जो किया इतनी शिद्दत से किया कि उस पर ग्रंथ लिखे जा सकते हैं। वह भारत में यूरोपियन यायावरों का ऐसा दमकता चेहरा था जो अपने सिद्धांतों पर चला करते थे।
पूरी तरह समर्पित रहा। उसने सेनाओं को आधुनिक बनाया रणनीतियों में समृद्ध किया पैसा भी कमाया पर इतनी सतर्कता बरती कि लूटपाट कर अपनी जेबों को भरने की प्रवृत्ति से स्वयं को दूर रखा ताकि उसके नाम पर कोई धब्बा न लगे।
शायद सिर्फ इसलिए कि वे यूरोपियन थे यह पूर्वग्रह के अतिरिक्त कुछ नहीं है।
ख़ास तौर से वारेन हेस्टिंग के कार्यकाल में या उससे भी पूर्व भारत के तमाम हिस्सों में अपनी–अपनी जगह ढूँढने निकले थे। कुछ वाकई लुटेरे थे कुछ सिर्फ यहाँ की अपार नैसर्गिक संपदा से विस्मित थे और तमाम ऐसे भी थे जो इस देश में आकर ऐसा कुछ करना चाहते थे ताकि दुनिया उन्हें जाने।
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जो बाद में ‘हांसी का राजा’ के नाम से विख्यात हुआ पर उसका करियर भी बॉन की तरह अल्प समय में ही लुप्त हो गया।
षड्यंत्रों मारकाट तथा लूट की घटनाओं को प्रमुखता मिलने लगी थी।
आधुनिक और अनुशासित सेना के गठन की महत्ता के विषय में बताते हुए ऐसे सैन्य बल के गठन पर राजी किया था।
चर्चा किये जाने और सिमट जाने वाले चरित्र का इन्सान था?
पर उसने धूर्तता की जगह निष्ठा का मार्ग चुना। यही उसकी चारित्रिक विशिष्टता थी जिसके लिए उसे सम्मान की दृष्टि से देखा गया।
तब इन लोगों ने इतिहास की जो इबारतें लिखने का काम किया उसका मूल्याँकन होना ही चाहिए। वह भी वस्तुनिष्ठ बिना उनके अस्वाभाविक उद्गम निष्ठा और सोच पर विचार किये। उसका मूल्याकन समाज को स्वयं करने दीजिये।
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