साहिर लुधियानवी : फिल्मी दुनिया के गैरतमंद शायर

साहिर लुधियानवी एक तरक्की पसंद शायर थे और अपनी गजलों, नज्मों से पूरे मुल्क में उन्हें खूब शोहरत मिली। अवाम का ढेर सारा प्यार मिला। साहिर साल 1949 में सपनों की नगरी मुंबई आ गए। माया नगरी में जमना उनके लिए आसान काम

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अपनी इबारत खुद लिखने वाली अदाकारा शौकत आज़मी

शानदार अदाकारा शौकत कैफी, जिन्हें उनके चाहने वाले शौकत आपा और उनके करीबी मोती के नाम से पुकारते थे, बीते साल 22 नवम्बर को इस दुनिया से हमेशा के लिए जुदा हो गईं। और अपने पीछे छोड़ गईं, ‘याद की

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नेहरू नें नहीं बल्कि मोहानी ने दिया था ‘पूर्ण स्वराज’ का नारा

जंग-ए-आज़ादी में सबसे अव्वल इन्क़लाब ज़िन्दाबादका जोशीला नारा बुलंद करना और मुल्क मुकम्मल आज़ादी (संपूर्ण स्वराज) की मांग, महज ये दो बातें ही मौलाना हसरत मोहानी की बावकार हस्ती को बयां करने के लिए काफी हैं। वरना उनकी शख्सियत

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वतन के लिए निदा फ़ाजली ने अपने मां-बाप को छोड़ा था!

दोहा जो किसी समय सूरदास, तुलसीदास, मीरा के होंठों से गुनगुना कर लोक जीवन का हिस्सा बना, हमें हिन्दी पाठ्यक्रम की किताबों में मिला। थोड़ा ऊबाऊ। थोड़ा बोझिल। लेकिन खनकती आवाज़, भली सी सूरत वाला एक शख्स, जो आधा

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नगमें और शायरी मजरूह के जीविका का साधन थी

ज से एक सदी पहले 1 अक्टूबर, 1919 को उत्तर प्रदेश, आजमगढ़ जिले के निजामाबाद गांव में जन्मे, असरार-उल हसन ख़ान यानी मजरूह सुल्तानपुरी के घरवालों और खुद उन्होंने कभी यह सपने में भी नहीं सोचा था कि आगे चलकर गीत-गजल

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रूमानी नगमों के बादशाह राजा मेहदी अली खान

राजा मेहदी अली खान के नाम और काम से जो लोग वाकिफ नहीं हैं, खास तौर से नई पीढ़ी, उन्हें यह नाम सुनकर फौरन एहसास होगा कि यह शख्स किसी छोटी सी रियासत का राजा होगा। लेकिन जब उन्हें यह मालूम चलता है कि …

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खुमार बाराबंकवी : लफ्जों में खुमार देने वाले शायर

खुमार बाराबंकवी का शुमार मुल्क के उन आलातरीन शायरों में होता है, जिनकी शानदार शायरी का खुमार एक लंबे अरसे के बाद भी उतारे नहीं उतरता है। एक दौर था जब खुमार की शायरी का नशा, उनके चाहने वालों के सर चढ़कर

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सज्जाद ज़हीर : साहित्य में प्रगतिशीलता की नींव रखने वाले रहनुमा

हिन्दुस्ताँनी अदब में सज्जाद जहीर की शिनाख्त, तरक्की पसंद तहरीक के रूहे रवां के तौर पर है। वे राइटर, जर्नलिस्ट, एडिटर और फ्रीडम फाइटर भी थे। साल 1935 में अपने चंद तरक्कीपसंद दोस्तों के साथ लंदन में प्रगतिशील लेखक संघ की

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राही मासूम रजा : उर्दू फरोग करने देवनागरी अपनाने के सलाहकार

पनी नज्म-शायरी और बेश्तर लेखन से सांप्रदायिकता और फिरकापरस्तों पर तंज वार करने वाले, राही मासूम रज़ा का जुदा अंदाज़ इस नज्म की चंद लाइनें पढ़कर सहज ही लगाया जा सकता है। 1 सितंबर, 1927 को गाजीपुर के छोटे से गांव गंगोली

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अमर शेख कैसे बने प्रतिरोध की बुलंद आवाज?

मर शेख एक आंदोलनकारी लोक शाहीर थे। वे जन आंदोलनों की उपज थे। यही वजह है कि अपनी जिन्दगी के आखिरी समय तक वे आंदोलनकारी रहे। देश की आजादी के साथ-साथ ‘संयुक्त महाराष्ट्र आंदोलन’ और ‘गोवा मुक्ति आंदोलन’ में भी उनकी सक्रिय भूमिका रही। …

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