फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ आज भी हैं अवाम के महबूब शायर

र्दू अदब में फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ का नाम एक आला दर्जे का मुकाम रखता है। वे न सिर्फ उर्दूभाषियों के पसंदीदा शायर हैं बल्कि हिंदी और पंजाबी भाषी लोग भी उन्हें उतने ही शिद्दत से पढ़ते हैं। उनकी नज्मों-गजलों के मिसरे और जबान पर

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ज़ज्बात को अल्फाजों में नुमायां करने वाले अफ़साना निगार ‘शानी’

शानी के मानी यूं तो दुश्मन होता है और गोयाकि ये तखल्लुस का रिवाज ज्यादातर शायरों में होता है। लेकिन शानी न तो किसी के दुश्मन हो सकते थे और न ही वे शायर थे। हां, अलबत्ता उनके लेखन में शायरों सी भावुकता

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कम्युनिज्म को उर्दू में लाने की कोशिश में लगे थे जोय अंसारी

मुल्क में तरक्की पसंद तहरीक जब परवान चढ़ी, तो उससे कई तख्लीककार जुड़े और देखते-देखते एक कारवां बन गया। लेकिन इस तहरीक में उन तख्लीककारों और शायरों की ज्यादा अहमियत है, जो तहरीक की शुरुआत में जुड़े, उन्होंने मुल्क में साम्यवादी

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आज तक मुंबई में भटकती हैं मंटो की रूह

आदत हसन मंटो, हिंद उपमहाद्वीप के बेमिसाल अफसाना निगार थे। प्रेमचंद के बाद मंटो ही ऐसे दूसरे रचनाकार हैं, जिनकी रचनाएं आज भी पाठकों का ध्यान अपनी ओर खींचती हैं। 43 साल की छोटी सी जिन्दगानी में उन्होंने जी भरकर लिखा। गोया

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कैफ़ी ने शायरी को इश्कियां गिरफ्त से छुड़ाकर जिन्दगी से जोड़ा

रीब 80 फिल्मों में गीत लिखने वाले क़ैफी आज़मी के गीतों में जिन्दगी के सभी रंग दिखते हैं। फिल्मों में आने के बाद भी उन्होंने अपने गीतों, शायरी का मैयार नहीं गिरने दिया।

सिने इतिहास की क्लासिक कागज़ के फूल के

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इरफ़ान की आंखें भी करती थी लाजवाब अभिनय

कबूलअदाकार इरफ़ान खान आज जिंदा होते, तो वे अपना 54वां जन्मदिन मना रहे होते। बीते साल 29 अप्रेल को वे हमसे हमेशा के लिए जुदा हो गए थे। अदाकारी के मैदान में आलमी तौर पर उनकी जो शोहरत थी

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अपनों की गद्दारी के चलते शहीद हुए तात्या टोपे

ज़ादी के पहले मुक्ति संग्राम 1857 में यूं तो मुल्क के हजारों लोगों ने हिस्सेदारी की और अपनी जान को कुर्बान कर, इतिहास में हमेशा के लिए अमर हो गए। लेकिन कुछ नाम ऐसे हैं, जिनकी बहादुरी के किस्से आज भी फिजा

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सूर और ताल की सौगात पेश करने वाले नौशाद अली

हिंदी सिनेमा की शुरुआत को हुए, एक सदी से ज्यादा गुजर गया, लेकिन कोई दूसरा नौशाद नहीं आया। नगमा-ओ-शेर की जो सौगात उन्होंने पेश की, कोई दूसरा उसे दोहरा नहीं पाया। फिल्मी दुनिया के अंदर थोड़े से ही वक्फे में नौशाद ने बड़े-बड़े नामवरों

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जब तक रफी के गीत नही होते, हिरो फिल्में साईन नही करते!

ता भारत रत्न, मुहंमद रफी क्यों नहीं?अक्सर यह सवाल शहंशाह-ए-तरन्नुम मुहंमद रफी के चाहने वाले पूछते हैं, लेकिन इस सवाल का जवाब किसी के पास नहीं हैं। क्यों हमने अपने इस शानदार गायक की उपेक्षा की है? ‘भारत रत्न’, तो छोड़िए

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आज भी ‘हर जोर-जुल्म की टक्कर में’ गूंजता हैं शैलेंद्र का नारा

हिन्दी साहित्य में शैलेंद्र की पहचान क्रांतिकारी और संवेदनशील गीतकार के तौर पर है। वे सही मायने में जन कवि थे। उनकी कोई भी कविता और गीत उठाकर देख लीजिए, उसमें सामाजिक चेतना और राजनीतिक जागरूकता स्पष्ट दिखलाई देती है।

बाबा नागार्जुन,

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