क्यों जरुरी हैं एमपीएससी परीक्षा में उर्दू साहित्य का वैकल्पिक विषय!

हाल ही में एमपीएससी ने अगले प्रयास यानि 2023 से राज्य सेवा परीक्षा के अपने पैटर्न और पाठ्यक्रम को यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा की तरह ही बदल दिया है। इस प्रकार मुख्य परीक्षा अब वर्णनात्मक होगी, इसमें सामान्य अध्ययन के चार पेपर, निबंध का …

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कभी किसी के शागिर्द नहीं बने उस्ताद ग़ालिब

ज से 207 साल पहले की आगरा की धरती पर जन्म लिया था उस शख्स ने। उस जैसा आज तक कोई दूसरा नहीं हुआ और आगे शायद ही हो। वह बचपन से ही कोई आम शख्स नहीं था। उसे तो जैसे ईश्वर ने बड़ी

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उर्दू मिठास तो है पर सही उच्चारण के बगैर महसूस नही होती!

र्दू बुनियादी तौर पर उत्तर भारत की एक ‘अर्बन जुबान’ रही है। उसकी फोनोटिक पर, उसके सैटर्लिटी पर उसके नोअर्सिस पर सीरियसली काम किया गया है। इस हद तक कि आप यह सोचों गालिब की एक किताब है, जिसे उनके दो दोस्त थे, उन्होंने …

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आज़ादी के बाद उर्दू को लेकर कैसे पैदा हुई गफलत?

र्दू, वह भाषा जिसकी कविताएं मुझे बहुत पसंद हैं। इसके बारे में कुछ गलत धारणाएं हैं। पहला तो यही कि उर्दू विदेशी भाषा है। फ़ारसी और अरबी बेशक विदेशी भाषाएं हैं, लेकिन उर्दू देसी (स्वदेशी) भाषा है।

साबित करने के लिए यह उल्लेख किया …

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कवि नही दर्द की जख़िरा थे सय्यद मुत्तलबी फ़रीदाबादी

र्दू शायरी के बारे में एक आम राय यह है कि वह ऊंचे तबके के शहरी लोगों की शायरी है जिसका गांव के जीवन और ग़रीब लोगों से कोई ताल्लुक नहीं है। लेकिन उर्दू में ऐसे शायरों की कमी नहीं है जिन्होंने अवाम की

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क्या हिन्दोस्ताँनी जबान सचमूच सिमट रही हैं?

र्दू जबान के साथ एक अजीब सी ट्रेजेडी हो गई है। वह जब तक आपके समझ में आती है तब तक उसे आप हिंदी समझते हैं। और जब समझ में आना बंद हो जाए तब कहते हैं कि यह उर्दू हैं। हम जब आपस

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