पाकिस्तान का टूटना और बांग्लादेश का बनना भारत के लिए सबक़

चास साल पहले 16 दिसम्बर 1971 को पाकिस्तान के 93000 सैनिकों के हथियार डाल देने के बाद नए राष्ट्र बांग्लादेश के निर्माण का रास्ता साफ़ हो गया। इसके साथ ही मज़हबी नफ़रत और दो क़ौमी नज़रिये की बुनियाद पर बने पाकिस्तान के निर्माण का …

यहाँ क्लिक करें

जब निजामुद्दीन की बासी रोटी के लिए ख़ुसरो ने छोड़ा शाही दस्तरख़ान

जरत अमीर ख़ुसरो के दौर का एक वाकया है, मंगोलों ने अचानक देहली पर हमला बोल दिया। अलाउद्दीन खिलजी की फ़ौज ने खूब डटकर सामना किया। मंगोलों को आखिरकार मुंह की खानी पड़ी। कुछ तो अपनी जान बचा कर भागने में कामयाब हुए तो

यहाँ क्लिक करें

इतिहास लिखने ‘जंग ए मैदान’ जाते थे अमीर ख़ुसरो

मीर खुसरो सन् 1286 ईसवीं में अवध के गवर्नर (सूबेदार) खान अमीर अली उर्फ हातिम खां के यहां दो साल तक रहे। यहां खुसरो ने इन्हीं अमीर के लिए अस्पनामाउनवान से किताब लिखी।

खुसरो लिखते हैं, वाह क्या शादाब सरजमीं

यहाँ क्लिक करें

तहज़ीब और सक़ाफ़त में अमीर ख़ुसरो की खिदमात

मीर ख़ुसरो बहुत सारी खूबियों के मालिक थे और उनकी शख़्सियत बहुत वअसी थी। वो शायर थे, तारीख़दां थे, फ़ौजी जनरल, अदीब, सियासतदां, मौसीक़ीकार, गुलूकार, फलसफ़ी, सूफ़ी और न जाने कितनी शख़्सियात के मालिक थे।

मेरी

यहाँ क्लिक करें

सांसद पेंशन सम्मान लेने से मना करने वाले मधु लिमये

गोवा मुक्ति संग्राम का अंतिम चरण आज से लगभग 75 साल पहले समाजवादी नेता डॉ. राममनोहर  लोहिया द्वारा 18 जून 1946 को शुरू किया गया था। इसके लगभग पन्द्रह साल बाद 18-19 दिसंबर 1961 को गोवा, भारत सरकार द्वारा एक सैन्य ऑपरेशन

यहाँ क्लिक करें

‘मलियाना नरसंहार’ की कहानी चश्मदीदों की जुबानी

लियाना के रहने वाले पत्रकार सलीम अख्तर सिद्दिकी बताते हैं, 23 मई 1987 को लगभग दोपहर बारह बजे से पुलिस और पीएसी ने मलियाना की मुस्लिम आबादी को चारों ओर से घेरना शुरु किया। यह घेरे बंदी लगभग ढाई बजे खत्म हुई। पूरे

यहाँ क्लिक करें

तीस साल गुजरे आखिर ‘मलियाना हत्याकांड’ में न्याय कब होगा?

पिछले 19 अप्रैल 2021 को इलाहाबाद उच्च न्यायालय में एक जनहित याचिका (पीआईएल) दायर की गई है जिसमें कहा गया है कि 34 वर्ष पहले मेरठ के मलियाना गांव और मेरठ तथा फतेहगढ़ जेल में हुई उन हत्याओं की जाँच नए सिरे से एक

यहाँ क्लिक करें

बिहार चुनावी नतीजे विपक्ष के लिए आई-ओपनर

बिहार विधान सभा चुनावों का विश्लेषण करते हुए विगत 31 अक्टूबर 2020 को ‘राष्ट्रीय सहारा’ में प्रकाशित अपने लेख में मैंने लिखा था की इस बार के चुनाव में नीतिश  कुमार के लिए राह आसान नहीं होगी। अब नतीजे सामने हैं और दोनों गठबंधनों

यहाँ क्लिक करें

मीडिया के बिगड़ने में बहुसंख्यकवादी राजनीति का रोल

भारत की मीडिया के सामने इस समय सबसे बड़ा सवाल उसकी साख, उसकी भटकती भूमिका और भाषा के गिरते स्तर को लेकर है। ऐसे में ये सवाल उठना भी लाज़मी है कि दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र होने और स्वतंत्र एवं निष्पक्ष मीडिया

यहाँ क्लिक करें

राम मंदिर निर्माण से क्या बाकी विवाद थम जायेगा?

सुप्रीम कोर्ट द्वारा गत पिछले साल 9 नवंबर 2019 को अयोध्या में विवादित ज़मीन का फ़ैसला सुनाते हुए वहां राम मंदिर बनाने का रास्ता साफ़ कर दिया था। हालाँकि सुप्रीम कोर्ट के तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश जस्टिस रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पाँच जजों की

यहाँ क्लिक करें