इतिहास लिखने ‘जंग ए मैदान’ जाते थे अमीर ख़ुसरो

मीर खुसरो सन् 1286 ईसवीं में अवध के गवर्नर (सूबेदार) खान अमीर अली उर्फ हातिम खां के यहां दो साल तक रहे। यहां खुसरो ने इन्हीं अमीर के लिए अस्पनामाउनवान से किताब लिखी।

खुसरो लिखते हैं, वाह क्या शादाब सरजमीं

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तहज़ीब और सक़ाफ़त में अमीर ख़ुसरो की खिदमात

मीर ख़ुसरो बहुत सारी खूबियों के मालिक थे और उनकी शख़्सियत बहुत वअसी थी। वो शायर थे, तारीख़दां थे, फ़ौजी जनरल, अदीब, सियासतदां, मौसीक़ीकार, गुलूकार, फलसफ़ी, सूफ़ी और न जाने कितनी शख़्सियात के मालिक थे।

मेरी

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सूफी पंरपरा

किसी उस्ताद के बगैर वे बन गए ‘अमीर खुसरौ’

खुसरौ उच्च कोटी के विद्वान और कवि थे वह सुफ़ी रहस्यवादी थे और दिल्ली वाले निजामुदीन औलिया उन के आध्यात्मिक गुरू थे उन्होंने तुर्की, पर्शियन और हिन्दवी में काव्य रचना की उनको कव्वाली के जनक के रुप में जाना जाता

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