Jalanvi) का नाम हर एक के जुबा पर होता हैं।

रोजाना अल सुबह साइकल के पहियों पर दौडने वाला इस छरहरी जिस्म के शख्सियत का कद

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शब्दों से जिन्दगी का फलसफा बताने वाले ‘नीरज’

गोपाल दास नीरजउस कवि संमेलन परंरा के आखिरी वारिस थे, जिन्हें सुनने और पढ़ते हुए देखने के लिए हजारों श्रोता रात-रात भर बैठे रहते थे। उनकी रचनाओं में गीतों का माधुर्य और जीवन का संदेश एक

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क्या हिन्दी को रोमन लिपि के सहारे की जरूरत हैं?

जानेमाने लेखक और कथाकार डॉ. असगर वज़ाहत ने हिन्दी भाषा पर रोमन लिपि के आक्रमण पर चर्चा करता एक विस्तृत लेख लिखा था, जिसपर काफी चर्चा हुई थी वह आलेखडेक्कन क्वेस्ट पर पुनर्प्रकाशित किया गया जिसका जवाब डॉ.

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‘रोमन’ हिन्दी खिल रही है, तो ‘देवनागरी’ मर रही है

मुंबई से फिल्म निर्देशक का फोन आया कि फिल्म के संवाद रोमन लिपि में लिखे जाएं। क्यों? इसलिए कि अभिनेताओं में से कुछ हिन्दी बोलते-समझते हैं लेकिन नागरी लिपि नहीं पढ़ सकते। कैमरामैन गुजरात का है। वह भी हिन्दी समझता-बोलता है लेकिन पढ़ नहीं सकता। …

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अनुवाद में कठिन शब्दों को निकालने कि ‘आज़ादियां’ है

पंडित रतन नाथ सरशार’ (1846-1903) उर्दू के एक विलक्षण लेखक थे जिनकी सबसे बड़ी रचना तीन हज़ार पृष्ठों में फैला उपन्यास फ़सान-ए-आज़ादहै जिसे 19वीं शताब्दी के सामाजिक – सांस्कृतिक इतिहास का एक प्रामाणिक दस्तावेज भी माना जाता है।

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अनुवाद में मूल भाषा का मिज़ाज

अनुवाद में मूल भाषा का मिज़ाज क्यों जरुरी हैं ?

रसरी तौर पर देखने से लगता है की उर्दू टेक्स्ट का हिन्दी अनुवाद एक बहुत सरल काम है क्योंकि भाषा एक है। इसलिए केवल लिप्यंतरण से काम चल जाएगा। माना भी यही जाता है की उर्दू-हिन्दी और हिन्दी-उर्दू का अनुवाद लिप्यंतरण तक सीमित रहना

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तीस साल बाद कहां खडा हैं मुस्लिम मराठी साहित्य आंदोलन?

मुस्लिम मराठी साहित्य परिषद कि स्थापना हुए अब 30 साल पुरे हो चुके हैं। इन तीन दशको में कृष्णा-भीमा नदी के सतह के नीचे से बहुत सा पानी बह चुका हैं। नब्बे का दशक अब नही रहा। संघ परिवार ने कथित सांस्कृतिक राष्ट्रवाद

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