वतन के लिए निदा फ़ाजली ने अपने मां-बाप को छोड़ा था!

दोहा जो किसी समय सूरदास, तुलसीदास, मीरा के होंठों से गुनगुना कर लोक जीवन का हिस्सा बना, हमें हिन्दी पाठ्यक्रम की किताबों में मिला। थोड़ा ऊबाऊ। थोड़ा बोझिल। लेकिन खनकती आवाज़, भली सी सूरत वाला एक शख्स, जो आधा

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