कवि नही दर्द की जख़िरा थे सय्यद मुत्तलबी फ़रीदाबादी

र्दू शायरी के बारे में एक आम राय यह है कि वह ऊंचे तबके के शहरी लोगों की शायरी है जिसका गांव के जीवन और ग़रीब लोगों से कोई ताल्लुक नहीं है। लेकिन उर्दू में ऐसे शायरों की कमी नहीं है जिन्होंने अवाम की

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दकन के महाकवि सिराज औरंगाबादी

सिकंदर अली वज्द और वली दकनी के बाद सिराज औरंगाबादीमध्यकाल के तिसरे ऐसे बडे कवि थे, जिन्होंने दकनी भाषा को काव्य के लिए चुना था। उनका जन्म ईसवी 1712 में औरंगाबाद में हुआ। उनका मूल नाम सय्यद सिराजुद्दीन नाम था

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