ज़ज्बात को अल्फाजों में नुमायां करने वाले अफ़साना निगार ‘शानी’

शानी के मानी यूं तो दुश्मन होता है और गोयाकि ये तखल्लुस का रिवाज ज्यादातर शायरों में होता है। लेकिन शानी न तो किसी के दुश्मन हो सकते थे और न ही वे शायर थे। हां, अलबत्ता उनके लेखन में शायरों सी भावुकता

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‘दास्ताने मुग़ल-ए-आज़म’ सुनने का एक और आसिफ़

किताबीयत : दास्ताने मुग़ल-ए-आज़म

मुग़ल-ए-आज़म में दो मुग़ल-ए-आज़म थे। बादशाह अकबर और करीमउद्दीन आसिफ़। जिन्हें दुनिया के आसिफ़ के नाम से जानती है। आसिफ़ को अपने सपनों से ही प्यार नहीं था, अपने वतन से भी था।

आसिफ़ के सपने एक नए मुल्क के

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सूफी-संत मानते थे राम-कृष्ण को ईश्वर का ‘पैगम्बर’

भारत के सांझी विरासत को सहजने में सूफी-संतो का बड़ा योगदान रहा हैं। वे हिन्दू और मुस्लिम जनता दोनो के करीब थे। हजारो कि संख्या में लोग उनके पास आते थे। सूफी ‘वहादत अल वजूद’ (जीव कि एकता) के सिद्धान्त मे यकिन करते थे। …

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