हर दूसरा पाकिस्तानी भारत आने के लिए हैं बेताब

र्दी इतनी बढ़ गई थी कि मैं कूपे में टहलने पर मजबूर हो गया था। एक स्टेशन पर ट्रेन रुकी। बाहर प्लेटफार्म से चाय चायकी आवाजें आने लगीं। मैंने चाय वाले को आवाज दी लेकिन कोई नहीं आया। मैंने कुछ और

यहाँ क्लिक करें

पाकिस्तानी में ट्रेन का सफ़र और जासूस होने का डर

2011 में फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ के जन्म शताब्दी समारोह में पाकिस्तान जाना हुआ था। लौटकर मैंने 40 दिन की सघन यात्रा पर एक किताब लिखी थी जो रवींद्र कालिया ने ज्ञानोदय में छापी थी और उसे ज्ञानपीठ ने किताब की शक्ल

यहाँ क्लिक करें