संविधान बनाम धार्मिक राष्ट्रवाद कहीं चालबाजी तो नहीं?

भाजपा ने 2015 के संविधान दिवस के आयोजन पर धर्मनिरपेक्षता की धारणा पर कुछ सवाल खड़े किए। गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने उस दलील को दोहराया जिसे राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ परिवार अर्से से उठाता रहा है। उन्होंने कहा कि धर्मनिरपेक्षता शब्द की

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एंकर बनाम आम आदमी, आज़ादी किसकी बड़ी?

स्टिस डीवाय चंद्रचूड ने सुप्रीम कोर्ट में 11 नवंबर को टीवी एंकर अर्नब गोस्वामी को जमानत देते हुए कहा, “यह संदेश सभी हाईकोर्ट तक पहुंचने दें। कृपया व्यक्तिगत आज़ादी की सुरक्षा के लिए अपने न्याय के अधिकार का इस्तेमाल करें। क्योंकि बतौर

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बिहार चुनावी नतीजे विपक्ष के लिए आई-ओपनर

बिहार विधान सभा चुनावों का विश्लेषण करते हुए विगत 31 अक्टूबर 2020 को ‘राष्ट्रीय सहारा’ में प्रकाशित अपने लेख में मैंने लिखा था की इस बार के चुनाव में नीतिश  कुमार के लिए राह आसान नहीं होगी। अब नतीजे सामने हैं और दोनों गठबंधनों

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टीआरपी का झगड़ा मीडिया के लिए आत्मघाती क्यों हैं?

टीवी चैनलों के बीच बेहूदा लड़ाई छिड़ी है। एक ओर जहां अर्णब गोस्वामी और उनका रिपब्लिक टीवी है तो दूसरी ओर बाकी हैं। मैं यह नहीं कह रहा हूं कि कौन सच बोल रहा है और कौन झूठ? ऐसे ध्रुवीकृत समय पर जब

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टीवी मीडिया का अंधायुग और टीआरपी की होड़

हाराष्ट्र और मुंबई किसी के बाप की नहीं है। मुंबई मराठियों के बाप की है‚ जो इसे नहीं मानता वह अपने असली बाप का नाम बताए। जो उखाड़ना हो उखाड़ लो। उखाड़ दिया। मुंबई पीओके है। मेरा घर राम मंदिर है‚ वहां फिर बाबर …

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चैनल्स डिबेट को जहरीला बनाने का जिम्मेदार कौन?

र व्यक्ति इस बात से सहमत है कि चैनलों की डिबेट ड्रामा बन गई हैं। टीवी चैनलों की चर्चाओं पर हर तरफ से पक्षपाती होने के भी आरोप लग रहे हैं। आरोप इस हद तक पहुंच गए हैं कि कुछ चैनलों की डिबेट्स का

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मीडिया, समाज को बांटकर बना रहा है हिंसक

फ़्रांसीसी क्रांति ने इतिहास बदल दिया। राजशाही और सरकार में चर्च की भूमिका को पूरी तरह से ख़त्म कर दिया। पूरी दुनिया को समानता, स्वतंत्रता और बंधुत्व का सिद्धान्त दिया। इस क्रांति की प्रक्रिया में अकल्पनीय हिंसा हुई। बहुत कम लोगों को याद

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मीडिया जो परोस रहा है, क्या उस दायरे में सच भी है?

राजनीति लोकतंत्र को हांकती है। लोकतंत्र राजनीतिक सत्ता की मंशा मुताबिक परिभाषित होती है। लोकतंत्र के चारो स्तंभ लोकतंत्र को नहीं राजनीतिक सत्ता को थामते हैं या फिर विरोध की राजनीति धीरे-धीरे सत्ता के विकल्प के तौर पर खड़ा होना शुरु होती है तो

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इतिहास की सांप्रदायिक बहस से किसका फायदा?

क साल पहले 10 अक्टूबर को आरएसस के मुखिया मोहन भागवत ने कहा था कि भारत में रहने वाले मुसलमान हिन्दुओं के वजह से दुनिया में सर्वाधिक सुखी हैं। अब वे एक कदम आगे बढ़कर कह रहे हैं कि यदि मुसलमान कहीं संतुष्ट हैं

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क्या न्यूज़ चैनल मुल्क और जनता की पीठ में छुरा घोंप रहे हैं?

रेटिंग को लेकर जो बहस चल रही है उसमें उछल-कूद से भाग न लें। ग़ौर से सुनें और देखें कि कौन क्या कह रहा है। जिन पर फेक न्यूज़ और नफ़रत फैलाने का आरोप है वही बयान जारी कर रहे हैं कि इसकी इजाज़त

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