शोषित वर्गों के हक में आग उगलती थी कृश्न चंदर की कलम

र्दू अदब के अफसानानिगार कृश्न चंदर ने बेशुमार लिखा हैं। हिंदी और उर्दू दोनों ही जबानों में समान अधिकार के साथ लिखा। कृश्न चंदर की जिन्दगी के ऊपर तरक्कीपसंद तहरीक का सबसे ज्यादा असर पड़ा।

यह अकारण नहीं है कि उनके ज्यादातर अफसाने समाजवाद

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एहसान दानिश की पहचान ‘शायर-ए-मजदूर’ कैसे बनी?

र्दू अदब में एहसान दानिश की पहचान, ‘शायर-ए-मजदूर के तौर पर है। मजदूरों के उन्वान से उन्होंने अनेक गजलें, नज्में लिखीं। वे एक अवामी शायर थे। किसानों, कामगारों के बीच जब दानिश अपना कलाम पढ़ते थे, तो एक

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कम्युनिज्म को उर्दू में लाने की कोशिश में लगे थे जोय अंसारी

मुल्क में तरक्की पसंद तहरीक जब परवान चढ़ी, तो उससे कई तख्लीककार जुड़े और देखते-देखते एक कारवां बन गया। लेकिन इस तहरीक में उन तख्लीककारों और शायरों की ज्यादा अहमियत है, जो तहरीक की शुरुआत में जुड़े, उन्होंने मुल्क में साम्यवादी

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सज्जाद ज़हीर : साहित्य में प्रगतिशीलता की नींव रखने वाले रहनुमा

हिन्दुस्ताँनी अदब में सज्जाद जहीर की शिनाख्त, तरक्की पसंद तहरीक के रूहे रवां के तौर पर है। वे राइटर, जर्नलिस्ट, एडिटर और फ्रीडम फाइटर भी थे। साल 1935 में अपने चंद तरक्कीपसंद दोस्तों के साथ लंदन में प्रगतिशील लेखक संघ की

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जिन्दगी को करीब लाती हैं भीष्म साहनी की कहानियाँ

प्रगतिशील और प्रतिबद्ध रचनाकार भीष्म साहनी को याद करना, हिन्दी की एक शानदार और पायदार परम्परा को याद करना है। वे एक अच्छे रचनाकार के अलावा कुशल संगठनकर्ता भी थे। प्रगतिशील लेखक संघ के महासचिव के तौर पर उन्होंने देश भर में इस संगठन

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