दकनी को बड़ा ओहदा दिलाने वाले तीन कुतुबशाही कवि

कुली कुतबशाह कला और साहित्य का बडा भोक्ता था। वह खुद एक अच्छा कवि था। जिसने कई बेहतरीन रचनाएं कि हैं। उसके बारे में कहा जाता हैं कि उसने शायरी और कविताओं को फारसी के चंगुल से छुडाया हैं और दकनी और

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आसिफीया सुलतान मीर कमरुद्दीन की शायरी

रंगाबाद दकन में आसिफीया राजवंश की स्थापना करनेवाले नवाब मीर कमरुद्दीन सिद्दिकी नवाब फेरोज जंग के बेटे थे। नवाब फेरोज जंग मुगल राजनीति के अहम सरदारों में से थें। कई जंगो में उन्होने मुगलीया सल्तनत के लिए अहम भूमिका निभाई थी।

नवाब फेरोज जंग

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‘मूकनायक’ सौ साल बाद भी क्यों हैं प्रासंगिक?

भीमराव अम्बेडकर के अखबार मूकनायक’ के प्रकाशन की 31 जनवरी सौवीं वर्षगांठ थीं। उसी दिन मूकनायक का पहला अंक प्रकाशित हुआ था। इसका पहला अंक उन्होंने 31 जनवरी, 1920 को निकाला, जबकि अंतिम अखबार प्रबुद्ध भारतका

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पैगंबर के स्मृतिओ को संजोए खडा हैं बिजापूर का आसार महल

बिजापूर शहर आदिलशाही सल्तनत काल में गंगा-जमुनी तहजीब का अप्रतिम मिसाल रहा हैं। आज इसके कई प्रमाण शहरभर घुमने  के बाद आसानी से मिल जायेंगे। इस आलेख में बिजापूर के आसार महल कि कहानी हैं, जो अपनी कई विशेषत: के लिए प्रसिद्ध हैं। इस …

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शायरी कि बारीकियां सिखाते गालिब के कुछ खत

पंधरा फरवरी को शायर मिर्झा गालिब कि पुण्यतिथी थी वे उर्दू और फारसी के बेहतरीन शायर माने जाते हैं उनका मूल नाम असदुल्ला खाँ ग़ालिब था। आर्थिक तंगहाली और गरिबी में 1869 में उनका निधन हुआ

गालिब को हमसे

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दकन के महाकवि सिराज औरंगाबादी

सिकंदर अली वज्द और वली दकनी के बाद सिराज औरंगाबादीमध्यकाल के तिसरे ऐसे बडे कवि थे, जिन्होंने दकनी भाषा को काव्य के लिए चुना था। उनका जन्म ईसवी 1712 में औरंगाबाद में हुआ। उनका मूल नाम सय्यद सिराजुद्दीन नाम था

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छत्रपति शिवाजी महाराज के ब्राह्मण सहयोगी

हाराष्ट्र में 1988 में लिखी गई किताब शिवाजी कोण होता? से पहली बार छत्रपति शिवाजी महाराज कि बहुजनप्रतिपालक प्रतीमा लोगों के सामने आई। वामपंथी विचारक कॉ. गोंविन्द पानसरे ने इस किताब को लिखा था। इस किताब के बाद शिवाजी महाराज कि

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सहनशीलता और त्याग कि मूर्ति थी रमाबाई अम्बेडकर

भीमराव अम्बेडकर का डॉ. बाबासाहब अम्बेडकर बनाने में माता रमाबाई का बडा बलिदान रहा हैं। रमाबाई केवल बाबासाहब कि जीवन संगिनी नही थी बल्की उनकी उससे भी कही ज्यादा थीं। जिनके बलिदान, त्याग और समर्पण को भारत का समुचा समुदाय कर्जदार हैं।

भारत के

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मौलाना अब्दुल गफूर कुरैशी

कुतुब ए दकन – मौलाना अब्दुल गफूर कुरैशी

क्षिण भारत मे सुफी दर्शनके प्रसार-प्रचार के लिए मौलाना अब्दुल गफूर कुरैशी का बडा योगदान रहा हैं। उदगीर जैसे छोटे शहर का यह व्यक्ति का सुफी दर्शन का ज्ञान अदभूत था।

सुफी दर्शन पर उर्दू भाषा में उन्होने अनेक महत्वपूर्ण ग्रंथो

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तानाजी मालुसरे का इतिहास हुआ सांप्रदायिकता का शिकार

फिल्म ‘तानाजी: द अनसंग वॉरियर’ के बाद मराठा साम्राज्य के जाबाँज योद्धा तानाजी मालुसरे फिर एक बार चर्चा में हैं। इस बार भी इस ऐतिहासिक कथा के साथ फिल्मी अभिव्यक्ती ने इतिहास को तोड मरोडकर पेश करने का बडा गुनाह किया।

जिसके बाद

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