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मीडिया में वैकल्पिक कारोबारी मॉडल क्यों जरुरी हैं?





प्रो. आनंद प्रधान का नजरिया :

न दिनों टीवी न्यूज चैनल खुद सुर्खियों में हैं। अधिक से अधिक दर्शकों को आकर्षित करने यानी टीआरपी की अंधी दौड़ में आगे रहने के लिए उनमें लगातार गटर में और नीचे गिरने की होड़ लगी है।

न्यूज

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एंकर बनाम आम आदमी, आज़ादी किसकी बड़ी?

स्टिस डीवाय चंद्रचूड ने सुप्रीम कोर्ट में 11 नवंबर को टीवी एंकर अर्नब गोस्वामी को जमानत देते हुए कहा, “यह संदेश सभी हाईकोर्ट तक पहुंचने दें। कृपया व्यक्तिगत आज़ादी की सुरक्षा के लिए अपने न्याय के अधिकार का इस्तेमाल करें। क्योंकि बतौर

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चैनल्स डिबेट को जहरीला बनाने का जिम्मेदार कौन?

र व्यक्ति इस बात से सहमत है कि चैनलों की डिबेट ड्रामा बन गई हैं। टीवी चैनलों की चर्चाओं पर हर तरफ से पक्षपाती होने के भी आरोप लग रहे हैं। आरोप इस हद तक पहुंच गए हैं कि कुछ चैनलों की डिबेट्स का

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मीडिया, समाज को बांटकर बना रहा है हिंसक

फ़्रांसीसी क्रांति ने इतिहास बदल दिया। राजशाही और सरकार में चर्च की भूमिका को पूरी तरह से ख़त्म कर दिया। पूरी दुनिया को समानता, स्वतंत्रता और बंधुत्व का सिद्धान्त दिया। इस क्रांति की प्रक्रिया में अकल्पनीय हिंसा हुई। बहुत कम लोगों को याद

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मीडिया जो परोस रहा है, क्या उस दायरे में सच भी है?

राजनीति लोकतंत्र को हांकती है। लोकतंत्र राजनीतिक सत्ता की मंशा मुताबिक परिभाषित होती है। लोकतंत्र के चारो स्तंभ लोकतंत्र को नहीं राजनीतिक सत्ता को थामते हैं या फिर विरोध की राजनीति धीरे-धीरे सत्ता के विकल्प के तौर पर खड़ा होना शुरु होती है तो

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क्या न्यूज़ चैनल मुल्क और जनता की पीठ में छुरा घोंप रहे हैं?

रेटिंग को लेकर जो बहस चल रही है उसमें उछल-कूद से भाग न लें। ग़ौर से सुनें और देखें कि कौन क्या कह रहा है। जिन पर फेक न्यूज़ और नफ़रत फैलाने का आरोप है वही बयान जारी कर रहे हैं कि इसकी इजाज़त

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