प्रेमचंद सांप्रदायिकता को इन्सानियत का दुश्मन मानते थे

हिन्दी-उर्दू साहित्य में कथाकार प्रेमचंद का शुमार, एक ऐसे रचनाकार के तौर पर होता है, जिन्होंने साहित्य की पूरी धारा ही बदल कर रख दी। देश में वे ऐसे पहले शख्स थे, जिन्होंने हिन्दी साहित्य को रोमांस, तिलिस्म, ऐय्यारी

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मर्दवादी सोच के खिलाफ ‘अंगारे’ थी रशीद ज़हां

डॉ. रशीद ज़हां, तरक्कीपसंद तहरीक का वह उजला, चमकता और सुनहरा नाम है, जो अपनी 47 साल की छोटी सी जिन्दगानी में एक साथ कई मोर्चों पर सक्रिय रहीं।

उनकी कई पहचान थीं मसलन अफसानानिगार, नाटककार, पत्रकार, डॉक्टर

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लाज़वाब किस्सों से भरी थी जोश मलीहाबादी कि ज़िन्दगानी

किताबीयत : यादों की बरात

काम है मेरा तगय्युर (कल्पना), नाम है मेरा शबाब (जवानी)

मेरा नाम इंकलाबो, इंकलाबो, इंकिलाब।

उर्दू अदब में जोश मलीहाबादी वह आला नाम है, जो अपने इंकलाबी कलाम से शायर-ए-इंकलाब कहला। जोश का

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शब्दों से जिन्दगी का फलसफा बताने वाले ‘नीरज’

गोपाल दास नीरजउस कवि संमेलन परंरा के आखिरी वारिस थे, जिन्हें सुनने और पढ़ते हुए देखने के लिए हजारों श्रोता रात-रात भर बैठे रहते थे। उनकी रचनाओं में गीतों का माधुर्य और जीवन का संदेश एक

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जिन्दगी के पाठशाला ने बनाया अन्नाभाऊ को ‘लोकशाहीर’

न्नाभाऊ साठे की पहचान पूरे देश में एक लोकशाहीर के तौर पर है। खास तौर पर दलित, वंचित, शोषितों के बीच उनकी छवि एक लोकप्रिय जनकवि की है।

उन्होंने अपने लेखन से हाशिये के समाज को आक्रामक जबान दी। उनमें जन चेतना फैलाई। उन्हें

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