प्रेमचंद के साहित्य में तीव्रता से आते हैं किसानों के सवाल !

प्रेमचंद के सम्पूर्ण साहित्य पर यदि नज़र डालें तो, उनका साहित्य उत्तर भारत के गांव और संघर्षशील किसानों का दर्पण है। उनके कथा संसार में गांव इतनी जीवंतता और प्रमाणिकता के साथ उभर कर सामने आया है कि उन्हें ग्राम्य जीवन का चितेरा

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उर्दू ज़बान के ‘शायर-ए-आज़म’ थे फ़िराक़ गोरखपुरी!

क उम्दा मोती, खु़श लहजे के आसमान के चौहदवीं के चांद और इल्म की महफ़िल के सद्र। ज़हानत के क़ाफ़िले के सरदार। दुनिया के ताजदार। समझदार, पारखी निगाह, ज़मीं पर उतरे फ़रिश्ते, शायरे-बुजु़र्ग और आला। अपने फ़िराक़ को मैं

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ज़ज्बात को अल्फाजों में नुमायां करने वाले अफ़साना निगार ‘शानी’

शानी के मानी यूं तो दुश्मन होता है और गोयाकि ये तखल्लुस का रिवाज ज्यादातर शायरों में होता है। लेकिन शानी न तो किसी के दुश्मन हो सकते थे और न ही वे शायर थे। हां, अलबत्ता उनके लेखन में शायरों सी भावुकता

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अपनी इबारत खुद लिखने वाली अदाकारा शौकत आज़मी

शानदार अदाकारा शौकत कैफी, जिन्हें उनके चाहने वाले शौकत आपा और उनके करीबी मोती के नाम से पुकारते थे, बीते साल 22 नवम्बर को इस दुनिया से हमेशा के लिए जुदा हो गईं। और अपने पीछे छोड़ गईं, ‘याद की

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जिन्दगी को करीब लाती हैं भीष्म साहनी की कहानियाँ

प्रगतिशील और प्रतिबद्ध रचनाकार भीष्म साहनी को याद करना, हिन्दी की एक शानदार और पायदार परम्परा को याद करना है। वे एक अच्छे रचनाकार के अलावा कुशल संगठनकर्ता भी थे। प्रगतिशील लेखक संघ के महासचिव के तौर पर उन्होंने देश भर में इस संगठन

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