हिन्दी और उर्दू मुझे जिन्दा रखती हैं
भाषा के धर्मकरण में हमने सृजन खो दिया हैं। संस्कृत और उर्दू इसके पहले शिकार बने हैं। साहित्य जगत में सांस्कृतिक राजनीति नें भाषाई विधा तथा अभिव्यक्ति पर बंदिशे लगा दी हैं। जिसके परिणामस्वरूप कुदरती अभिव्यक्ति और सहजता को हमने खो दिया हैं।
अंग्रेजी …
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