वतन के लिए निदा फ़ाजली ने अपने मां-बाप को छोड़ा था!

दोहा जो किसी समय सूरदास, तुलसीदास, मीरा के होंठों से गुनगुना कर लोक जीवन का हिस्सा बना, हमें हिन्दी पाठ्यक्रम की किताबों में मिला। थोड़ा ऊबाऊ। थोड़ा बोझिल। लेकिन खनकती आवाज़, भली सी सूरत वाला एक शख्स, जो आधा

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मजाज़ से मिलने लड़कियां चिठ्ठियां निकाला करती थीं

सूफी शायर उस्मान हारूनी के इस शेर का मतलब है।। मेरे महबूब ये तमाशा देख कि तेरे चाहने वालों के हूजूम में हूं और रूसवाइयों के साथ, बदनामियों के साथ, सरे बाज़ार में नाच रहा हूं।

उस्मान हारूनी के इस शेर की गर्मी मजाज़ …

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राही मासूम रजा : उर्दू फरोग करने देवनागरी अपनाने के सलाहकार

पनी नज्म-शायरी और बेश्तर लेखन से सांप्रदायिकता और फिरकापरस्तों पर तंज वार करने वाले, राही मासूम रज़ा का जुदा अंदाज़ इस नज्म की चंद लाइनें पढ़कर सहज ही लगाया जा सकता है। 1 सितंबर, 1927 को गाजीपुर के छोटे से गांव गंगोली

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