अब्बास को फिल्मी दुनिया में मिलती थी ‘मुंह मांगी रकम !’

फिल्म निर्माता, निर्देशक, कलाकार, पत्रकार, उपन्यासकार, पब्लिसिस्ट और देश के सबसे लंबे समय यानी 52 साल तक चलने वाले अखबारी स्तंभ दि लास्ट पेजके स्तंभकार ख्वाजा अहमद अब्बास उन कुछ गिने चुने लेखकों में से एक

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प्रगतिशील लेखक संघ : साहित्य आंदोलन का मुकम्मल खाका

नौ अप्रैल, प्रगतिशील लेखक संघ (Progressive Writers Association) का स्थापना दिवस है। साल 1936 में आज ही के दिन लखनऊ के मशहूर रफा-ए-आमक्लब में प्रगतिशील लेखक संघ का पहला राष्ट्रीय अधिवेशन संपन्न हुआ था, जिसमें बाकायदा संगठन की

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उर्दू ज़बान के ‘शायर-ए-आज़म’ थे फ़िराक़ गोरखपुरी!

क उम्दा मोती, खु़श लहजे के आसमान के चौहदवीं के चांद और इल्म की महफ़िल के सद्र। ज़हानत के क़ाफ़िले के सरदार। दुनिया के ताजदार। समझदार, पारखी निगाह, ज़मीं पर उतरे फ़रिश्ते, शायरे-बुजु़र्ग और आला। अपने फ़िराक़ को मैं

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शायर-ए-इंकलाब ‘जोश मलीहाबादी’ पाकिस्तान क्यों चले गए?

र्दू अदब में जोश मलीहाबादी वह आला नाम है, जो अपने इंकलाबी कलाम से शायर-ए-इंकलाब कहलाए। उनके तआरुफ और अज्मत को बतलाने के लिए उनके हजारों शेर काफी है। वरना उनके अदबी खजाने में ऐसे-ऐसे कीमती हीरे-मोती हैं, जिनकी चमक

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इश्क के नर्म एहसास वाले बागी शायर थे जां निसार अख्त़र

जां निसार अख्त़र, तरक्कीपसंद तहरीक से निकले वे हरफनमौला शायर हैं, जिन्होंने न सिर्फ शानदार ग़ज़लें लिखीं, बल्कि नज़्में, रुबाइयां, कितआ और फिल्मी नगमें भी उसी दस्तरस के साथ लिखे। मध्य प्रदेश के ग्वालियर में 18 फरवरी, 1914 को

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गुलाम रब्बानी ताबां जिन्होंने दंगों के विरोध में लौटाया ‘पद्मश्री’

र्दू अदब में ग़ुलाम रब्बानी ताबां का शुमार तरक्कीपसंद शायरों की फेहरिस्त में होता है। उन्होंने न सिर्फ़ शायरी की ज़मीन पर तरक्कीपसंद ख्याल और उसूलों को आम करने की कोशिश की, बल्कि इसके लिए हर मोर्चे पर ताउम्र जद्दोजहद करते रहे। तमाम

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एहसान दानिश की पहचान ‘शायर-ए-मजदूर’ कैसे बनी?

र्दू अदब में एहसान दानिश की पहचान, ‘शायर-ए-मजदूर के तौर पर है। मजदूरों के उन्वान से उन्होंने अनेक गजलें, नज्में लिखीं। वे एक अवामी शायर थे। किसानों, कामगारों के बीच जब दानिश अपना कलाम पढ़ते थे, तो एक

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मुल्कराज ने लिखा अंग्रेजी मगर हमेशा रहे भारतीय

पनी 99 साला जिन्दगी में मुल्कराज आनंद ने 100 से ज्यादा किताबें लिखीं। जिनका दुनिया की 22 जबानों में अनुवाद हुआ और यह किताबें सभी जगह सराही गईं। उनकी किताबों का यदि प्रकाशन-क्रम देखें, तो जब से उन्होंने लिखना शुरू किया, तब से लगभग

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सज्जाद ज़हीर : साहित्य में प्रगतिशीलता की नींव रखने वाले रहनुमा

हिन्दुस्ताँनी अदब में सज्जाद जहीर की शिनाख्त, तरक्की पसंद तहरीक के रूहे रवां के तौर पर है। वे राइटर, जर्नलिस्ट, एडिटर और फ्रीडम फाइटर भी थे। साल 1935 में अपने चंद तरक्कीपसंद दोस्तों के साथ लंदन में प्रगतिशील लेखक संघ की

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किसान और मजदूरों के मुक्तिदाता थें मख़दूम मोहिउद्दीन

मेहनतकशों के चहेते, इंकलाबी शायर मख़दूम मोहिउद्दीन (Makhdoom Mohiuddin) का शुमार मुल्क में उन शख्सियतों में होता है, जिन्होंने अपनी पूरी जिन्दगी अवाम की लड़ाई लड़ने में गुजार दी। सुर्ख परचम के तले उन्होंने आज़ादी की तहरीक में हिस्सेदारी की

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