क्या हैं, चर्च से मस्जिद बने ‘अया सोफ़िया’ कि कहानी?

बात करीबन पांच सौ साल पुरानी हैं, जब क़ुस्तुनतुनिया विजय के शान समझी जानेवाली एक प्रसिद्ध इमारत में तत्कालीन सुलतान मेहमद (द्वितीय) जुमा कि नमाज अदा करने आनेवाले थे।

नमाज से पहले हजारो लोग सुलतान के आमद का इंतजार कर रहे थे। उनमें

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यूसुफ़ मेहरअली : भुलाये गए ‘लोकनायक’

यूसुफ़ मेहरअली का नाम शायद ही आज के पिढ़ी के नौजवानो को पता होगा, मग साधारण सी कद काठी सा दिखनेवाला यह इन्सान भारत के उन महामानवों कि सूची मे है, जिन्होंने स्वाधीनता के लिए अपने जान कि भी परवाह नही की। उनके करीबी …

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समाज बुद्धिजीवी बने यहीं था मोईन शाकिर का सिद्धान्त

पंधरा साल का एक लडका घर कि अमीरी, रुतबा और तामझाम से तंग आकर हमेशा के लिए घर छोड देता हैं। जाते जाते अब्बू कहते हैं, “तूम जा तो रहे हैं, मगर तुम्हें इस घर से कुछ नही मिलेंगा। जमीन, जायदाद से तूम बेदखल …

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वतन और कला से मक़बुलियत रखनेवाले एम. एफ. हुसैन

पने वतन के मिट्टी को छुने कि आखरी तमन्ना लिए मकबूल हुसैन नौं साल पहले हमसे विदा हो गए। दुनिया का यह विख्यात कलाकार आखरी वक्त दर-दर कि ठोकरे खाने पर मजबूर था। इसकी वजह मुफलिसी नही बल्कि अपने ही वतन के कुछ नफरती

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शिबली नोमानी कैसे बने ‘शम्स उल उलेमा’?

क नौज़वान आज़मगढ़ से लाहौर के लिए निकला। उसके जेब में केवल 25 रुपये थे। आज़मगढ़ से जौनपुर तक उसने घोडागाड़ी कि यात्रा की जिसमें 3 रुपये खर्च हो गए। जौनपुर से रेल के जरिए वह सहारनपुर पहुंचा, जिसमें 7 रुपये लगे। सहारनपुर

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स्वदेशी आग्रह के लिए गांधी से उलझने वाले हसरत मोहानी

क गठीला नौजवान अलीगढ़ कॉलेज के छात्रावास में दाखील हुआ। उसकी पेशानी चौडी थी और चेहरा पसरा हुआ गोल, आँखों पर चष्मा, खुबसुरत शेरवानी, हवा से लहराता हुआ पजामा, चेहरे पर तराशी हुई लंबी सी दाढी, बगल में कपडों कि अटैची और एक हाथ

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बेशर्म समाज के गंदी सोंच को कागज पर उतारते मंटो

आदत हसन मंटो के बारे में बहुत सी कहानियां किस्से प्रचलित है। मात्र इसके विपरीत मंटो की शख्सियत नजर आती है।

मंटो महज एक अफसानानिगार नहीं थे बल्कि वह एक पॉलिटिकल कमेंटेटर भी थें। नया कानून, अंकल सैम का खत

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औरंगाबाद का वह प्लेन हादसा जिसने देश को हिला दिया

तीन दशक पुरानी उस विमान दुर्घटना को याद करते हुए आज भी औरंगाबाद वासीयों के रोंगटे खडे हो जाते हैं, जब एक मामूली सी घटना 55 लोगो कि जान लेने का सबब बनी। उस समय इंडियन एअरलाइन्स के उस विमान में कुल 118 वीआईपी

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डॉ. मुहंमद इकबाल एक विवादित राष्ट्रवादी

डॉ. इकबाल के पिता शेख नूर मुहंमद एक श्रद्धावंत तथा सूफी प्रवृत्ती के बुजुर्ग थे। उन्होंने अपने बेटे को कुरआनी शिक्षा के लिए एक सियालकोट के उमर शाह के मकतब याने मदरसे में भर्ती कराया। आगे चलकर प्राथमिक शिक्षा के लिए मदरसे को बदला

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‘मशाहिरे हिन्द’ बेगम निशात उन् निसा मोहानी

भारत के स्वाधीनता संग्राम में महिलाओं ने अपनी अग्रणी भूमिका निभाई हैं। कई स्त्रिया ऐसी थी, जिन्होंने इस आंदोलन में अपनी स्वतंत्र पहचान स्थापित की थी। तो कई खवातीनें ऐसी थीं जो अपने खाविंद के साथ कंधे से कंधा मिलाकर ब्रिटिशों के खिलाफ आजादी

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